Sunday, September 12, 2021

कठोपनिषद्-संक्षिप्त कथा

#उपनिषच्चर्चा_भाग_8

                     कठोपनिषद्

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कृष्णयजुर्वेद की कठ शाखा से सम्बद्ध यह उपनिषद् प्रमुख उपनिषदों में गिना जाता है। तपस्वी आचार्य  "कठ" इसके प्रणयनकर्त्ता हैं, जो वैशम्पायन मुनि के शिष्य रहे। दो अध्यायों (प्रत्येक अध्याय में तीन वल्लियाँ) में निबद्ध इस उपनिषद् में काव्यात्मक मनोरम शैली में गूढ दार्शनिक तत्त्वों का विवेचन है। इसमें वर्णित यम-नचिकेता की कथा अत्यंत रोचक एवं ज्ञानवर्द्धक है।

संक्षिप्त कथा- उद्दालक ऋषि के पुत्र वाजश्रवस ने सर्वमेध या विश्ववेदस नामक यज्ञ किया। इस यज्ञ का अर्थ होता है कि जातक अपनी सर्वसम्पत्ति को दान कर देता है। यज्ञ सम्पन्न हो जाने पर वाजश्रवस ऋत्विजों (पुरोहितों) को दक्षिणा में वृद्ध और कमजोर गायें प्रदान कर रहे थे। यह देखकर वाजश्रवस का पुत्र  "नचिकेता" सोच में पड़ गया। उसने सोचा कि ये गायें तो अत्यंत जर्जर हैं! वे न तो दुग्धदोहा हैं और न ही उनमें अब प्रजजन-शक्ति शेष है! इस प्रकार की गायें दान करने का अर्थ है-दूसरों पर भार लादना। इससे तो पुण्य के स्थान पर पाप ही लगेगा!

इस प्रकार विचार करने के अनन्तर नचिकेता ने पिता से कहा कि हे तात! इससे अच्छा तो आप मुझे ही दान कर देते! बताइये,आप! मुझे किसे देंगे? पिता ने बालक की बात को गम्भीरता से नहीं लिया किन्तु नचिकेता ने बार-बार वही प्रश्न दोहराया कि मुझे किसे देंगे? इस पर क्रोधित होकर वाजश्रवस ने कहा कि -

"मैं तुझे मृत्यु को देता हूँ।" मृत्यु अर्थात् यमराज। 


पिता की आज्ञा-पालन हेतु नचिकेता सीधा यमलोक पहुँचा किन्तु यमराज अनुपस्थित थे। नचिकेता ने उनके आने की प्रतीक्षा में तीन दिन बिना कुछ खाये-पिये व्यतीत कर दिया। जब यम वापस आये तो नचिकेता को देखकर आश्चर्यचकित हुए और अतिथि सत्कार में उपेक्षा के प्रायश्चित् के रूप में नचिकेता से तीन वर माँगने को कहा।

नचिकेता ने तीन वरदान माँगे-

1- मेरे यमलोक से लौटने पर मेरे पिता मुझे पहचान लें और प्रसन्न हों।
2-दिव्य अग्निविद्या का ज्ञान
3-जीवन और मृत्यु का रहस्य
यमराज ने आरम्भ के दो वरदान नचिकेता को दे दिया। दूसरे वरदान में यम ने नचिकेता को अग्निविद्या का ज्ञान दिया और उसकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से अग्निविद्या का विवरण पूछा तो नचिकेता ने अक्षरशः उसे दोहरा दिया। नचिकेता की स्मरणशक्ति और प्रतिभा देखकर  प्रसन्न यम ने कहा कि आज से यह अग्निविद्या तुम्हारे नाम से जानी जाएगी। और इस प्रकार नाम पड़ा-"नचिकेताग्नि।" 
दूसरे वरदान तक तो यमराज ने आपत्ति नहीं प्रकट की किन्तु तीसरे वरदान को देने से मना कर दिया। यमराज ने समझाया कि यह अत्यंत गूढ विषय है।इसके स्थान पर तुम संसार का सारा वैभव और साम्राज्य माँग लो किन्तु यह मत पूछो कि मृत्यु के पश्चात् आत्मा का क्या होता है! यह विषय अत्यंत कठिन और अगम्य है।  यम ने अनेक प्रलोभन दिए किन्तु नचिकेता  अपने वरदान पर अड़ा रहा। 
उसका हठ देखकर यम ने कहा ठीक है, सुनो!

"न जायते म्रियते वा विपश्चिन्नायं कुतश्चिन्न बभूव कश्चित्।

अजो नित्यं शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।" -1/2/18


"एष सर्वेषु भूतेषु गूढात्मा न प्रकाशते।

दृश्यते त्वग्रर्य्या बुद्ध्या सूक्ष्मया सूक्ष्मदर्शिभि:।"- 1/3/12

                       ✍️अनुजपण्डित
फ़ोटो साभार गूगल

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