वाल्मीकीय रामायण में महाभारत की किञ्चित् छाया दिखाई नहीं पड़ती,जबकि महाभारत में रामायण के प्रभाव की बहुलता है। महाभारत के वनपर्व (292-99) में 'रामोपाख्यान' इसका प्रथम उदाहरण माना जा सकता है। द्रोणपर्व में रामायण का एक श्लोक है, जिसमें वाल्मीकि का नाम आया है-
अपि चायं पुरा गीत: श्लोको वाल्मीकिना भुवि।
सम्पूर्ण रामायण पढ़ने से पता चलता है कि मात्र बाल और उत्तरकाण्ड में राम को विष्णु का अवतार दिखाया गया है, शेष समस्त रामायण में उन्हें एक आदर्श मानव के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है, जबकि महाभारत के रामोपाख्यान में उन्हें विष्णु का अवतार बताया गया है-
तदर्थमवतीर्णोऽसौ मन्नियोगाच्चतुर्भुज:।
विष्णु: प्रहरतां श्रेष्ठ: स तत्कर्म करिष्यति।।
महाभारत में अन्यत्र राम से सम्बन्धित कई स्थलों को तीर्थ कहा गया है तथा हनुमान्-भीम संवाद में भीम को हनुमान् का उत्तरवर्ती बताया गया है। इसी संवाद में हनुमान् जी भीम को रामकथा भी सुनाते हैं।
अतः उपर्युक्त तथ्य यह स्पष्ट करते हैं कि महाभारत के रचयिता को रामायण की जानकारी थी। किसी भी रचनाकार की रचना में उसके पूर्ववर्ती ग्रन्थों की छाया मिल ही जाती है।
✍️ अनुज पण्डित