Monday, September 21, 2020

युवा-दर्द से बेख़बर सरकार

प्रतियोगी छात्र-छात्राओं द्वारा जिस तरह से सूबे की सरकार के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार युवाओं की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही है।

 एक तो पहले से ही विभिन्न विभागों में लाखों भर्तियाँ अटकी पड़ी हैं, ऊपर से पाँच साल संविदा और पचास की उम्र में रिटायर करने की बात ने आग में घी डालने का काम किया है।युवाओं का यह विरोध मात्र एक इसी संविदा के नियम से नाराज होने के कारण नहीं है अपितु पिछले तीन वर्षों से अटकी पड़ीं भर्तियों को समय से न पूरा करने कारण भी है। 
किसी भी प्रदेश और देश के युवा के हितों को अनदेखा करना सरकार के उदासीन और निष्क्रिय रवैये को प्रकट करता है। 

तीन साल पहले सूबे में जब योगी सरकार आयी तो न केवल युवाओं को बल्कि समाज के प्रत्येक तबके को यह उम्मीद थी कि योगी सरकार पिछली सरकारों की तरह युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ नहीं करेगी।

सारे कार्य व्यवस्थित ढंग से किये जायेंगे और चयनप्रक्रिया में विलम्ब की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी किन्तु शायद ऐसा नहीं हुआ! प्रदेश के प्रतियोगी छात्र अब भी उसी दर्द से कराह रहे हैं जिस दर्द को पिछली सरकारों ने तोहफे के रूप में दिया था!

एक युवा अपने सपनों को मूर्त रूप देने जब घर से बाहर किसी अनजान शहर में जाता है तो उसके साथ-साथ उसके घर,परिवार और समाज की उम्मीदें भी साथ जाती हैं।

 भले ही किसी के अभिभावक की आर्थिक स्थिति इस लायक न हो कि वह अपने बेटे की पढ़ाई और तैयारी का खर्च वहन कर सके फिर भी किसी प्रकार व्यवस्था करके उसको हर महीने अपनी कमाई का अंश भेजता रहता है। तैयारी करते-करते पाँच से दश वर्ष बीतते देर नहीं लगती,इसका कारण अपेक्षाकृत मेहनत न करना तो है ही साथ ही सबसे बड़ा कारण है समय से भर्तियाँ न निकलना और निकलती भी हैं तो इसकी कोई निश्चितता नहीं रहती कि अमुक भर्ती कितने समय के भीतर पूरी हो जाएगी। 
यदि देखा जाए तो युवा दर्द का वास्तविक कारण मात्र और मात्र यही है कि विज्ञापन आने से लेकर चयन होने तक एक से दो पंचवर्षीय गुजर जाती हैं। कभी सरकार ने इस दर्द को महसूस किया होता तो शायद समझती कि  इस तरह की निष्क्रियता की भरपाई युवा अपनी उम्र,धन और समय को स्वाहा करके कर रहा है।

भर्ती प्रक्रिया में व्यापक बदलाव और नियमितीकरण की सख्त जरूरत है।जिस तरह से चुनावी प्रक्रिया में प्रत्याशी-निर्धारण से लेकर शपथ समारोह तक की तारीख,दिन,महीना सब पहले से ही निर्धारित कर लिए जाते हैं, आखिर उसी तरह से किसी भी भर्ती प्रक्रिया को पूरा करने की समयावधि पूर्व में ही क्यों नहीं निर्धारित कर दी जाती।

भले ही भर्तियाँ कम निकाली जाएँ किन्तु समय-समय पर भर्ती  निकलेगी,समय से पारदर्शिता पूर्वक परीक्षा होगी,और नियत समय तक चयन प्रक्रिया पूरी होती रहेगी तो युवाओं को समय ही न मिलेगा विरोध प्रदर्शन और बेरोजगारी के नारे लगाने की।

यह निर्विवादेन सत्य है कि प्रत्येक युवा को सरकारी नौकरी उपलब्ध कराना सम्भव नहीं किन्तु जितनी भी सम्भव हैं, उन्हें समय से पूरा किया जाएगा तो युवा एक निश्चित अवधि तक ही तैयारी में अपना समय जाया करेगा।यूँ लंबित पड़ी भर्तियों के इंतजार में कम से कम अपनी उम्र तो न खपायेगा!

