Sunday, November 1, 2020

आख़िर उस रात क्या हुआ था पांचवीं मंजिल के रूम नम्बर सात में!

___ अथर्व मेरी कम्पनी में बतौर मैनेजर काम करता है। मैं लगभग बीस वर्षों से अपनी कम्पनी में साड़ियों की बुनाई और कढ़ाई का काम करवाता हूँ,...जिसके लिये मुझे सैकड़ों कामगारों की आवश्यकता पड़ती है।...सूरत जैसे औद्योगिक शहर में बाहरी प्रान्तों से आये हुए मजदूरों को आसानी से काम मिल जाता है और..... हम उद्योगपतियों को उचित मजदूरी पर मजदूर..!


चूँकि अथर्व ज्यादातर काम सम्भाल ही लेता है इसलिये मुझे चिंता करने की कोई खास जरूरत नहीं  फिर भी हफ़्ते में तीन दिन  हिसाब-किताब देखने के लिये कंपनी की तरफ़ गाड़ी घुमा ही लेता हूँ। रात के लगभग आठ बजे थे जब मैं कंपनी की पार्किंग में गाड़ी खड़ी करके सीधा अपने केबिन की ओर बढ़ ही रहा था कि अचानक मेरी नजर एक नाबालिग लड़के  पर पड़ी। वो हाथों में साड़ियों का बण्डल लिये एक-एक करके सीढ़ी चढ़ रहा था। चूँकि इससे पहले मैंने उसे कभी देखा नहीं था और ऊपर से उसकी उम्र ...!  इसलिए थोड़ा आश्चर्य हुआ । मैंने अपनी केबिन में बैठकर सिगरेट जलाया और...  उसके वापस आने की प्रतीक्षा करने लगा।...लगभग बीस मिनट बाद सीढ़ियों पर खट-खट की आवाज सुनायी दी...। वो लड़का उतर रहा था....।

"ए सुनो! इधर आओ ।"

वो दबे पाँव मेरे करीब आया और मायूसी को चेहरे पर पोतकर मेरी ओर ताकने लगा।


 "बेटा ! क्या नाम है तुम्हारा और तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"- उसके कन्धे पर हाथ रखकर मैंने प्यार से पूछा।

"मैं चन्दन हूँ सर! यहाँ काम करता हूँ।!"- पतली आवाज में उसने उत्तर दिया।


"अच्छा! कबसे  और क्या काम करते हो?"- हल्की सी मुस्कान के साथ उससे पूछा।

 "सात दिन हो गये काम करते हुये...!अथर्व अंकिल ने मुझसे कहा है कि पाँचवीं मंजिल के रूम नम्बर सात में रोज साड़ी के बण्डल फेंक कर आना है, तो मैं जाता हूँ और फेंक कर आता हूँ .!"-  एक ही साँस में उसने फ़टाफ़ट बकर दिया।


- उसकी बात सुनकर मैं सन्न रह गया...!

"क्..क्..क्या कहा तुमने,रूम नम्बर सात!..अच्छा यह बताओ ,पाँचवीं मंजिल में और भी कोई रहता है या नहीं ?" 

" बाकी रूम तो बन्द रहते हैं लेकिन रूम नम्बर सात में लाइट जलती रहती है और चार लोग ताश खेलते रहते हैं..। मैं रात के  तीन बजे तक बण्डल फेंक कर आता-जाता रहता  हूँ लेकिन मैं उनसे बात नहीं करता और न ही वे मुझे ही कुछ कहते..! बस जोर-जोर से हँसते हुये ताश खेलते रहते हैं।"


- उसकी ये बातें सुनकर मेरी रूह काँप उठी और मैंने गुस्से में अथर्व को आवाज दी।

अथर्व दौड़ते हुए आया और बोला -"क्या हुआ सर!"

 " अथर्व ! तुम अच्छी तरह जानते हो कि  दो साल पहले उस रूम नम्बर सात में क्या हुआ था और तभी से हमने पाँचवीं मंजिल में सबका जाना बंद करवा दिया था फिर भी तुम इस बच्चे को वहाँ उस कमरे में...!"- मैंने चिल्लाकर कहा।


"सॉरी सर! गलती हो गयी,अब दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी।"

-शायद अथर्व को अपनी गलती का एहसास हो चुका था!

"तुम्हारी इस बेवकूफी की वजह से बेचारे मासूम को कुछ हो जाता तो! क्या.. उम्र ही कितनी है अभी इसकी..! महज 11साल!!...तुम यह बताओ कि इस नाबालिग को काम कर रखा कैसे ?..वो भी  मुझे बिना बताये!"- मैं भीतर से थरथरा रहा था।

-अथर्व ने बताया कि एक हफ्ते पहले एक आदमी आया था और इस लड़के को मुझे बेचकर पैसे ले गया था...तभी से मैंने इसे काम पर लगा दिया..!"

मैं फिर चिल्लाया-" तुम्हें हो क्या गया है अथर्व? तुम्हें पता है न कि बाल-मजदूरी कानूनी अपराध है! तुमने इतनी बेवकूफी कैसे की? ..तुमसे तो मैं बाद में निपटता हूँ ..और सुनो! कल तक लिफ्ट ठीक करवा लेना।"

- यह कहकर मैं उस लड़के को अपने घर ले गया और उससे उसके घर का पता पूछकर उसे उसके घर छोड़ आया।
लड़के के माता-पिता ने बताया कि लगभग पन्द्रह दिन पहले हमारा लड़का गाँव के बगीचे से लापता हो गया था। आपका एहसान कभी नहीं भूलेंगे।

👉(02 साल पहले रूम नं.-07 में चार लोगों का मर्डर हुआ था।)

                        ✍️अनुजपण्डित

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