Monday, August 28, 2023

रक्षाबन्धन का आरम्भ और महत्त्व

🍂सनातन की परम्पराओं, रीति-रिवाजों तथा आचार-विचार में वैदिकता अवश्य परिलक्षित होती है।कोई भी परम्परा एक दिन में नहीं प्रसारित हुई बल्कि इसके लिए वर्षों का समय लगा। हमारे त्योहार जो हमें एकता के सूत्र में पिरोते हैं,वे अत्यंत प्राचीन काल से मनाये जाते रहे हैं।

 इनके पीछे न केवल ऐतिहासिक कारण बल्कि वैदिक और पौराणिक कारण भी उत्तरदायी हैं। बात करें रक्षाबन्धन की तो इसके पीछे भी वैदिक कारण है।हिन्दू एवं जैन मतावलम्बियों द्वारा स्वीकार्य प्रेम एवं सुरक्षा का यह त्योहार सबसे पहले तब अस्तित्व में आया जब देवासुर संग्राम छिड़ा था। देवताओं की शक्ति आसुरिक शक्तियों के सम्मुख कमतर पड़ने लगी थी।यह देखकर देवराज इंद्र चिन्तित हो गए तथा उन्होंने देवगुरु बृहस्पति से प्रार्थना की कि गुरुदेव! अब आप ही कुछ कीजिये ताकि हम देवगण असुरों से विजय प्राप्त कर सकें। 

तब देवगुरु ने सावन माह की पूर्णिमा को आक के रेशों का रक्षासूत्र बनाकर देवराज की कलाई पर बाँध दिया और आश्वासन दिया कि यह रक्षासूत्र तुम्हारी रक्षा करेगा और विजय प्राप्त कराएगा। इस प्रकार मानव संस्कृति में  प्रथम रक्षासूत्र बाँधने वाले देवगुरु बृहस्पति हुए।तभी से सुरक्षा की कामना से यह रक्षासूत्र बाँधने का प्रचलन आरम्भ हुआ। पौराणिक कथा कहती है कि भगवान् विष्णु ने अपने वामन अवतार में राजा बलि के हाथ में रक्षासूत्र बाँधकर उसे वचनबद्ध किया था। इस प्रकार यह रक्षासूत्र सङ्कल्प का प्रतीक भी माना जाता है । मध्य इतिहास में भी पढ़ने को मिलता है कि मेवाड़ को बहादुरशाह से बचाने के लिए चित्तौड़गढ़ की रानी कर्णावती ने मुगल शासक हुमायूँ को राखी भेजी थी। 

यह रक्षासूत्र किसी को भी बाँधा जा सकता है किन्तु  भाई-बहन के त्योहार के रूप में अधिक प्रचलित है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई में राखी बाँधकर उसे अपनी सुरक्षा के लिए वचन बद्ध करती है। एक प्रकार से इस बात का भी द्योतक है कि इस दिन रक्षा सूत्र बाँधकर हम अपने किसी उद्देश्य की प्राप्ति का संकल्प लेते हैं। आजकल विभिन्न प्रकार की राखियाँ बाजार में उपलब्ध हैं,आप अपनी पसन्द की राखी ले सकते हैं किन्तु एक होती है वैदिक राखी जिसके पीछे थोड़ा सा वैज्ञानिक कारण छिपा है। दूर्वा, केसर,चावल,चंदन,हल्दी और सरसों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर एक पीले रंग के रेशमी कपड़े में बाँध लें और इसकी सिलाई कर दें।इसके बाद इसे मौली या कलावे में  पिरो दें। इस प्रकार आपकी वैदिक राखी तैयार हो जाएगी। इसमें मौजूद पदार्थ आपको संक्रामक बीमारियों से बचायेंगे। 

राखी या रक्षासूत्र बाँधते समय इस मंत्र का उच्चारण करना भी शुभ होता है-🍂
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।। 
इस मंत्र का अभिप्राय यह है कि जिस रक्षासूत्र से महाबली राजा बलि को वचनबद्ध कर दिया,वही रक्षा सूत्र मैं आपको बाँधता/बाँधती हूँ। यह रक्षासूत्र सदैव आपको अपने संकल्प का स्मरण कराता रहे तथा कभी टूटे नहीं।    
                       ✍️ डॉ. अनुज पण्डित

फ़ोटो साभार गूगल

Saturday, August 26, 2023

वेदों में सूर्य (Solar)