यद्यपि संविदा वाले नियम पर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद जी ने अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए यह कहा कि संविदा वाली बात महज काल्पनिक ही है, इसका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं। इससे प्रतियोगियों ने राहत की सांस अवश्य ली है किन्तु युवा दर्द की हकीकत यही है कि इतने दिनों से लंबित पड़ीं भर्तियों को आखिर कब पूरा करेंगे। 

प्रतियोगियों की नाराजगी को ध्यान में रखते हुए    मुख्यमंत्री जी ने यह उद्घोषणा तो कर दी कि अटकी पड़ीं भर्तियों को छः माह के भीतर पूरा कर लिया जाएगा किन्तु प्रतियोगियों को अभी भी पूर्ण विश्वास इसलिए नहीं हो रहा है क्योंकि यहाँ के प्रतियोगी इस तरह के मरहम लगाने वाले फ़रमान सुनने की आदी हो चुकी है।अब देखना यह कि अपनी बातों पर सरकार कितनी खरी उतरती है!

 प्रदेश सरकार युवा दर्द की कराह को समझते हुए ऐसे कदम उठाने को उद्यत हो जिससे युवा निराश न हो और अटकी-लटकी पड़ीं भर्तियों की तरह उसका भविष्य न लटक जाए! क्योंकि एक प्रतिभाशाली युवा देश के विकास में अहम योगदान देता है जिससे देश की उत्तम छवि समूचे विश्व में उभरकर सामने आती है।

अतः सरकार का यह परम कर्तव्य होना चाहिए कि युवापीढ़ी का विशेष ध्यान रखे!

                 ✍️अनुजपण्डित
  

Saturday, September 12, 2020

सत्ता में उलटफेर नहीं "बदलाव" होना चाहिए

पिछली सरकारों ने भी चुनाव से पहले जनता से वादे किये थे। बेशक किये गए वादों को वे पूरा नहीं कर पायी होंगी तभी तो जनता ने उन्हें छलिया समझकर सत्ता से उतार फेंका! 

वर्तमान सरकार  ने भी यदि जनता के अनुरूप कार्य नहीं किया या नहीं कर रही है तो निश्चित रूप से जनता इसे भी चौथ के चंद की तरह त्याग देगी!

अब प्रश्न यह उठता है कि अबकी बार जनता आखिर किसके हाथ में सत्ता की  बागडोर सौंपेगी?

क्योंकि सभी राजनीतिक पार्टियों को एक नहीं बल्कि क़ई बार देखा गया है। देखने के मामले में भाजपा को सबसे कम देखा गया है।  इस आधार पर बराबर का न्याय होना चाहिए कि नहीं!

मेरे विचार से पिछली  जिन सरकारों को जनता ने सत्ता से च्युत किया था उन्हें तो दोबारा मौका नहीं मिलना चाहिए क्योंकि उनका रिजल्ट देखकर ही उनसे मुँह फेरा गया था।


यदि जनता फिर से वही पार्टी चुनती है जिसको उसकी गलतियों की वजह से हटाया गया था तो यह जनता की मूर्खता होगी। जनता अपनी दुर्दशा की जिम्मेदार खुद होती है। केन्द्र हो या राज्य! दोनों  जगह हम ले-दे कर उन्हीं पार्टियों को ऊपर-नीचे करते हैं जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।

प्रत्येक बार एक नई सरकार का जन्म होना चाहिए क्योंकि यही सच्चे अर्थों में लोकतंत्र है! हाँ यदि किसी सरकार ने जनता के अनुरूप शासन किया है तो उसे पुनः मौका मिलना लाजिमी है!


भला यह भी कोई बात हुई क्या कि जिसे  पानी पी-पी कर दिन-रात,सोते-जागते भला नहीं बल्कि बुरा ही बुरा  कहा जाए,उसे  एक पंचवर्षीय आराम देने के बाद पुनः अपनी छाती पर चढ़ाया जाए!

देश का एक बहुत बड़ा तबका या यूँ कहा जाए कि पूरा देश अभी भी पार्टी और प्रत्याशी को अलग-अलग दृष्टि से नहीं देखता!

                         ✍️अनुजपण्डित

Sunday, September 6, 2020

ऋषि-मुनियों की मौजूदगी का एहसास कराता है "ऋषियन-आश्रम"

भारत को ऋषि-मुनियों तथा सिद्ध देवताओं की भूमि कहा जाता है।इस देश में ऐसे क़ई स्थलों की भरमार है जो अलौकिक ज्ञान व चमत्कारों से रूबरू कराते हैं। 

पुरातन मनीषी ऋषियों ने विकट तप एवं उपासना करके ही वेद-वेदाङ्गों में छिपे गूढ़ ज्ञान-विज्ञान से परिचित होकर हजारों साल पूर्व ही प्रकृति से सम्बंधित अनेक रहस्यों को आलोक  में लाया तथा नूतन आविष्कारों की युक्तियाँ जनमानस को बताया।
ऋषि-मुनियों ने जो ज्ञान-विज्ञान हम मानुषों को प्रदान किया उसके सम्मुख आधुनिक विज्ञान भी नतशिर होता है। अद्भुत् ज्ञान की प्राप्ति हेतु हमारे ऋषि-मुनि घने जंगलों,पहाड़ों गुफाओं, एवं कंदराओं को अपना आशियाना बनाया करते थे। हिमालय  जो तप-साधना हेतु विश्व विश्रुत है, के अतिरिक्त ऐसे क़ई स्थल हैं, जहाँ ध्यानमग्न होकर ऋषि-मुनि समाधि लगाया करते थे। 

