Monday, July 19, 2021

धर्म के लिए बगावत करना भी धर्म है

यूँ तो कई नाम स्वतंत्रता सेनानी कहलाते हैं किंतु एक नाम जो धार्मिक मान्यताओं से ओतप्रोत था,भारतीय संस्कृति का संवाहक था और अपनी नौकरी से ज्यादा अपने धर्म को तवज्जो देता था,वह है  "मंगलपाण्डेय।"  बंदूक टांगने की नौकरी करने वाले इस वीर ने बंदूक की ही वजह से बगावत कर दी। चर्बीयुक्त कारतूसों को मुँह से लगाना इस सिपाही को रास नहीं आया, उसकी आत्मा ने कहा कि तुम यदि ऐसा करोगे तो धर्म से भ्रष्ट हो जाओगे।

मंगलपाण्डेय ने जब सिपाही की नौकरी की थी तो उस समय  "ब्राउन बैस"  बंदूक उपयोग में लायी जाती थीं,कई सालों से सैनिक इन्हीं बंदूकों का उपयोग करते आ रहे थे किंतु जब समय के साथ नई बंदूकें आयीं तो उनमें गोली भरने का काम भी नए तरीके से होने लगा। नई बंदूक का नाम था  "एनफील्ड।" इस बंदूक में जो कारतूस भरी जाती थीं उनका बाहरी आवरण चर्बी का बना होता था। यह चर्बी गाय और सुअर की रहती थी। सैनिकों को मुँह से काटकर बाहरी आवरण हटाना पड़ता था। बस यही बात मंगलपाण्डेय को खटक गयी और उन्होंने ऐसा करने से साफ़ इंकार कर दिया और बगावत कर डाली। 

मंगलपाण्डेय की बगावत में साथी सिपाही भी शामिल थे क्योंकि उन्हें भी चर्बीयुक्त कारतूस मुँह से लगाना पसन्द नहीं था।अंग्रेजों ने कहा कि मंगलपाण्डेय धार्मिक पागलपन के शिकार हो गए हैं।

 मेरे विचार से यदि धर्म पर आँच न आने देना पागलपन है तो यही सही। धर्म के ख़ातिर यदि बगावत करनी पड़े तो मंजूर है। जिस गाय को भारतीय सनातन संस्कृति में पूज्या माना गया है, उसी की चर्बी को मुँह से लगाना भला कैसे सम्भव हो सकता है!

मंगलपाण्डेय ने बैरकपुर छावनी से विद्रोह का बिगुल बजाया। इन्हें गिरफ्तार करने के लिए भारतीय सिपाहियों को आदेश दिया गया किन्तु कोई भी सिपाही ऐसा करने की हिम्मत न जुटा सका था। अंततः 6 अप्रैल 1857 को उत्तरप्रदेश के बलिया जनपद में जन्मे मंगलपाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर 8 अप्रैल को फाँसी दे दी गयी। भगत सिंह की तरह इस सेनानी को भी समय से दश दिन पहले फाँसी पर लटका दिया गया था किन्तु विद्रोह की आग अभी बुझी नहीं थी।  एक माह बाद मेरठ की छावनी पर बगावत हो गयी। 

इस बगावत से अंग्रेज समझ चुके थे कि हिंदुस्तान में ज्यादा दिन तक हुकूमत चलाना अब सम्भव न होगा । इस बगावत से परेशान होकर अँग्रेजी शासन ने हिंदुस्तान की जनता पर इतने अधिक कानून थोप दिए कि कोई भी सैनिक ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ भविष्य में आवाज न उठा सके। 

आज भी वीर मंगलपाण्डेय जैसे लोगों की आवश्यकता है किन्तु लोकतंत्र में संविधान इस तरह की बगावत की इजाज़त नहीं देगा। बगावत करोगे तो बागी कहलाओगे जबकि वास्तव में ऐसे गलत के ख़िलाफ़ आवाज उठाने वाले को नायक का दर्जा दिया जाने चाहिए! 

आज यदि बगावत की जाए तो बागियों की भरमार हो जाये क्योंकि हर क्षेत्र में गलत काम हो रहे हैं। धार्मिक आस्था-मान्यताएँ गल रही हैं, सारे विभाग भ्रष्टाचार में निमग्न हैं और राजनेता देश को बेचने पर उतारू हैं। क्रांति और विद्रोह की जरूरत आज अधिक है देश को क्योंकि देश उस दिशा में जा रहा है जहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ अराजकता, भ्रष्टाचार,आतंकवाद और बेईमानी चालू है। 

#फ़ोटो साभार गूगल
                           ✍️ अनुज पण्डित

Sunday, July 4, 2021

धन्यवाद और आभार में अंतर

अक़्सर छोटी-छोटी बातों में धन्यवाद और आभार व्यक्त करने का चलन है। आपके द्वारा किसी का कोई कार्य कर दिया गया तो वह आपको इन दोनों में से कोई एक शब्द बोलता है। फेसबुक पोस्ट की सराहना पर भी हम एक-दूसरे को ये दोनों शब्द बोलते रहते हैं किंतु इन दोनों शब्दों का अंतर जानना भी आवश्यक है।

धन्यवाद और आभार में बारीक अंतर यह है कि धन्यवाद सामान्य स्थिति में बोला जाता है और आभार विशेष की स्थिति में। यदि आपके अच्छे कार्य की कोई सराहना कर दे तो आप उसे धन्यवाद कहते हैं और जब किसी के द्वारा आपका कोई कार्य सिद्ध हो तो आप उसका आभार प्रकट करते हैं। वैसे इन दोनों शब्दों का प्रयोग सामने वाले की आयु देखकर भी किया जाता है। 

यदि कोई आपसे उम्र में छोटा है या समकक्ष है तो आप उसे धन्यवाद कह सकते हैं किंतु यदि उम्र में बड़ा है तो धन्यवाद जरा कम जँचता है। उसके लिए आभार शब्द का ही प्रयोग करना चाहिए।

आभार से का शाब्दिक अर्थ यदि लेंगे तो इसका अर्थ होगा ऋणी होना। आप किसी के मार्गदर्शन,सहायता या उपकार के ऋणी हैं, इसलिए आप उसके प्रति आभार प्रकट कर रहे हैं जबकि धन्यवाद में खुद की कृतज्ञता का भाव होता है। जीवन में इन दोनों शब्दों की बड़ी जरूरत पड़ती है क्योंकि आये दिन किसी का किसी से कोई कार्य पड़ता है, कोई न कोई आपको सराहता है । यदि अभी आपका कार्य हुआ नहीं बल्कि करवाने की गुजारिश कर रहे हैं तो भी आप यह बोलते हैं कि मैं आपका आभारी रहूँगा अर्थात् ऋणी रहूँगा। इस एहसान का भार मुझ पर रहेगा,ऐसा आप व्यक्त करते हैं। इसलिए इन दोनों शब्दों का प्रयोग बड़ी सतर्कता से करना चाहिए।
                             ✍️ अनुज पण्डित

भक्ति और उसके पुत्र

🍂'भज् सेवायाम्' धातु से क्तिन् प्रत्यय करने पर 'भक्ति' शब्द की निष्पति होती है,जिसका अर्थ है सेवा करना। सेवा करने को 'भ...