Sunday, September 6, 2020

ऋषि-मुनियों की मौजूदगी का एहसास कराता है "ऋषियन-आश्रम"

भारत को ऋषि-मुनियों तथा सिद्ध देवताओं की भूमि कहा जाता है।इस देश में ऐसे क़ई स्थलों की भरमार है जो अलौकिक ज्ञान व चमत्कारों से रूबरू कराते हैं। 

पुरातन मनीषी ऋषियों ने विकट तप एवं उपासना करके ही वेद-वेदाङ्गों में छिपे गूढ़ ज्ञान-विज्ञान से परिचित होकर हजारों साल पूर्व ही प्रकृति से सम्बंधित अनेक रहस्यों को आलोक  में लाया तथा नूतन आविष्कारों की युक्तियाँ जनमानस को बताया।
ऋषि-मुनियों ने जो ज्ञान-विज्ञान हम मानुषों को प्रदान किया उसके सम्मुख आधुनिक विज्ञान भी नतशिर होता है। अद्भुत् ज्ञान की प्राप्ति हेतु हमारे ऋषि-मुनि घने जंगलों,पहाड़ों गुफाओं, एवं कंदराओं को अपना आशियाना बनाया करते थे। हिमालय  जो तप-साधना हेतु विश्व विश्रुत है, के अतिरिक्त ऐसे क़ई स्थल हैं, जहाँ ध्यानमग्न होकर ऋषि-मुनि समाधि लगाया करते थे। 

ऐसा ही एक स्थान उत्तरप्रदेश के चित्रकूट जनपद में है जिसके बारे में कहा जाता है कि प्राचीन काल में हज़ारों की संख्या में यहाँ ऋषि-मुनि तप-साधना किया करते थे।

चित्रकूट जनपद की मऊ तहसील के अंतर्गत यमुना नदी के किनारे बरहा कोटरा स्थान है जहाँ पर विद्यमान ऋषियन आश्रम आज भी ऋषि-मुनियों की मौजूदगी का एहसास कराता है।

इस आश्रम की प्राचीनता से जुड़े क़ई तथ्य मौजूद हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अपने वनवास काल के दौरान जब प्रयाग में ऋषि भरद्वाज से मिलकर चित्रकूट में बसने के उद्देश्य से आगे बढ़े तो इस आश्रम में गये बिना नहीं रह सके।
इसी प्रकार इस आश्रम से जुड़ा हुआ एक और भी पौराणिक किस्सा है जिसके अनुसार भगवान् शिव के अनन्य भक्त बाणासुर ने अपनी माँ की सुविधा को ध्यान में रखते हुए भगवान् शिव से प्रार्थना की कि प्रभु मेरी माँ आपके दर्शनों हेतु  प्रतिदिन कैलास जाने में असमर्थ है, अतः आप यहीं विराजमान हो जाइए। इस तरह बाणासुर ने एक विशाल गुफा के अंदर शिवलिंग की स्थापना की। प्राप्त सूत्रों के मुताबिक इस गुफा में कुल बारह शिवलिंग स्थापित थे किंतु वर्तमान में मात्र तीन शिवलिंग ही मौजूद हैं जिनमें से एक शिवलिंग को देखकर लगता है कि यह चन्देलकालीन है। आश्रम में मौजूद खण्डहर हो चुके मन्दिर को देखकर भी यही अंदाजा लगता है कि इसका निर्णाण किसी चन्देलशासक ने करवाया था क्योंकि जिस तरह की नक्काशी और शिल्पकारी इस मंदिर की है ठीक वही नक्काशी चंदेलकालीन अन्य मंदिरों की भी है। इस बात की पुष्टि सड़क के उस पार स्थित खण्डहर हो चुके भदेश्वर शिव मन्दिर के भग्नावशेषों को देखकर स्वतः हो जाती है कि यह चन्देलकालीन ही है। 

यह अति गर्व की बात है कि चन्देलशासकों ने समूचे बुन्देलखण्ड को ज्यादा से ज्यादा मन्दिर और किले प्रदान किये जिनकी नक्काशी की बराबरी आज भी कोई नहीं कर सकता।


यह भी कहा जाता है कि ऋषियन आश्रम में स्थापित शिवलिंगों को तोड़ने का प्रयास आततायी मुगल शासक औरंगजेब ने किया था किंतु वह बहुत सफल नहीं हो सका क्योंकि एक चमत्कार के कारण उसके सैनिक स्वतः मारे जा रहे थे।

विशाल गुफा का मुख्य द्वार अत्यंत छोटा है जिस कारण झुककर ही भीतर प्रवेश किया जा सकता है। गुफा के अंदर पर्याप्त जगह है तथा स्थापित शिवलिंग पर पहाड़ों की जलस्रोतों से स्वतः पानी गिरता रहता है।इस दृश्य को देखकर  ऐसा लगता है मानो प्रकृति खुद भगवान् शिव का अभिषेक कर रही हो!

ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक रूप से महत्त्वपूर्ण ऐसे सिद्ध स्थलों के संरक्षण  की आवश्यकता है किंतु पुरातत्त्व विभाग मात्र एक बोर्ड लगवाकर अपने कर्त्तव्य से मुक्त दिखाई पड़ता है। 

प्रदेश सरकार एवं भारत सरकार को चाहिए कि चित्रकूट के अतिरिक्त  देश के ऐसे सभी स्थलों का जीर्णोद्धार करवाकर उन्हें सहेजने का काम करे ताकि भारतीय संस्कृति की महत्ता एवं उसकी प्राचीनता से नई पीढ़ी परिचित रह सके!

               ✍️अनुजपण्डित
    

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