वेदों में सूर्य और सौर-ऊर्जा से सम्बन्धित विस्तृत सामग्री प्राप्त होती है।यथा-सूर्य का महत्त्व,अनेक सूर्य,सूर्य की शक्ति का आधार,सूर्य और चराचर का सम्बन्ध,सौर ऊर्जा के विविध चमत्कार आदि का वर्णन। सूर्य जगत् की आत्मा है। सूर्य से ही इस धरा का जीवन है। यह सर्वमान्य तथ्य है। वैदिक काल में भी सूर्य को समस्त जगत् का कर्त्ता स्वीकार किया जाता रहा है।सौरमण्डल का यह अति विशिष्ट ग्रह है जो चराचर जगत् को ऊर्जा प्रदान करता है। यह सौरमण्डल के समस्त ग्रहों-उपग्रहों का नियन्ता भी है।समूचा सौरमण्डल इसी से ऊर्जित हुआ करता है।यही अपने आकर्षण से पृथ्वी आदि ग्रहों को रोके हुए है। इसी से संसार को जीवनी शक्ति मिलती है इसीलिए इसे आत्मा कहा गया है।
यजुर्वेद में चक्षो: सूर्योsजायत कहकर सूर्य को ईश्वर का नेत्र कहा गया है।ऋग्वेद के एक मन्त्र में उल्लेख है कि नानासूर्या: और सप्तादित्या: अर्थात् सूर्य अनेक हैं।सात सूर्य से आशय ज्ञात होता है कि सात सौरमण्डल हैं।
"सप्त दिशो नाना सूर्या:।देवा आदित्या ये सप्त।"
-ऋग्वेद-9.114.3
अथर्ववेद का कहना है कि केंद्रीय सूर्य कश्यप है।ये सात सूर्य उसके अंग हैं।तैत्तिरीय आरण्यक (1.7.1)में इन सप्त सूर्यों के उल्लिखित हैं-आरोग, भ्राज,पटर, पतंग,स्वर्णर,जयोतिषीमान् और विभास।
"कश्यप...यस्मिन् अर्पिता: सप्त साकम्।"
अथर्ववेद (14.1.2)में वर्णित है कि सूर्य की ऊर्जा का स्रोत सोम अर्थात् हाइड्रोजन है-"सोमेन आदित्या बलिन:।" यजुर्वेद में इसे दूसरे रूप में प्रस्तुत किया गया है।मन्त्र का कथन है कि सूर्य में ये दो तत्त्व मिलते हैं-
1.अपां रसम् जल का सारभाग है,जो ऊर्जा के रूप में है।उद्वयस् शब्द ऊर्जारूप या गैसरूप अर्थ का बोधक है।जल का यह सारभाग हाइड्रोजन है। हाइड्रोजन के 'अपां रस:' इस पारिभाषिक शब्द का प्रयोग हुआ है।
2.'अपां रसस्य यो रस:' का अर्थ है-जल के सारभाग का सारभाग। जल का सारभाग हाइड्रोजन है और उसका सारभाग हीलियम है।मन्त्र में 'सूर्ये सन्तं समाहितम्' के द्वारा स्पष्ट किया गया कि ये दोनों तत्त्व सूर्य में विद्यमान हैं।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार सूर्य में 90% हाइड्रोजन है,8%हीलियम और 2% अन्य द्रव्य।सूर्य की सतह का तापमान छ: हजार डिग्री सेंटीग्रेड है।इस आंतरिक ताप के कारण हाइड्रोजन,हीलियम में परिवर्तित हो जाता है।इसे थर्मो न्यूक्लियर रीएक्शन्स कहा जाता है। तो जिन तथाकथित विद्वानों को यह लगता है कि वेद अप्रमाणिक हैं,उनमें वैज्ञानिकता का अभाव है,वे वेदों का गहन अध्ययन करें। देश के प्रतिष्ठित संस्थान इसरो चीफ ने यदि वेदों का हवाला दिया है तो उस पर विश्वास करने की जरूरत है,उससे सीख लेने की जरूरत है। सरकार का भी यह दायित्व है कि संस्कृत विषय को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाए तथा ज्ञान-विज्ञान की अक्षय निधि वेदों का प्रचार-प्रसार किया जाए ताकि भारत की आधुनिक पीढ़ी इस अपरिचित सत्य से परिचित हो कि भारत के ऋषि-मनीषियों ने वर्षों की मेहनत से वेदरूपी ज्ञान हमें सौंपा था।
✍️ डॉ. अनुज पण्डित
Bahut hi sargarbhit lekh
ReplyDeleteAapka bahut bahut dhanyawad bhaiya
Hume ved vigyan se parichit karane ke liye
धन्यवाद,gyanamritam जी
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