यह सच है कि भारत में भूतपूर्व प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी के जन्मदिवस के रूप में बाल-दिवस को मान्यता मिली किन्तु कई देशों में बाल दिवस भिन्न-भिन्न तिथियों को मनाया जाता है ।इससे पहले भारत में बाल दिवस 20 नवम्बर को मनाया जाता था।
ऐसी मान्यता है कि नेहरू जी का बच्चों के प्रति अगाध स्नेह था जिसके फलस्वरूप 27 मई 1964 को उनकी मृत्यु के पश्चात् उनकी याद में उनके जन्मदिवस 14 नवम्बर को बाल-दिवस मनाया जाने लगा। बच्चों के प्रति प्रेम तो अच्छी बात है किंतु क्या नेहरू जी को ही बच्चों से लगाव था, बाकी सब क्या बच्चों के बैरी होते हैं!
शायद नेहरू जी को मनोविज्ञान का ज्ञान था ,तभी तो उन्हें पता था कि बच्चों के साथ समय गुजारने से वयस्कों या वृद्धों का मन जवान हो जाता है और बढ़ती उम्र का आभास नहीं होता। यह तो हुई नेहरू जी की मृत्यु के बाद की बात किन्तु क्या 14 नवम्बर से पहले जब 20 नवम्बर को बाल दिवस मनाया जाता था तब इसके पीछे की क्या कहानी थी? है न सोचने वाली बात ! खैर कोई बात नहीं।
वास्तव में बालदिवस मनाने का उद्देश्य प्रबल उत्साहवर्धक एवं प्रेरणादायक होना चाहिए,ताकि प्रत्येक बच्चा जीवन ,समाज व देश के प्रति पूरी निष्ठा से अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करने हेतु प्रतिबद्ध हो उठे।
आज इस दिवस विशेष पर आचार्य चाणक्य औऱ चन्द्रगुप्त मौर्य की कहानी व आदर्शों से बच्चों को अवगत कराते हुये जीवन का मूल्य समझाना चाहिए और यह समझाने का कार्य माता-पिता और शिक्षकों को करना चाहिए। आज देश के प्रत्येक बच्चे को आचार्य चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य के साहस को ध्यान में रखकर राष्ट्र निर्माण के प्रति पूरी शक्ति से तैयार होने की शपथ लेनी चाहिए। प्रत्येक बच्चे को अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार होकर लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होना चाहिए ।
बच्चे के सर्वांगीण विकास हेतु यह आवश्यक है कि देश के प्रत्येक अभिभावक व शिक्षक को अपनी भूमिका का निर्वहन पूर्ण सत्यनिष्ठा से करनी होगी तभी हमारा देश प्रगति के उच्चतम शिखर पर स्थापित हो सकेगा,क्योंकि आजके बच्चे ही भविष्य के कर्णधार हैं।
सबसे चिंतनीय बात तो यह है कि वर्तमान युग में बच्चों का बचपन कितनी निर्ममता से कुचला जा रहा है! बच्चा 'माँ' शब्द का उच्चारण जैसे ही सीखता है, वैसे ही उसके कन्धों पर उसके वजन से अधिक किताबों का भार लाद दिया जाता है।आवश्यकता से अधिक पाठ्यक्रम रख दिया जाता है जिससे बच्चे को अपने वास्तविक मस्तिष्क और शरीर के विकास का समय ही नहीं मिलता। अधिकांश अभिभावक तो अपनी व्यस्त जीवनशैली के चलते बच्चों को पर्याप्त समय तक नहीं दे पाते ,लिहाजा बच्चे स्वच्छन्द होकर अशिष्ट और दुराचारी बन जाते हैं।
बच्चे तो नन्हें से पौधे हैं जिन्हें उचित खाद और पानी देकर पाला पोसा जाना चाहिए ताकि कोई भी बच्चा पेड़ बनकर बिना सकारात्मक फल दिए न रहे।
आज देश के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में बेसिक कक्षाओं से ही बच्चों को अशुद्ध-वर्तनी के प्रति सचेत नहीं किया जा रहा है जिसके फलस्वरूप बच्चे बड़े होकर आदतवश वही वर्तनी-अशुद्धि बार- बार दोहराते हैं।
इसीलिए शिक्षकों को चाहिए कि बच्चों को सही और समुचित ज्ञान प्रदान करें ताकि यही बच्चे भविष्य में शिक्षक बनकर अपने छात्रों को गलत जानकारी प्रदान न करें। इस बात का भी विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि बच्चों के ऊपर जबरन कोई लक्ष्य न लादें, जिस तर्कपूर्ण लक्ष्य को बच्चा प्राप्त करना चाहता है उसी के अनुरूप उन्हें प्रोत्साहित करें।हम सबका यह दायित्व है कि बच्चे को सही एवं उचित मार्गदर्शन प्रदान करें।
"इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चलके।
यह देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कलके।।"
इन पंक्तियों को प्रेरणा बनाकर बच्चों को अहर्निश प्रेरित करना समस्त अभिभावकों व शिक्षकों का परम कर्तव्य है।
#फ़ोटो_साभार_गूगल
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ReplyDelete👌 वाकई, बच्चों के साथ उम्र का पता नहीं चलता, बच्चे मन के सच्चे
ReplyDeleteधन्यवाद,रोहित जी🌺
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