🍂ब्रह्म, जीव और जगत् का बोध प्राप्त करना ही उपनिषदों का मुख्य प्रयोजन है। ज्ञान स्थूल से सूक्ष्म की ओर ले जाता है,इसीलिए उपनिषदों को "अवर" कहकर संबोधित किया गया। स्थूल हैं-जगत् और पदार्थ तथा सूक्ष्म हैं-मन और आत्मा।
श्रीमद्भगवदगीता,ब्रह्मसूत्र और उपनिषद् को प्रस्थानत्रयी कहा गया है। उपनिषद् रूपी जल की धाराओं में वेदांत दर्शन का अद्वैतवाद प्रमुख है,तभी तो आदि शंकराचार्य ने उपनिषदों पर भाष्य लिखा! शंकराचार्य अद्वैतवेदान्त के प्रतिपादक थे। उपनिषदों का तत्त्वज्ञान धर्म और संस्कृति पर साफ़ परिलक्षित होता है। चाहे सांख्य हो या वेदांत,सभी भारतीय दर्शनों का मूल आधार भारतीय संस्कृति के अक्षय भाण्डार उपनिषद् ही हैं।
वैदिक युग में मनुष्यों ने जो जिज्ञासाएँ कीं उनके उत्तर हमारे दार्शनिक ऋषियों ने दिए इसीलिए ऋषियों की ज्ञानचर्चा का सारतत्त्व हैं उपनिषद्।
मनुज,दनुज,देवता,पशु-पक्षी,विश्वम्भरा,प्रकृति तथा जड़-चेतन को माध्यम बनाकर रची गयीं प्रेरणादायक कहानियों से भरे पड़े हैं उपनिषद्। इन कहानियों में वेदों की बातों की व्याख्या है। जो बातें वेदों में दुरूह ढंग से कही गयीं, उन्हीं को सरल एवं सुबोध बनाते हैं उपनिषद्।
प्रकृति के घटक और इनके देवता ही इन कहानियों के पात्र बनाये गए हैं।जैसे- इंद्र,वरुण,अग्नि,रुद्र, सूर्य,नदियाँ,पहाड़,पेड़,समुद्र आदि।
गुरु-शिष्य परम्परा के आदर्शपरक दृष्टांतों के द्वारा जगत् के गूढ़ रहस्यों का उद्घाटन बड़े ही रोचक ढंग से किया गया है। गुरु-शिष्य के संवाद प्रश्नोत्तर शैली में हैं। शिष्य प्रश्न करता है और गुरु उन प्रश्नों के उत्तरी देता है।
मुख्य कथाओं में कार्तवीर्य की कथा, नचिकेता की कथा,उद्दालक,श्वेतकेतु,सत्यकाम जाबालि एवं रजि की कथा को रखा गया है। इस प्रकार आध्यात्मिक एवं भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं उपनिषद्।
क्रमशः-------------जारी रहेगा।
✍️ अनुज पण्डित
बहुत खूब ,,,तत्वमसि🙏
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