सदियों से हम और हमारा समाज किस्से-कहानियों में भूत-प्रेतों का जिक्र करता आया है। वास्तविक जीवन में भी लोगों ने भूतों से सम्बंधित अपने अनुभव साझा किए हैं। आज के वैज्ञानिक और तकनीकी युग में लोगों का विश्वास इनके विषय में काफ़ी हद तक कम हुआ है किंतु यह सच है कि सभी योनियों की तरह ही प्रेत योनि भी होती है, अंतर यह है कि यह योनि लौकिक न होकर अलौकिक है, स्थूल न होकर सूक्ष्म है। भूतों के विषय में ज्यादा अच्छे से वही बता सकता है जिन्होंने इनका साक्षात्कार और मुठभेड़ हुई है।
ऐसा माना जाता है कि जिन मनुष्यों की जीते जी कोई विशेष इच्छा पूर्ण नहीं हो पाती है, जिनके अंतिम संस्कार में कोई कसर रह जाती है या किसी दुर्घटना के तहत जिनकी मृत्यु हो जाती है, वे प्रेत योनि में भटकते हैं। भूत-प्रेतों पर आधारित क़ई फिल्म और सीरियल बनाये जाते हैं, इसका अर्थ यही है कि आज भी लोगों के जेहन में इन्हें लेकर भय व्याप्त है।
जब मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन कर रहा था तो अंग्रेजी की क्लास में प्रो. एल.आर.वर्मा सर मशहूर नाटककार विलियम शेक्सपीयर का नाटक "मैकबेथ" पढा रहे थे,जिसमें तीन चुड़ैलों का जिक्र है। जिज्ञासावश मैं पूछ बैठा कि सर! क्या सच में भूत-प्रेत होते हैं? और यदि होते हैं तो ये ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में और रात में ही क्यों दिखाई देते हैं?
मेरे प्रश्न की तारीफ़ करते हुए प्रोफेसर ने कहा कि यह सच है कि प्रेतयोनि होती है। भूतों को भी शांति और सुनसान क्षेत्र पसन्द होते हैं । शहरों की अपेक्षा गाँवों में आबादी कम होती है इसलिए ये गाँवों में ज्यादा दिखाई देते हैं और सुनसान होने के कारण रात में ही निकलते हैं। खैर ...मुझे यह तर्क जरा कम भाया फिर भी स्वीकृति में मुंडी हिला दी थी।
एक तरफ लोग यह भी कहते हैं कि भय का भूत होता है किंतु मेरी दृष्टि में भूत और कोरोना एक ही किस्म के हैं। जिसका सामना भूत से नहीं हुआ वह विश्वास नहीं करेगा और जो कोरोना की चपेट में नहीं आया वह भी इसे सरकारी नौटंकी कहकर नकार रहा है। कुछ जन भूत और कोरोना का अनुभव लिए बगैर ही इन्हें स्वीकार कर लेते हैं। मैं भी इन्हीं लोगों में से हूँ। पता नहीं आप में से कितनों को भूत-प्रेत पर यकीन है!
✍️ अनुज पण्डित
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