Friday, November 20, 2020

आइये जानते हैं कि शुभ कार्यों में क्यों वर्जित हैं बासी फूल?

प्रकृति के तमाम सुंदर संघटकों में एक ख़ास घटक फूल भी है जिसके बगैर प्रकृति का शृंगार अधूरा, फीका और लावण्यविहीन ही समझिए!


नीले अम्बर तले धरती को आधार बनाकर महकते ये रंग-बिरंगे पुष्प ही तो बेरंग मानव जीवन को रंगीन बनाने की प्रेरणा देते आये हैं! नाना प्रकार के रंगों की तरह ही इन फूलों के नाना नाम भी हैं।जैसे-पुष्प, कुसुम, प्रसून,सुमनस्, सुम, पीलु, प्रसव आदि।

संस्कृत व्याकरण के अनुसार "पुष्प फुल्लने" धातु से  "अच्"  प्रत्यय जोड़ने पर पुष्प शब्द निष्पन्न होता है।


इन पुष्पों की मानव जीवन में इतनी अधिक आवश्यकता है कि शुभ-अशुभ सभी प्रकार के अवसरों पर इनका प्रयोग निश्चित है। देव-पूजा, स्वागत-समारोह, जयमाल-उत्सव से लेकर अंत्येष्टि संस्कार तक इन फूलों के बिना नहीं हो सकता!

यूँ तो अधिकांश जन इस सत्य से वाकिफ़ हैं कि पूजा इत्यादि शुभ कार्यों में ताजे पुष्प ही स्वीकार्य हैं, बासी फूल सर्वथा वर्जित हैं,तभी तो गुरुकुलों में कुछ शिष्यों की ड्यूटी रोज सबेरे ताजे पुष्पचयन करने की रहती थी और आज भी आस्तिक जन हाथ में पॉलीथिन छुपाए तड़के-तड़के सैर करने की आड़ में रास्ते के पुष्पों की चाह रखते हैं।

अपनी महक से सर्वदा प्रेम ही बिखेरने वाले पुष्पों का चयन करने ही तो प्रातः काल श्री राम जनक की बगिया में गये थे जहाँ भगवती सीता का उन्हें प्रथम दर्शन होता है! इस तरह राम और सीता के प्रेम का माध्यम ये पुष्प ही तो बने थे!

बड़े शहरों में छोटी-बड़ी फूल की दुकानों पर विभिन्न प्रकार की पुष्पमालाएँ, साबुत एवं खण्ड-खण्ड पुष्प अक्सर बासी होने के बावजूद भी धड़ल्ले से बिक कर देवी-देवताओं पर चढ़ जाते हैं जो कि शास्त्रसम्मत नहीं है!


मानाकि शास्त्रों में  वर्णित है कि कुछ फूल , पत्तियाँ  बासी होने के बावजूद भी प्रयोग करने योग्य हैं।जैसे - कमल और बिल्वपत्र, किन्तु अन्य सभी प्रकार के बासी फूल नितांत वर्जित हैं। 

महाकवि कालिदास ने बासी फूलों को आधार बनाकर ही  महानतम गीतिकाव्य "मेघदूतम्" जिसे संदेश काव्य के नाम से भी जाना जाता है, रच डाला! कुबेर का माली नवविवाहित यक्ष एक रात प्रियतमा के प्रेम में इस कदर मग्न हो गया कि उसे अपने कर्त्तव्य की सुध ही न रही। जब उसकी नींद टूटी तो सूर्य सिर पर चढ़ आया था। वह घबराकर भागते हुए उद्यान पर गया किन्तु उसे एक भी पुष्प डाली पर मुस्कुराते हुए नहीं दिखा, लिहाजा उसने नीचे जमीन पर पड़े रात्रिकालीन टपके पुष्पों को डलिया में भरकर कुबेर को थमा दिया!

बासी और कुम्हलाए फूलों को देखकर कुबेर क्रोध से भर गया, जिसके परिणामस्वरूप उसने उस यक्ष को महाभयंकर शाप दे डाला। शाप के प्रभाव से वह यक्ष अपनी प्रियतमा से अलग,शक्तिहीन होकर चित्रकूट के रामगिरि पर्वत पर आ गिरा, जहाँ पूरा एक वर्ष वह प्रियतमा के विरह में तपता रहा।


आषाढ़ मास के प्रथम दिन जब आकाश में उमड़ते मेघों को देखा तो उसने ताजे पुष्पों को अंजलि में लेकर मेघ का अभिनन्दन किया, तत्पश्चात् अलकापुरी में दिन गिन रही अपनी प्रियतमा के लिए संदेश की गुजारिश की।

इस काव्य के माध्यम से मानो कालिदास ने मानवजगत् को भी संदेश दिया है कि पूजा-अर्चना आदि शुभ कार्यों में बासी फूलों का प्रयोग न करें अन्यथा यक्ष जैसा महाभयंकर शाप लग सकता है!

उस यक्ष को भलीभांति विदित था कि मेरी यह हालत बासी फूलों के कारण ही हुई है, इसलिए मेघ के स्वागतार्थ ताजे पुष्पों का चयन ही हितकर है!

पोस्ट का आशय-ताजे पुष्पों का प्रयोग और बासी पुष्पों को वर्जित करना ही है।
#फ़ोटो_साभार_गूगल

                 ✍️अनुजपण्डित

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