Friday, September 30, 2022

आत्मा और शरीर में प्रधानता का प्रश्न

आत्मा एवं शरीर में यदि प्रधानता तथा गौणता की बात करें तो आप किसे क्या कहेंगे? कुछ कहेंगे आत्मा प्रधान है जी! और कुछ इसके उलट शरीर को प्रधान कहेंगे किन्तु इसके पीछे के तर्क क्या होंगे? मैं तो शरीर को गौण ही कहूँगा क्योंकि यह नश्वर है। अस्थि,रक्त और मज्जा का ढांचा मात्र यह शरीर बिना आत्मा के निष्क्रिय है। अब निष्क्रिय वस्तु भला प्रधानता कैसे हासिल कर सकती है! 

आत्मा की प्रधानता स्वयं सिद्ध है। तीनों कालों में सदा विद्यमान और अप्रभावित रहने वाला आत्मा कथमपि गौण हो सकेगा! भगवद्गीता के उद्धरण याद कीजिये जिनमें योगेश्वर कृष्ण ने इसे अविनाशी, अजन्मा और निर्विकारी कहकर इसकी शाश्वत सत्ता सिद्ध की है। मजे की बात यह कि जो प्रधान नहीं है (अर्थात् शरीर),उसकी रक्षा,साज-सज्जा तथा चिन्ता में प्राणी कोई कसर नहीं छोड़ता। वह इसको टिकाऊ बनाने की जुगत में इतना व्यस्त है कि आत्मतत्त्व की उसे सुध ही नहीं रही।

शायद प्राणी की शरीर के प्रति चिन्ता उचित है क्योंकि उसे ज्ञात है कि पंचमहाभूतों के सन्निपात से बना यह देह प्रत्येक क्षण परिवर्तनशील है। यदि समय-समय पर इसकी सेवा-सुश्रुषा न की जाएगी तो समय से पहले ही यह देही से स्वयं को अलग कर लेगा। आत्मा का क्या है! वह तो किसी प्रकार की अपेक्षा ही नहीं रखता,जरा-मरण तथा दुःखत्रय का भय उसे नहीं इसलिए प्राणी उसकी ओर से चिन्तामुक्त रहा करता है। 


इस प्रकार के तर्कों से तो आत्मा की प्रधानता सिद्ध हो जाती है किन्तु आत्मा का अस्तित्व तभी है, जब वह भौतिक शरीर में रहेगा। उसे किसी न किसी देह की कामना होती है ताकि उसकी भी सक्रियता बनी रहे। देह और देही-ये दोनों एक दूजे पर आश्रित हैं। 

         ✍️ अनुज पण्डित

Wednesday, September 14, 2022

हिंदी या हिन्दी? समस्त भ्रमों का निवारण

🍂सर्वप्रथम तो यह स्पष्ट हो कि १४ सितम्बर को हिन्दी-दिवस मनाया जाता है, न कि विश्व हिन्दी-दिवस। आज की तारीख को हिन्दी भारत की राजभाषा के रूप में मान्य हुई। १० जनवरी सन् २००६ को भारत सरकार द्वारा विश्व हिन्दी-दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। इसमें निहित उद्देश्य यह था कि इस प्यारी भाषा को विकसित तथा वैश्विक स्तर पर  प्रसारित किया जाए। 


अब आते हैं, हिंदी और हिन्दी शब्दों पर छिड़े महासङ्ग्राम पर । ध्यानाकृष्ट हो कि जिसे आप बिन्दी या बिन्दु कहकर सम्बोधित कर रहे हैं, उसका स्वरूप डॉट(.) , बिन्दी अथवा  दशमलव जैसा नहीं और न ही उसका नाम बिन्दी अथवा बिन्दु है। इसका वास्तविक नाम अनुस्वार है, जिसका स्वरूप छोटे से वृत्त सदृश(०) होता है। 

यही लन्तरानी विसर्ग के साथ भी हुई। उसमें भी अनुपात-चिह्न की भाँति दो बिन्दियाँ नहीं बल्कि दो छोटे गोले हैं। कम्प्यूटर महोदय के कोश में यह छोटा सा वृत्त जैसा दिखने वाला चिह्न किसी ने रखा ही नहीं, जिसके कारण पुस्तकों में इनकी जगह बिन्दु(.)ही  छपता रहा।  

बहुतेरे भाषा-शिक्षक  विद्यार्थियों को इसका असली स्वरूप बताते ही नहीं, जिस कारण विद्यार्थी से प्रोफेसर बनने तक की यात्रा इसी बिन्दु पर  विश्वास करके होती रहती है।


अब प्रश्न उठता है कि 'हिंदी' शुद्ध है या 'हिन्दी?' तो भैया मेरे इसका उत्तर जानने हेतु पाणिनि की शरण लेनी पड़ेगी ,काहे से कि हिन्दी का अपना कोई समृद्ध व्याकरण है ही नहीं! पाणिनि ने व्यञ्जन सन्धि के अन्तर्गत "परसवर्ण सन्धि" की चर्चा की,जिसका सूत्र है-"अनुस्वारस्य ययि परसवर्ण:।" 


