महाभारत काल के गंगापुत्र अर्थात् पितामह भीष्म जब अपने ही प्रिय शिष्य धनञ्जय की बनाई हुई बाणशैय्या पर थे, तो युधिष्ठिर ने उनसे कुछ सीखने-जानने की इच्छा व्यक्त की। तब भीष्म ने युधिष्ठिर को अनेक प्रकार के धर्मों का उपदेश दिया,जिसमें से एक उपदेश था-राजधर्म,जिसका उल्लेख महाभारत के शान्तिपर्व में प्राप्त होता है।
भीष्म ने कहा कि राज्य की स्थापना के लिए यदि कोई बलशाली व्यक्ति उद्यत हो तो उसके समक्ष सबको ही झुक जाना चाहिए। उन्होंने अराजकता को बड़ा भारी पाप बताया और कहा कि अराजक राज्य शक्तिहीन होकर नष्ट हो जाते हैं। राज्य के विषय में भीष्म की इस अवधारणा को "मात्स्यन्याय" कहा जाता है। जैसे पानी के भीतर निर्बल मछलियों का भक्षण उससे ज्यादा बलशाली मछली कर लेती है,वैसे ही अधिक बलशाली मनुष्य अपने से कमतर बलशाली मनुष्य का धन,स्त्री आदि सब छीन लेता है और उसकी हत्या कर देता है।इसी को मात्स्यन्याय अर्थात् लॉजिक ऑफ फिश कहते हैं।
गंगापुत्र का मानना था कि लोभ,मोह,काम,क्रोध,मद तथा मत्सर-ये छः विकार ही मात्स्यन्याय के कारण हैं। इन सबसे मुक्त होना सामाजिक जीवन निर्माण का उद्देश्य है।इन्हीं विकारों पर विजय प्राप्त करना ही "सभ्यता" है।
पढ़ते-पढ़ते ✍️ अनुज पण्डित