Saturday, March 6, 2021

ऋग्वेद का यह सूक्त "जुआ और जुआरी से" सम्बंधित है।

अक्ष एवं द्यूत ( पासा एवं जुआ )

"पासा" एक प्रकार का साधन है, जिसके सहारे द्यूत या जुआ खेला जाता है। जुए को लोग भिन्न-भिन्न तरीकों से खेलते हैं। इन तरीकों में बहुधा पासों की जगह ताश के पत्तों से जुआ खेला जाता है। प्राचीन काल में पासों के लिए "अक्ष" शब्द का प्रयोग होता था।  बच्चे इन पासों से लूडो नामक खेल खेलते हैं। ग्रामीण इलाकों में लोग बाँस की लकड़ी के चार भाग करके उन्हें "फन्सा" का नाम दे देते हैं और उन्हीं से "चन्दापौआ" नाम का खेल खेलकर मनोरंजन करते हैं। 

मनोरंजन के लिए  पासों का उपयोग हानिकारक नहीं किन्तु जुए के लिए इनका उपयोग सर्वथा हानिकारक होता है।

ये पासे जुआरी (द्यूतकार) को उसी तरह आनन्द प्रदान करते हैं, जिस प्रकार शराबी को शराब,कामी को स्त्री और लोभी को धन! 

इन पासों के भीतर एक तरह की मोहिनी शक्ति समाहित होती है।इसी मोहिनी शक्ति के वश में जुआरी रहता है। कई बार ऐसा क्षण आता है जब जुआरी द्यूतकार्य (जुआ) से दूर होने का निर्णय ले लेता है किंतु वह अपना निर्णय उस समय भूल जाता है, जब वह जुए के अड्डे पर इन पासों को कूदते-फुदकते देखता है। इनकी मनोहारी आवाज को सुनकर वह दौड़ पड़ता है द्यूतस्थल की ओर। कोई भी जुआरी चाहे कितना भी ताकतवर क्यों न हो,ये पासे उसे  पराजित करने की क्षमता रखते हैं।

लकड़ी के बने ये पासे किसी भी जुआरी को पलभर में  धनवान बना सकते हैं और पलभर में कंगाल।

जुआ खेलने में लिप्त व्यक्ति को समाज निम्न कोटि का व्यक्ति कहकर उसकी निंदा करता है, उसके रिश्तेदार तथा स्वजन भी द्वेष करने लगते हैं। जुए की लत इतनी बुरी होती है कि बड़ा से बड़ा बुद्धिमान भी  दाँव पर लगाई जाने वाली वस्तु के विषय में विचार नहीं कर पाता। महाभारत की कहानी में तो स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर ने द्रौपदी तक को दाँव पर लगा दिया था।

समाज में जब-जब भोग-विलास और धन-संपत्ति के बल पर शक्ति का उदय होता है, तब-तब द्यूतकर्म यानि जुआ अपने चरम पर पहुँच जाता है। इस तरह की सामाजिक कुरीतियों एवं मनुष्य के दुर्व्यसनों को दूर करने के सम्बंध में वेदों में सूक्तों का संकलन किया गया है। 

ऋग्वेद के दशम मण्डल का चौतीसवाँ सूक्त इस विषय पर पर्याप्त प्रकाश डालता है, जो "अक्ष-सूक्त" नाम से मिलता है।

अक्षसूक्त के ज्यादातर भाग में द्यूतकार्य/जुआ के दुष्परिणामों को बताकर वैदिक ऋषि समाज को एक संदेश देता है कि  "अक्षों(पासों) से कभी मत खेलो बल्कि खेती करो। कृषिकार्य में ही गायें भी सम्मिलित हैं जो पालतू एवं सम्पूर्ण समृद्धि  प्रदान करती हैं।" वैदिक ऋषि उन अक्षों से प्रार्थना करता है कि-"हे अक्षों! हमसे मित्रता करो,अपनी मोहिनी शक्ति का प्रयोग हम पर मत करो।"


#फ़ोटो_साभार_गूगल
✍️ अनुज पण्डित

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