पिछली सरकारों ने भी चुनाव से पहले जनता से वादे किये थे। बेशक किये गए वादों को वे पूरा नहीं कर पायी होंगी तभी तो जनता ने उन्हें छलिया समझकर सत्ता से उतार फेंका!
वर्तमान सरकार ने भी यदि जनता के अनुरूप कार्य नहीं किया या नहीं कर रही है तो निश्चित रूप से जनता इसे भी चौथ के चंद की तरह त्याग देगी!
अब प्रश्न यह उठता है कि अबकी बार जनता आखिर किसके हाथ में सत्ता की बागडोर सौंपेगी?
क्योंकि सभी राजनीतिक पार्टियों को एक नहीं बल्कि क़ई बार देखा गया है। देखने के मामले में भाजपा को सबसे कम देखा गया है। इस आधार पर बराबर का न्याय होना चाहिए कि नहीं!
मेरे विचार से पिछली जिन सरकारों को जनता ने सत्ता से च्युत किया था उन्हें तो दोबारा मौका नहीं मिलना चाहिए क्योंकि उनका रिजल्ट देखकर ही उनसे मुँह फेरा गया था।
यदि जनता फिर से वही पार्टी चुनती है जिसको उसकी गलतियों की वजह से हटाया गया था तो यह जनता की मूर्खता होगी। जनता अपनी दुर्दशा की जिम्मेदार खुद होती है। केन्द्र हो या राज्य! दोनों जगह हम ले-दे कर उन्हीं पार्टियों को ऊपर-नीचे करते हैं जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।
प्रत्येक बार एक नई सरकार का जन्म होना चाहिए क्योंकि यही सच्चे अर्थों में लोकतंत्र है! हाँ यदि किसी सरकार ने जनता के अनुरूप शासन किया है तो उसे पुनः मौका मिलना लाजिमी है!
भला यह भी कोई बात हुई क्या कि जिसे पानी पी-पी कर दिन-रात,सोते-जागते भला नहीं बल्कि बुरा ही बुरा कहा जाए,उसे एक पंचवर्षीय आराम देने के बाद पुनः अपनी छाती पर चढ़ाया जाए!
देश का एक बहुत बड़ा तबका या यूँ कहा जाए कि पूरा देश अभी भी पार्टी और प्रत्याशी को अलग-अलग दृष्टि से नहीं देखता!
✍️अनुजपण्डित
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