Tuesday, May 25, 2021

पुत्रमोह के कारण बच्चों की गलतियों को नजरअंदाज न करें वरना हो सकता है यह..👇👇


इतिहास गवाह रहा है कि जो भी पुत्रमोह के पाश में बंधा है ,उसकी औलाद आवारा,अराजक और अनैतिक हो गयी। आज भी पुत्रमोह का बंधन ढीला नहीं हुआ है। महाभारत काल में पुत्रमोह में अंधे हुए धृतराष्ट्र ने अपने ही बच्चों को कुरुक्षेत्र में खड़ा कर दिया। रघुवंशी दशरथ का पुत्रमोह थोड़ा अलग है, उन्होनें पुत्रमोह के चलते अपने प्राण तो त्याग दिए किन्तु उनके पुत्र कुपुत्र नहीं थे। उनके पुत्रों ने अपना नैतिक और चारित्रिक  पतन नहीं होने दिया।

आज तकनीकी युग में भी बच्चों ने अभिभावकों को खूब बुद्धू बनाया है।पढ़ाई के नाम पर मोबाइल और इंटरनेट पर अश्लीलता और नैतिक पतन की ओर ले जाने वाले कारनामों को अंजाम दे रहे हैं। 

पढ़ाई के नाम पर घर से बाहर रह रहे युवक और युवतियाँ स्वच्छन्दता अपना रहे हैं और घर वालों को लगता है कि मेरा सुपुत्र/सुपुत्री कलेक्टर बनने की फिराक में है। अब के समय में भी कहीं--कहीं राम आदि जैसे सुपुत्र हैं जो समय रहते अपना उचित अनुचित समझने लगते हैं और भविष्य को बेहतर बनाने हेतु तत्पर रहते हैं किन्तु अभिभावकों का यह परम दायित्व बनता है कि वे अपने बच्चों की करतूतों पर नजर बनाए रखें अन्यथा एक बेहतर माता-पिता होने के सौभाग्य से वंचित रह जाएंगे। घर से बाहर बच्चे क्या गुल खिलाते हैं, कैसी संगति करते हैं, इन सब पर अभिभावकों की ताड़ना बहुत आवश्यक है। 

कुछ अच्छा कर गुजरने की उम्र में बच्चे अनैतिक मार्ग चुन लेते हैं, बिना उचित मार्गदर्शन के अपने उद्देश्य से भटक जाते हैं तथा समाज के लिए अराजक बन जाते हैं। इन सब पक्षों पर गहन चिंतन और देखरेख की जरूरत है। विद्यालयों में शिक्षकों की जिम्मेदारी तब तक ही रहती है जब तक बच्चे विद्यालय में हैं।वहाँ से जाने के बाद क्या-क्या क्रियाकलाप करते हैं, इसकी जिम्मेदारी अभिभावक की है।


पुत्रमोह बड़ा घातक होता है जिसके चलते बच्चों की गलतियों पर नजर नहीं जाती और इस गलतफहमी में रहते हैं कि उनका बच्चा उनका नाम रोशन कर रहा है। "चरित्र का हत्यारा कौन?" इस लेख पर मैंने लिखा था कि यदि अभिभावकों को अपने बच्चों की वास्तविक परख करनी है तो उनकी सोशल प्रोफाइल चेक कर लें। उन्हें पता लग जायेगा कि उनकी संतान को क्या पसन्द है, किस क्षेत्र में वह मन लगाता है और उसकी मनोवृत्ति कैसी है! 

वर्तमान राजनीति में  देश की कई बड़ी पार्टियों ने पुत्रमोह  के चलते अपनी पार्टी को पतन की ओर उन्मुख कर दिया। किसी ने सच ही लिखा है कि-

       "देख दोष न पूत के फिर पाछे पछताय।

       राम नहीं धृतराष्ट्र के घर दुर्योधन आय।"

                ✍️ अनुज पण्डित

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