Friday, October 27, 2023

वाल्मीकि डाकू नहीं थे,पढ़िये उनकी जयंती पर विशेष लेख

ऋषि कश्यप तथा अदिति के नौवें पुत्र थे वरुण। वरुण का एक विशेषण या अन्य नाम है-'प्रचेतस्'। इन्हीं प्रचेतस् के पुत्र रूप में जन्मे 'रत्नाकर'। प्रचेतस् का पुत्र होने के कारण इन्हें प्राचेतस् भी पुकारा जाता है।रत्नाकर बचपन से ही तपस्वी प्रवृत्ति के थे। एक बार ये ध्यान लगाकर बैठे तो समय का भान ही न रहा। दीर्घकाल तक ध्यानावस्था में बैठे रहने के कारण इनके शरीर को दीमकों ने पूरी तरह ढक लिया। दीमकों को वल्मीक भी कहा जाता है।जब इनका ध्यान टूटा और ये दीमकों की उस बाँबी से बाहर निकले तो "वाल्मीकि" कहलाये। जनश्रुति के अनुसार रत्नाकर के डाकू होने की कथा मुझे मान्य नहीं। ऐसी कथाएँ मनुष्य को प्रेरित करने के उद्देश्य से गढ़ी जाती हैं कि जब एक अपराधी किस्म का व्यक्ति भगवान् का सुमिरन करके महाज्ञानी बन सकता है तो हम क्यों नहीं!

परमपिता ब्रह्मा जी की प्रेरणा से ब्रह्मर्षि नारद इनसे मिले और रामकथा लिखने के लिए प्रेरित किया। ऐसा उल्लेख स्वयं वाल्मीकिरामायण में है। उस समय तक वैदिक संस्कृत का बोलबाला था। लौकिक संस्कृत में कोई भी रचना उस समय तक नहीं हुई थी। स्नान हेतु नदी में गए वाल्मीकि ने देखा कि एक बहेलिए ने मैथुन कार्य में मग्न क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक को मार गिराया। शेष बचा क्रौंच अपने साथी के विरह में शोक प्रकट कर रहा था। वाल्मीकि को यह दृश्य देखकर दुःख हुआ। उस घटना ने वाल्मीकि के हृदय में हलचल मचा दी।उनके हृदय में इतना अधिक शोक उपजा कि वह शोक,श्लोक रूप में प्रस्फुटित हो उठा-

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वती: समा:।
यत्क्रौञ्च मिथुनादेकमवधी काममोहितम्।।

इस श्लोक के माध्यम से उन्होनें उस बहेलिए को शाप दिया और इस प्रकार अनुष्टुप छन्द में बद्ध इस श्लोक ने लौकिक काव्य सर्जना का सूत्रपात किया।      इसीलिए वाल्मीकि को आदिकवि की संज्ञा दी गयी तथा इनकी कृति वाल्मीकिरामायण को आदिकाव्य कहा गया। शरदपूर्णिमा तिथि को वाल्मीकि का प्राकट्य दिवस माना जाता है तथा प्रत्येक वर्ष इस तिथि को इनकी जयंती मनायी जाती है। 
नमन,हे आदिकवि!💐
                             ✍️ डॉ. अनुज पण्डित

3 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर लेख भैया

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  2. काफी समय बाद कुछ àacha पढने मिला

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  3. बढ़िया जानकारी मिली

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