🍂प्रसन्नता कैसे प्राप्त करें? वास्तव में इस लोक में प्रत्येक व्यक्ति इसी प्रश्न का उत्तर खोज रहा है। यह एक आंतरिक खोज है। एक ऐसी आन्तरिक प्रेरणा,जो जन्म से मृत्यु तक मनुष्य की समस्त गतिविधियों के लिए उत्तरदायी है। प्रसन्नता की खोज ही मानव को समस्त भौतिक सुविधाओं की ओर धकेलती है। यह एक ऐसी प्यास है जो कभी नहीं बुझती।इसके वशीभूत होकर ही मनुष्य भौतिक संसाधन जुटाता फिरता है किन्तु दुःखद है कि जिस प्रसन्नता के लिए वह अहर्निश प्रयत्न करता है,वह उसे कभी नहीं प्राप्त होती।
मनुष्य आख़िर कब इस सत्य को पहचानेगा कि प्रसन्नता,धन-सम्पत्ति या भौतिक संसाधनों से नहीं मिल सकती!सच कहूँ तो प्रसन्नता के चक्कर में हम अपने भीतर तृष्णा भर रहे हैं तथा चित्त को अशान्त करते हैं। हम उन चीजों को पाने का यत्न करते हैं जो हमारे पास नहीं हैं।हम यह भूल जाते हैं कि संसार के सुखों में भय,पीड़ा,चिंता,अवसाद तथा कुंठा आदि विकार मिश्रित हुआ करते हैं।
स्वामी शिवानन्द सरस्वती कहते हैं कि "हे मानव!तुम उस विशुद्ध आनन्द,अनन्त शांति और प्रसन्नता का अनुभव कर सकते हो,यदि अपने भीतर सुन्दर चिंतन,अनुभव,विचार,कर्म,वाणी,विश्वास तथा आचरण विकसित कर सको।जीवन को अध्यात्म की ओर ले जाकर उसे दिव्य बनाओ।ईश्वर का स्मरण करते हुए जागो। जैसे ही नींद से जागो तो सर्वप्रथम उस अदृश्य, सर्वशक्तिमान् ईश्वर का ध्यान करो।"
यदि हम इस प्रकार ईश्वर का स्मरण करेंगे,उनसे प्रार्थना करेंगे तो हम अपने दैनिक जीवन के संघर्षों का सामना करने हेतु आत्मिक शक्ति प्राप्त कर सकेंगे। प्रार्थना का आत्मा के लिए वही महत्त्व है,जो शरीर के लिए भोजन का। बिस्तर से उठने से पहले ही यह दृढ़ संकल्प करें कि दिनभर कुछ न कुछ अच्छा करेंगे। जब तक कोई दिव्य जीवन जीना नहीं सीखेगा,उसे भौतिक संसाधन प्रसन्नता नहीं दे सकेंगे।मनुष्य का भविष्य उसके विचारों और कर्मों से बनता है।इसलिए इसी क्षण अपने विचार और मानसिक स्थिति को बदलिए। सत्य का जीवन जिओ, दिव्य जीवन यापन करो तथा सदैव प्रसन्न रहो। प्रभु हमें अच्छा स्वास्थ्य, दीर्घायु,शान्ति, मोक्ष तथा आत्म प्रकाश से पूरित कर देंगे।
#पढ़ते_पढ़ते ✍️ डॉ. अनुज पण्डित