Saturday, February 5, 2022

जनकल्याण एवं ज्ञान के प्रसार हेतु माँ सरस्वती से की प्रार्थना।

भारतीय सनातन संस्कृति सदा से ही प्रकृति और उसके संघटक देवताओं की स्तुति करती आ रही है। प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों का स्वागत करना भी हम भारतीयों की प्रवृत्ति रही है,इसीलिए माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी को जब ऋतुराज वसन्त का आगमन होता है तो हम उसके भी स्वागत हेतु उद्यत हो उठते हैं। 

ऋतुओं में सबसे अधिक आनन्द प्रदान करने वाली वसन्त ऋतु एक नवीन सर्जना का मार्ग प्रशस्त करती है। रंग-बिरंगे पुष्प,नवीन पत्ते,हरियाली की चादर ओढ़े हुए धरती और खेतों में खिलखिलाती फसलें हमें यह संदेश देती हैं कि समाज में हर्ष एवं समृद्धि का विस्तार करने हेतु तैयार हो जायें! 
वसंतपंचमी का वैदिक,पौराणिक एवं वैज्ञानिक महत्त्व भी है जिसके कारण भारत ही नहीं अपितु अन्य देशों में भी इसे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। षट्ऋतुओं में श्रेष्ठ वसन्त पञ्चमी का वैदिक एवं  धार्मिक महत्त्व इसलिए है क्योंकि इसी दिन हिरण्यगर्भ प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि में शब्द एवं रस का संचार करने तथा समाज का कल्याण करने हेतु माँ वाग्देवी का प्राकट्य किया था। इसलिए बच्चों को अक्षरज्ञान कराने की शुरुआत इसी तिथि को ही की जाती है।

जब वसन्त का आगमन होता है तो शरद ऋतु में मन्द पड़ चुकी धरा की अग्नि एक नवीन सर्जना की ओर अग्रेषित होती है और समस्त चराचर जगत् पूरी ऊर्जा के साथ   सकारात्मक सर्जना की दिशा में यात्रा आरम्भ करता है।ऐसा माना जाता है कि सूर्य की अग्नि और मनुष्य की आंतरिक अग्नि का संतुलन काल है-वसन्त।

वसन्त पञ्चमी का महत्त्व इसलिए भी है क्योंकि त्रेता में श्रीराम जब वनवासावधि में थे तो माता शबरी के जूठे बेर इसी तिथि को ही खाये थे।ऐतिहासिक महत्त्व की बात करें तो मोहम्मद गोरी से पराजित होने के बाद पृथ्वीराज चौहान को जब अफगानिस्तान ले जाया गया तो यही वह तिथि थी जब पृथ्वीराज ने कुशलता से शब्दभेदी बाण चलाकर  मोहम्मद गोरी के प्राण हर लिए थे।

इस प्रकार वसन्त पञ्चमी का महत्त्व कई परिप्रेक्ष्यों में हमें समझने को मिलता है। मनुष्य,पशु-पक्षियों को तो यह ऋतु प्रिय है ही,  भगवान् को भी अत्यंत प्रिय है।तभी तो द्वापर में श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि "ऋतुओं में मैं वसन्त हूँ।" 



सर्जनात्मक कार्य करने वाले,बौद्धिकवर्ग  एवं कलाप्रेमियों के लिए यह पर्व अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इस दिन माता सरस्वती की पूजा-अर्चना एवं हवन आदि  करके उनका जन्मोत्सव मनाते हैं तथा अपने ज्ञान,प्रतिभा और चिंतन में वृद्धि हेतु प्रार्थना करते हैं। जिसे भी शिक्षा,ज्ञान और भारतीयता से प्रेम होगा,वह निश्चित रूप से वसन्त पञ्चमी के दिन लोक कल्याण हेतु माँ वागीश्वरी की आराधना करता है।

लोक कल्याण एवं समाज में ज्ञान के प्रसार की कामना से युक्त होकर ही उत्तरप्रदेश के प्रयागराज जनपद में स्थापित नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा त्रिवेणी(संगम) क्षेत्र पर माँ सरस्वती का आराधन एवं हवन सम्पन्न किया गया,साथ ही समाज को यह संदेश दिया गया कि हम अपनी संस्कृति, पर्वों, एवं प्रकृति के महत्त्व को समझने का प्रयास करें तथा एक सकारात्मक एवं स्वस्थ मानसिकता वाले समाज का निर्माण करने हेतु सतत प्रयत्नशील रहें। 


                         ✍️ अनुज पण्डित

भक्ति और उसके पुत्र

🍂'भज् सेवायाम्' धातु से क्तिन् प्रत्यय करने पर 'भक्ति' शब्द की निष्पति होती है,जिसका अर्थ है सेवा करना। सेवा करने को 'भ...