Friday, July 8, 2022

पुत्री द्वारा पिता के पैर छूने का रिवाज पुराना है

संस्कृत जगत् के मार्तण्ड कविकुलगुरु कालिदास की सर्वोत्कृष्ट सर्जना "अभिज्ञानशाकुन्तलम्" के चतुर्थ अंक में एक श्लोक है-
                             🍂
अभिजनवतो: भर्तु: श्लाघ्ये स्थिता गृहिणीपदे,
विभवगुरुभि: कृत्यैस्तस्य प्रतिक्षणमाकुला।
तनयमचिरात् प्राचीवार्कं प्रसूय च पावनं,
मम विरहजां न त्वं वत्से शुचं गणयिष्यसि।।४/१९

         टीकाकारों ने यह श्लोक श्लोकचतुष्टयम् के अंतर्गत रखा है जिसका हिंदी अनुवाद है-

जब शकुंतला पतिगृह जाने को तैयार होती है तो पिता को छोड़ने का दुःख उसे व्यथित कर देता है, तब उसके धर्मपिता काश्यप कहते हैं कि- पुत्री! तुम इस प्रकार से दुःखित न हो। तुम महाकुलीन पति के प्रशंसनीय गृहस्वामिनी अर्थात् महारानी पद पर अधिष्ठित होकर, ऐश्वर्य के कारण महत्त्वपूर्ण कार्यों में हरक्षण व्यस्त होकर और शीघ्र ही पूर्वदिशा जिस प्रकार पवित्र सूर्य को जन्म देती है, उसी प्रकार पवित्र चक्रवर्ती पुत्र को जन्म देकर, मेरे वियोग के दुःख को भूल जाओगी।

इतना सुनते ही शकुंतला, पिता के चरणों में गिर पड़ती है। श्लोक के ठीक नीचे ही कोष्ठक में यह पंक्ति लिखी है- "शकुन्तला पितु: पादयो: पतति।"

प्रत्येक बेटी ससुराल जाने के बाद अपनी जिंदगी के कार्यों में इतना रम जाती है कि उसे मायके का वियोग सताता नहीं है। बेटी जब माँ बन जाती है तो अपना सारा प्यार,सारा ध्यान पुत्र की परवरिश में लगा बैठती है लिहाज़ा मायका छूटने का दुःख उसे व्यथित नहीं करता । जब ऐसा आशीष भरा वचन शकुंतला ने पिता के मुख से सुना तो उनके पैर छू लेती है इसका अर्थ है कि महाभारतकाल में बेटी अपने पिता के पैर छूती थी और कालिदास जिस स्थान से सम्बंध रखते थे वहाँ भी ऐसा चलन है कि बेटियाँ पिता के पैर छुए।

हमारी भारतीय सनातन संस्कृति कितनी रहस्यमयी और वैविध्यता से परिपूर्ण है न! बेटी द्वारा पिता के पैर छूने का रिवाज भारत के सभी प्रान्तों में नहीं है किंतु कुछ प्रान्तों में था और आज भी है। यह रिवाज सभी प्रान्तों में भले न हो किन्तु बेटी की विदाई के समय संताप और आँसू बहाने का रिवाज  सभी प्रान्तों में क्योंकि बेटी है ही ऐसी कि उसके घर से जाते समय परिजनों के आँसू छलक आते हैं।तभी तो एक जगह काश्यप ऋषि ने कह दिया कि जब मुझ जैसे तपस्वी का यह हाल है तो गृहस्थियों की भला क्या स्थिति होती होगी!
          
         ✍️ अनुज पण्डित

भक्ति और उसके पुत्र

🍂'भज् सेवायाम्' धातु से क्तिन् प्रत्यय करने पर 'भक्ति' शब्द की निष्पति होती है,जिसका अर्थ है सेवा करना। सेवा करने को 'भ...