ऐसा ही एक स्थान उत्तरप्रदेश के चित्रकूट जनपद में है जिसके बारे में कहा जाता है कि प्राचीन काल में हज़ारों की संख्या में यहाँ ऋषि-मुनि तप-साधना किया करते थे।

चित्रकूट जनपद की मऊ तहसील के अंतर्गत यमुना नदी के किनारे बरहा कोटरा स्थान है जहाँ पर विद्यमान ऋषियन आश्रम आज भी ऋषि-मुनियों की मौजूदगी का एहसास कराता है।

इस आश्रम की प्राचीनता से जुड़े क़ई तथ्य मौजूद हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अपने वनवास काल के दौरान जब प्रयाग में ऋषि भरद्वाज से मिलकर चित्रकूट में बसने के उद्देश्य से आगे बढ़े तो इस आश्रम में गये बिना नहीं रह सके।
इसी प्रकार इस आश्रम से जुड़ा हुआ एक और भी पौराणिक किस्सा है जिसके अनुसार भगवान् शिव के अनन्य भक्त बाणासुर ने अपनी माँ की सुविधा को ध्यान में रखते हुए भगवान् शिव से प्रार्थना की कि प्रभु मेरी माँ आपके दर्शनों हेतु  प्रतिदिन कैलास जाने में असमर्थ है, अतः आप यहीं विराजमान हो जाइए। इस तरह बाणासुर ने एक विशाल गुफा के अंदर शिवलिंग की स्थापना की। प्राप्त सूत्रों के मुताबिक इस गुफा में कुल बारह शिवलिंग स्थापित थे किंतु वर्तमान में मात्र तीन शिवलिंग ही मौजूद हैं जिनमें से एक शिवलिंग को देखकर लगता है कि यह चन्देलकालीन है। आश्रम में मौजूद खण्डहर हो चुके मन्दिर को देखकर भी यही अंदाजा लगता है कि इसका निर्णाण किसी चन्देलशासक ने करवाया था क्योंकि जिस तरह की नक्काशी और शिल्पकारी इस मंदिर की है ठीक वही नक्काशी चंदेलकालीन अन्य मंदिरों की भी है। इस बात की पुष्टि सड़क के उस पार स्थित खण्डहर हो चुके भदेश्वर शिव मन्दिर के भग्नावशेषों को देखकर स्वतः हो जाती है कि यह चन्देलकालीन ही है। 

यह अति गर्व की बात है कि चन्देलशासकों ने समूचे बुन्देलखण्ड को ज्यादा से ज्यादा मन्दिर और किले प्रदान किये जिनकी नक्काशी की बराबरी आज भी कोई नहीं कर सकता।


यह भी कहा जाता है कि ऋषियन आश्रम में स्थापित शिवलिंगों को तोड़ने का प्रयास आततायी मुगल शासक औरंगजेब ने किया था किंतु वह बहुत सफल नहीं हो सका क्योंकि एक चमत्कार के कारण उसके सैनिक स्वतः मारे जा रहे थे।

विशाल गुफा का मुख्य द्वार अत्यंत छोटा है जिस कारण झुककर ही भीतर प्रवेश किया जा सकता है। गुफा के अंदर पर्याप्त जगह है तथा स्थापित शिवलिंग पर पहाड़ों की जलस्रोतों से स्वतः पानी गिरता रहता है।इस दृश्य को देखकर  ऐसा लगता है मानो प्रकृति खुद भगवान् शिव का अभिषेक कर रही हो!

ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक रूप से महत्त्वपूर्ण ऐसे सिद्ध स्थलों के संरक्षण  की आवश्यकता है किंतु पुरातत्त्व विभाग मात्र एक बोर्ड लगवाकर अपने कर्त्तव्य से मुक्त दिखाई पड़ता है। 

प्रदेश सरकार एवं भारत सरकार को चाहिए कि चित्रकूट के अतिरिक्त  देश के ऐसे सभी स्थलों का जीर्णोद्धार करवाकर उन्हें सहेजने का काम करे ताकि भारतीय संस्कृति की महत्ता एवं उसकी प्राचीनता से नई पीढ़ी परिचित रह सके!

               ✍️अनुजपण्डित
    

भक्ति और उसके पुत्र

🍂'भज् सेवायाम्' धातु से क्तिन् प्रत्यय करने पर 'भक्ति' शब्द की निष्पति होती है,जिसका अर्थ है सेवा करना। सेवा करने को 'भ...