Saturday, August 22, 2020

वर्चस्व

वर्चस्व 

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यह एक ऐसा शब्द है जो  प्रत्येक प्राणी के भीतर समाया है। यावद् जीना है, वर्चस्व की भावना  को सुरक्षित रखना है।  वर्चस्व का बड़ा करीबी रिश्ता  श्वासों से है। श्वास रूपी ईंधन खत्म हुआ नहीं कि वर्चस्व फुर्र हुआ। 


मानुष-जगत् को विवेकशील  कहा गया है जबकि ऐसा मैं नहीं मानता क्योंकि बहुतेरे विवेकशून्य देखे-सुने गये हैं , तथापि यदि सर्वाधिक विवेक किसी जीव में है तो वह है मनुष्य!
किन्तु मात्र विवेक ही क्यों कहा गया ? और भी तमाम गुण-दोष अन्य प्राणियों की तुलना में अधिक ही हैं! षड्विकारों(काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद,मत्सर )के साथ ही साथ वर्चस्व की फ़िक्र   रात्रिन्दिवा व्यक्ति को भीतर ही भीतर खोखला किये दे रही है।

बाल्यकालादेव हमें एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ अपने गिरफ्त में धर लेती है। लड़कपन में खेली गयीं  छोटी-छोटी क्रीडाओं से लेकर जीवन के अंतिम महासंग्राम तक हम बस अपना प्रभाव, बाहुबल, कीर्ति और गुणगान सुनना चाहते हैं। प्रभाव रूपी मीनार स्थापित करने हेतु शास्त्र-निर्दिष्ट बातों का मसाला लगाया जाये तो यह अनुचित न होगा किन्तु अप्राकृतिक ,अमानवीय और अनैतिकता के भट्ठे में पकायी गयी ईंटों से वर्चस्व की मंजिलें तैयार करना पिशाचता है।

जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई लड़ी जा रही है।  पारिवारिक,सामाजिक,आर्थिक,शैक्षिक ,बौद्धिक,धार्मिक और राजनैतिक  हर क्षेत्र में लोग अपनी प्रभुता कायम करने हेतु जूझ रहे हैं। इस वर्चस्व की लड़ाई  का सबसे मजबूत और खुरपेंची योद्धा मीडिया है जो प्रिंट मीडिया,ई मीडिया और सोशल मीडिया आदि रूपों में समाज को उकसाता है, सहयोग करता है और बढ़ाचढ़ाकर उनका गुणगान करता है जिनके द्वारा यह पोषित-पालित होता है ।कुछ का वर्चस्व तो कायम हो जाता है किंतु बहुतों को मगजमारी ही करनी पड़ती है।

देश में आंतरिक वर्चस्व की लड़ाई तो हर क्षण चलती ही रहती है, परदेशों के लोग भी अपना प्रभाव जमाने की भरपूर कोशिश करते हैं। किसी भी नीति,काम या उत्पाद  के विरोध का कारण मात्र और मात्र अपनी धाक जमाना ही होता है फिर  चाहे वो कोई दवा हो या देश हित की बात।


सदियों से अपनी प्रभुता कायम करने के उद्देश्य से ही  भीषण युद्ध होते आ रहे हैं ।शक्तिशाली देशों ने कमजोर देशों को अपना गुलाम बनाये रखा जिसके परिणाम में उनका  सांस्कृतिक, भाषाई और शैक्षिक प्रभाव आज तक गुलाम देशों में दिखाई  पड़ रहा है। यही तो वर्चस्व है जो पहले भौतिक रूप में था , अब मानसिक रूप से ,विचारों में कब्जा किये बैठा है। यही कारण है कि  कतिपय स्वदेशी लोग समय-समय पर विदेशी वर्चस्व हेतु अपना मुँह खोलते रहते हैं।

स्वयं को सर्वश्रेष्ठ,अगुआ और सर्वज्ञ साबित करने हेतु कई लोग छोटी-छोटी जगहों या मंचों पर बिना आमंत्रित  हुए मुँह उठाकर पहुँच जाते हैं और कई-दिनों का बासी,सड़ा तथा निरामिष पदार्थ उगल देते हैं जिसके दुर्गन्धयुक्त छींटे  चतुर्दिक् पड़ते हैं।

रिश्ते भुरकुन हों तो होते रहें,सम्बन्ध चरचरायें चाहें बिगड़ें , सामाजिक छवि गटर में  डूबे चाहे उतराये, उन्हें घण्टा फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि उन्हें हर हाल में अपना प्रभाव दिखलाना है, खुद को  उच्चासन में विराजित करना है ।इसके लिए भले ही वे लतियाये जाएँ, अपशब्दों द्वारा बेइज्जत किये जायें या मुख पर कालिख पोतकर गर्दभ में लादकर घुमाए जाएँ!

वर्चस्व,प्रभाव या दबदबा जमाने  की जुगत में जो छल,कपट, चपरपेली या अप्राकृतिक रवैया अपनाया जाता है वो उनके मानसिकता की उपज है । ऐसी कलुषित मानसिकता मात्र उनका पतन नहीं करती अपितु समाज में हिरण्यकशिपु, रावण,शिशुपाल  जैसे खलनायक भी पैदा करती है जो एक अधर्मी, अत्याचारी और विध्वंशकारी युग का सूत्रपात करते हैं और मजबूरन धरा की लाज रखने हेतु स्वयं नारायण को अवतरित होना पड़ता है।


सत्य,धर्म,ईमानदारी,कर्मठता,नैतिकता और निष्पक्षता के मार्ग पर चलिये,आपको अपने वर्चस्व की चिंता किसी भी हाल में नहीं होगी क्योंकि यह मार्ग स्वत:आपको सबसे प्रभावशाली बनाकर श्रेष्ठता के शिखर पर स्थापित कर देगा! दूसरे की तरक्की, ज्ञान, धन तथा शक्ति देखकर कुढ़ना क्यों !  आपके पास भी वो सबकुछ है जो प्रकृति ने उन्हें देकर भेजा है तो फिर ईर्ष्या कैसी और नीचे गिराने की सोच क्यों? 

यदि कोई लोककल्याण की भावना से काम कर रहा है, अपने बीसों नाखूनों की कमाई से अपना तथा अपनों के उदर भर रहा है तो उसकी इतनी आलोचना कर देंगे कि वो जीना छोड़ दे! किसी बीज को अंकुरित होते ही कुचल डालेंगे तो उसके फलों की गुणवत्ता को कैसे बयाँ कर पायेंगे! यदि कोई किसी रोग या बुराई को  कमजोर करके उसका प्रभाव शून्य करने का दावा कर रहा है तो एक अवसर तो प्रदान कीजिये ! आखिर किसी को तो अवसर मिलेगा ही तो फिर जो पहले आया उसे क्यों नहीं? 

क्योंकि आपको शायद पता है कि पहले आने वाले का दावा सत्य हो सकता है जिससे आपके वर्चस्व को खतरा है ,आपके आकाओं को यह फूटी आँखों सुहाता नहीं। इसीलिए उस पर ऐसी-ऐसी छींटाकशी की जा रही हैं जो कि किसी गौहन्ता,पितृहन्ता,देशद्रोही और बलात्कारी पर भी शायद नहीं की जातीं! 


©️अनुजपण्डित
 

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