भारत के विशाल और अपराजेय किलों में गिना जाने वाला एक किला "कालिंजर" भी है। दसवीं शताब्दी तक चंदेलों के अधीन रहने के बाद यह रीवा के सोलंकियों के अधीन आ गया था। गजनवी ,ऐबक, हुमायूँ, शेरशाह सूरी जैसे कई शासकों ने इस किले पर कब्जा करने की जुगत से धावा बोला था किन्तु सभी को मुँह की खानी पड़ी।
शेरशाह ने जब हमला किया था तो उस समय कालिंजर किले पर राजा कीर्ति सिंह का आधिपत्य था। युद्ध के दौरान तोप का एक गोला किले के मुख्य द्वार से टकराकर शेरशाह के शरीर पर दग गया, लिहाज़ा उसके प्राण पखेरू उड़ गए थे। दूसरे चित्र में आप वह द्वार देख सकते हैं जिस द्वार से तोप का गोला टकराकर शेरशाह को लगा था। यह द्वार किले के निचले हिस्से पर बना है, जो किले पर जाने वाले मार्ग से काफ़ी दूरी पर है, इसलिए फ़ोटो दूर से लेने पर बहुत स्पष्ट नहीं आयी।👇👇
पिछले दिनों लॉकडाउन के दौरान जब मैं चित्रकूट,बाँदा और सतना जिलों के प्रसिद्ध ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का भ्रमण कर रहा था तो कालिंजर दुर्ग भी गया था। तीसरे चित्र पर महादेव नीलकंठ की मूर्ति है जो किले के अंदर ही प्रतिष्ठित है। ऐसा कहा जाता है कि समुद्रमंथन से निकले हुए विष को पीने के बाद उसका ताप शांत करने के लिए शिव जी ने इसी जगह आकर ध्यान लगाया था। किले के भीतर और भी कई मंदिर हैं जो सम्भवतः गुप्तकाल के जान पड़ते हैं।
रानी दुर्गावती इन्हीं कीर्तिसिंह की बिटिया थीं, जिनका विवाह गौड़ राजा दलपत शाह से हुआ था। पति की मृत्यु के बाद जब मुगल सेना ने गोंडवाना पर हमला किया था तो दुर्गावती ने ही कमान संभाली थी। अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित करके रानी ने आसफ ख़ाँ से वीरतापूर्वक युद्ध किया किन्तु वीरगति को प्राप्त हुईं।
कालिंजर किले पर बाद में मुगल शासक अकबर ने कब्जा कर लिया था किंतु वीर बुन्देला छत्रसाल ने उससे जीतकर अपने अधीन कर लिया था। अब यह किला राष्ट्र की धरोहर-स्वरूप पुरातत्व विभाग की निगरानी में है।
✍️ अनुज पण्डित
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