Friday, August 21, 2020

चक्रव्यूह

किसी भी काव्य ,नाटक या अन्य रूपक के भेदों का श्रवण मात्र करने से पूर्ण वास्तविक रसानुभूति होना असंभव है ,यावद् इनको देखा न जाए..क्योंकि अभिनय करने वाले विभिन्न पात्र अपने अभिनय कौशल से कथानक में प्राण ,समस्त मानवीय संवेदनाओं तथा भावनाओं को प्रविष्ट कर दर्शकों को विभिन्न प्रकार के रसों का आस्वादन कराते हैं!!..

यावद् अभिनय चलता है तावद् दर्शक  रस में डूबकर खुद को उस नाटक के इर्द-गिर्द घुमाता रहता है तथा उसी में तल्लीन रहता है...!....अभिनय समाप्त होते ही वह अभिनय की  दुनिया से बाहर आता है तथा अपनी निजी दुनिया में पूर्व की भाँति प्रवेश कर जाता है....नाटक का कथानक,पात्रों का अभिनय कौशल ,मंच की सुन्दरता तथा पात्रों की साज-सज्जा आदि विशेष बातों का वह कुछ दिन वर्णन करता दृष्टिगत होगा किन्तु शीघ्र ही वह इन सब बातों को विस्मृत कर मृत्युलोक के मायावी अभिनय में संलग्न हो जाता है...किन्तु कुछ दृश्य इतने मार्मिक होते हैं कि न चाहते हुए भी वही दृश्य बार-बार आँखों के सामने आता है तथा तत्सम्बन्धी भाव से हमें सराबोर कर हमारे अन्दर क्रोध,बेबसी,लाचारी ,नफ़रत ,घिन तथा विलाप जैसे भावों को जन्म दे देता है.......ध्यानाकृष्ट करें कि मैंने यहाँ पर विशेष रूप से इन्हीं भावों को गिनाया है .....!! वैसे तो इनके अतिरिक्त भी और कई प्रकार के मानवीय भाव हैं जो मनुष्य पर स्व-स्वानुसार प्रभावी रहते हैं......!!

........ऐसे ही कई भावों से मुझे भी कल गुजरना पड़ा.....जब मैं प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत का अत्यंत मार्मिक दृश्य 'अभिमन्यु-वध' देख रहा था...!यद्यपि यह कथा मैंने प्राथमिक स्तर की कक्षाओं में भी पढ़ा था....इसके अतिरिक्त प्राय: इस कथा का जिक्र होता ही रहता है.....किन्तु सच कहूँ तो पहली बार मैंने अभिमन्यु-वध अपनी आँखों से अपने मोबाइल पर ही देखा.....जिसे देखकर मुझे कृपाचार्य,द्रोणाचार्य तथा कर्णादि  अन्यायियों से घिन आने लगी..!इन लोगों के मन में तनिक भी दया नहीं आई....जरा सा भी नहीं सोचा कि हम अनीतिपूर्वक  उस अभिमन्यु रूपी नए पौधे को तहस-नहस कर रहे हैं.....और वह अल्पायु का शूरवीर अंतिम साँस तक उन पर विजय प्राप्त करने की चेष्टा कर रहा है!!.....आखिर यह कहाँ की शूरवीरता है कि छल से विपक्ष रूपी चक्रव्यूह रचकर उस निहत्थे योद्घा को सात-सात महारथी मिलकर मारते हैं!!....

.......खैर महाभारत की कहानी से आप सब परिचित हैं ..इसलिए विस्तार में जाना सम्यक् नहीं....!!...मैं बस इतना बताना चाहता हूँ कि जब यह मार्मिक एवं हृदय विदारक दृश्य मैंने देखा तो आँखों से अश्रु -धारा प्रवाहित होने लगी ..!!भीष्म पितामह केे ऊपर तो पहले से ही ख़फ़ा था किन्तु अब द्रोणाचार्य एवं कृपाचार्य आदि से भी नफ़रत जैसी हो गई है..!!आने वाली पीढ़ी जब भी इनकी बुजदिली की गाथा सुनेगी तो कभी भी इन लोगों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेगी...!

 .........बात बस इत्ती सी है कि जब भी समर-संग्राम में सारे अधर्मी तथा भ्रष्ट निर्बल योद्धा एक ऩीतिपरक पराक्रमी के सम्मुख आते हैं तो पराजय की आशंका से सारे वर्णशंकर बुजदिल एक साथ मिलकर अभिमन्यु रूपी सच्चे ,साहसी और शूरवीर को समाप्त कर देते हैं तथा अपनी क्षणिक एवं असत्य विजय का जश्न मनाते नजर आते हैं...किन्तु ये समाज को नोचनें वाले भेड़िए से भी बदतर लोग .. अर्जुन जैसे अजेय योद्धा को नहीं जानते....उसकी शक्ति तथा पराक्रम का इन्हें अन्दाजा नहीं है कि यह वह अर्जुन है जो तुम लोगों के गढ़े हुए हर चक्रव्यूह को ध्वस्त करना जानता है .....!!

चाहे जो रणनीति बना लें....चाहे जितने अपराधी एक साथ मिलकर सामना करें....तब पर भी यह अर्जुन रूपी राष्ट्र का सच्चा योद्धा सबको परास्त कर देश में शांति,समानता तथा समृद्धि अवश्य लाएगा!!!

..................अनुज_पण्डित

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