वेदों में सूर्य और सौर-ऊर्जा से सम्बन्धित विस्तृत सामग्री प्राप्त होती है।यथा-सूर्य का महत्त्व,अनेक सूर्य,सूर्य की शक्ति का आधार,सूर्य और चराचर का सम्बन्ध,सौर ऊर्जा के विविध चमत्कार आदि का वर्णन। सूर्य जगत् की आत्मा है। सूर्य से ही इस धरा का जीवन है। यह सर्वमान्य तथ्य है। वैदिक काल में भी सूर्य को समस्त जगत् का कर्त्ता स्वीकार किया जाता रहा है।सौरमण्डल का यह अति विशिष्ट ग्रह है जो चराचर जगत् को ऊर्जा प्रदान करता है। यह सौरमण्डल के समस्त ग्रहों-उपग्रहों का नियन्ता भी है।समूचा सौरमण्डल इसी से ऊर्जित हुआ करता है।यही अपने आकर्षण से पृथ्वी आदि ग्रहों को रोके हुए है। इसी से संसार को जीवनी शक्ति मिलती है इसीलिए इसे आत्मा कहा गया है।

यजुर्वेद में चक्षो: सूर्योsजायत कहकर सूर्य को ईश्वर का नेत्र कहा गया है।ऋग्वेद के एक मन्त्र में उल्लेख है कि नानासूर्या: और सप्तादित्या: अर्थात् सूर्य अनेक हैं।सात सूर्य से आशय ज्ञात होता है कि सात सौरमण्डल हैं।
    "सप्त दिशो नाना सूर्या:।देवा आदित्या ये सप्त।"
                  -ऋग्वेद-9.114.3
अथर्ववेद का कहना है कि केंद्रीय सूर्य कश्यप है।ये सात सूर्य उसके अंग हैं।तैत्तिरीय आरण्यक (1.7.1)में इन सप्त सूर्यों के उल्लिखित  हैं-आरोग, भ्राज,पटर, पतंग,स्वर्णर,जयोतिषीमान् और विभास।
 "कश्यप...यस्मिन् अर्पिता: सप्त साकम्।"
                -अथर्ववेद-13.3.10
अथर्ववेद (14.1.2)में वर्णित है कि सूर्य की ऊर्जा का स्रोत सोम अर्थात् हाइड्रोजन है-"सोमेन आदित्या बलिन:।" यजुर्वेद में इसे दूसरे रूप में प्रस्तुत किया गया है।मन्त्र का कथन है कि सूर्य में ये दो तत्त्व मिलते हैं-
1.अपां रसम् जल का सारभाग है,जो ऊर्जा के रूप में है।उद्वयस् शब्द ऊर्जारूप या गैसरूप अर्थ का बोधक है।जल का यह सारभाग हाइड्रोजन है। हाइड्रोजन के 'अपां रस:' इस पारिभाषिक शब्द का प्रयोग हुआ है।
2.'अपां रसस्य यो रस:' का अर्थ है-जल के सारभाग का सारभाग। जल का सारभाग हाइड्रोजन है और उसका सारभाग हीलियम है।मन्त्र में 'सूर्ये सन्तं समाहितम्' के द्वारा स्पष्ट किया गया कि ये दोनों तत्त्व सूर्य में विद्यमान हैं। 

आधुनिक विज्ञान के अनुसार सूर्य में 90% हाइड्रोजन है,8%हीलियम और 2% अन्य द्रव्य।सूर्य की सतह का तापमान छ: हजार डिग्री सेंटीग्रेड है।इस आंतरिक ताप के कारण हाइड्रोजन,हीलियम में परिवर्तित हो जाता है।इसे थर्मो न्यूक्लियर रीएक्शन्स कहा जाता है। तो जिन तथाकथित विद्वानों को यह लगता है कि वेद अप्रमाणिक हैं,उनमें वैज्ञानिकता का अभाव है,वे वेदों का गहन अध्ययन करें। देश के प्रतिष्ठित संस्थान इसरो चीफ ने यदि वेदों का हवाला दिया है तो उस पर विश्वास करने की जरूरत है,उससे सीख लेने की जरूरत है। सरकार का भी यह दायित्व है कि संस्कृत विषय को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाए तथा ज्ञान-विज्ञान की अक्षय निधि वेदों का प्रचार-प्रसार किया जाए ताकि भारत की आधुनिक पीढ़ी इस अपरिचित सत्य से परिचित हो कि भारत के ऋषि-मनीषियों ने वर्षों की मेहनत से वेदरूपी ज्ञान हमें सौंपा था। 
                       ✍️ डॉ. अनुज पण्डित

भक्ति और उसके पुत्र

🍂'भज् सेवायाम्' धातु से क्तिन् प्रत्यय करने पर 'भक्ति' शब्द की निष्पति होती है,जिसका अर्थ है सेवा करना। सेवा करने को 'भ...