इसे हिन्दी भाषा में कहें तो 'यय् प्रत्याहार के परे होने पर अनुस्वार के स्थान पर परसवर्ण होता है।' परसवर्ण का अर्थ है- बाद में जो वर्ण है, उसके सवर्णियों में से आदेश होना। कोई पद हो और उसके मध्य में अनुस्वार(०या •) हो तो अनुस्वार के स्थान पर सामने वाले वर्ण का पञ्चम वर्ण हो जाता है। जैसे-

शां+तः= शान्त:।      

सं+कल्प= सङ्कल्प ।


इस सूत्र से पहले भी दो सूत्र आते हैं-मोऽनुस्वार: और नश्चापदान्तस्य झलि। इनमें से प्रथम सूत्र  पद के अन्त में उपस्थित मकार(म्) और नकार(न्) दोनों के स्थान पर अनुस्वार करता है,झल् प्रत्याहार का वर्ण बाद में हो तो। जैसे-

आक्रम्+ स्यते= आक्रंस्यन्ते।

यशान्+सि= यशांसि।


ऊपर का सूत्र हिन्दी शब्द पर लागू होगा। इसलिए हिंदी नहीं बल्कि हिन्दी शब्द ही खाँटी माना जाएगा। हिं+द करेंगे तो द के पञ्चम वर्ण न् का ही आगमन होगा और सिद्ध होगा हिन्द। 


हिंदी शब्द को स्वीकारने वाले इसलिए हिन्दी के पक्षधरों से मुठभेड़ कर बैठते हैं क्योंकि उन्होंने किसी हिन्दी व्याकरण की पुस्तक पढ़ ली होगी! कुछ पुस्तकें हैं,जो यह दावा करती हैं कि अनुस्वार अपने आगे आने वाले वर्ण के पञ्चम वर्ण का बोधक होता है। 
                         ✍️ अनुज पण्डित

Tuesday, September 13, 2022

क्या अंग्रेजी में अभिवादन करना उचित है?

सम्प्रति अभिवादन हेतु गुड मॉर्निंग,गुड ऑफ्टरनून, गुड इवनिंग,गुड नाईट इत्यादि शब्दों का चलन चरम पर है। इन तमाम शब्दों में एक शब्द "गुड नून" भी है, किन्तु न जाने क्यों इस शब्द से लोगबाग मुँह फेर लेते हैं! गुड ऑफ्टरनून के पहले आने वाले इस बेचारे निरीह शब्द को भला क्यों नहीं बोला जाता! 
अच्छा,इन शब्दों का प्रयोग करने वालों के सम्मुख एक बड़ी कठिनाई यह होती है कि उन्हें इनके प्रयोग पर उतना ही ध्यान केंद्रित करना पड़ता है, जितना कि किसी शोरूम में लगे पारदर्शी दरवाजे पर लिखे पुश और पुल को पढ़ने में!  उक्त शब्दों को बोलने से पहले उसे समय का भान करना पड़ता है।
अंग्रेजी और अंग्रेजी मीडियम संस्थानों की यह प्रथा    इस कदर हावी है कि लोग अभिवादन का महत्त्व विस्मृत कर बैठे! भारतीय संस्कृति एवं सनातन व्यवस्था में प्रणाम,नमस्ते आदि शब्दों के प्रयोग के बदले व्यक्ति को आशीष प्राप्त होता है, किन्तु अंग्रेजी के इन शब्दों को बोलने से बदले में इन्हीं शब्दों का पलटवार होता है,न कि आशीर्वाद लब्ध होता! भारतीय संस्कृति एवं हमारे शास्त्र सिखाते हैं कि प्रातःकाल उठकर बड़ों को प्रणाम निवेदित करना चाहिए। तुलसीदास  ने तभी तो लिखा कि-
प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा।।

सोचिए,यदि कोई इस चौपाई को नकारकर प्रातः काल उठकर पितरौ एवं गुरु को उपर्युक्त अंग्रेजी-शब्द बोले तो क्या बदले में उसे आशीर्वाद मिल सकेगा? नहीं.. कभी नहीं। मैंने काफ़ी हद तक अपने विद्यार्थियों की इस आदत को  क्षीण किया है। मैं उनसे कहता हूँ कि इतने सारे शब्दों को याद रखने से अच्छा है, प्रणाम या नमस्ते बोला जाए! न शब्दों का भार, न समय देखने की झंझट!
                        ✍️ अनुज पण्डित

भक्ति और उसके पुत्र

🍂'भज् सेवायाम्' धातु से क्तिन् प्रत्यय करने पर 'भक्ति' शब्द की निष्पति होती है,जिसका अर्थ है सेवा करना। सेवा करने को 'भ...