Thursday, March 30, 2023

गंगापुत्र का "मात्स्यन्याय" (लॉजिक ऑफ फिश)

महाभारत काल के गंगापुत्र अर्थात् पितामह भीष्म जब अपने ही प्रिय शिष्य धनञ्जय की बनाई हुई बाणशैय्या पर थे, तो  युधिष्ठिर ने उनसे कुछ सीखने-जानने की इच्छा व्यक्त की। तब भीष्म ने युधिष्ठिर को अनेक प्रकार के धर्मों का उपदेश दिया,जिसमें से एक उपदेश था-राजधर्म,जिसका उल्लेख महाभारत के शान्तिपर्व में प्राप्त होता है। 
भीष्म ने कहा कि राज्य की स्थापना के लिए यदि कोई बलशाली व्यक्ति उद्यत हो तो उसके समक्ष सबको ही झुक जाना चाहिए। उन्होंने अराजकता को बड़ा भारी पाप बताया और कहा कि अराजक राज्य शक्तिहीन होकर नष्ट हो जाते हैं। राज्य के विषय में भीष्म की इस अवधारणा को "मात्स्यन्याय" कहा जाता है। जैसे पानी के भीतर निर्बल मछलियों का भक्षण उससे ज्यादा बलशाली मछली कर लेती है,वैसे ही अधिक बलशाली मनुष्य अपने से कमतर बलशाली मनुष्य का धन,स्त्री आदि सब छीन लेता है और उसकी हत्या कर देता है।इसी को मात्स्यन्याय अर्थात् लॉजिक ऑफ फिश कहते हैं।

गंगापुत्र  का मानना था कि लोभ,मोह,काम,क्रोध,मद तथा मत्सर-ये छः विकार ही मात्स्यन्याय के कारण हैं। इन सबसे मुक्त होना सामाजिक जीवन निर्माण का उद्देश्य है।इन्हीं  विकारों पर विजय प्राप्त करना ही "सभ्यता" है।

पढ़ते-पढ़ते                    ✍️ अनुज पण्डित

Tuesday, March 7, 2023

आइये जानते हैं कि क्यों आवश्यक है होलिका दहन एवं रंगोत्सव!

होलिका दहन की धार्मिक एवं पौराणिक मान्यता को एक पल के लिए नकार भी दोगे लेकिन क्या उसकी वैज्ञानिकता से मुँह बिचका सकोगे?

बिल्कुल भी नहीं। हमारे उत्सव,रीतियाँ एवं परम्पराएँ किसी एक समुदाय या पंथ विशेष के कल्याण हेतु नहीं हैं अपितु विश्वकल्याण एवं एक स्वस्थ समाज को मजबूती प्रदान करने हेतु कटिबद्ध हैं। बेशक आप हिरण्यकशिपु, होलिका एवं प्रह्लाद आदि पात्रों को कपोलकल्पित मानकर नजरअन्दाज कर दीजिये किन्तु तनिक होलिका दहन की वैज्ञानिक प्रामाणिकता पर ध्यान देंगे तो स्वयं हो बोल पड़ेंगे कि वाह! कितना महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी उत्सव है! 

उत्सव...सदा से ही मनुष्य को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं।  दुःख,अवसाद,कुण्ठा, चिंताओं तथा नीरस जीवन से कुछ समय तक स्वयं को मुक्त रखने हेतु मनुष्य सदा उत्सवधर्मी रहा है। शिशिर की विदाई के पश्चात् ऋतुराज के कदम रखते ही वातावरण अँगड़ाई लेता है तथा विशेष परिवर्तन से युक्त होकर हमें अपने प्रभाव से अवगत कराता है। ऋतु परिवर्तन के इस काल में थकान,सुस्ती,उनींद तथा आलस्य का अनुभव होता है। साथ ही इस मौसम में वातावरण में बैक्टीरिया हावी हो जाते हैं,फलस्वरूप संक्रामक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

होलिका दहन तथा उसमें डाले गए गुग्गुल,राई तथा कर्पूर आदि पदार्थों के प्रभाव से वातावरण के तापमान में बढ़त होती है जिसके कारण संक्रामक बीमारियों का प्रभाव अत्यधिक न्यून हो जाया करता है। जीव विज्ञानियों ने भी दावा किया है कि शुद्ध रूप में अबीर या गुलाल आदि जब साफ पानी के साथ त्वचा पर पड़ता है तो शरीर का आयनमण्डल मजबूत होता है तथा शरीर को ताजगी का अनुभव होता है। आपने देखा होगा कि  हमारा लोकगीत फगुआ तानकर ऊँचे स्वर में गाया जाता है!  ऐसा इसलिए ताकि शरीर से आलस,सुस्ती आदि विकार फुर्र हो जायें और एक नई स्फूर्ति एवं चेतना का संचार हो।

मैंने कहीं पढ़ा था- "पश्चिमी फिजिशियन भी यह कहते हैं कि शरीर में रंगों की कमी हमें कई तरह की बीमारियों की ओर धकेलती है।"

उक्त बातों के अतिरिक्त यह पर्व स्वच्छता का भी प्रतीक है,मच्छर,धूल तथा कीटाणुओं का सफाया करके हम स्वस्थ जीवन का आनन्द तो लेते ही हैं!

                          ✍️ अनुज पण्डित

भक्ति और उसके पुत्र

🍂'भज् सेवायाम्' धातु से क्तिन् प्रत्यय करने पर 'भक्ति' शब्द की निष्पति होती है,जिसका अर्थ है सेवा करना। सेवा करने को 'भ...