#उपनिषच्चर्चा_भाग_5
🍂उपनिषदों की रचना बौद्धकाल से काफी पहले की मानी जाती है फिर भी इनके रचनाकाल के विषय में विद्वान् एकमत नहीं हैं। उपनिषदों को वेदों की मूल संहिताओं का अंश मानते हुए इन्हें सर्वाधिक प्राचीन स्वीकार किया जाता है, इस हिसाब से इनका रचनाकाल संहिताओं के पहले का माना जा सकता है। कुछ विद्वान् इनका समय 3000 ई.पू.-500 ई. पू. मानते हैं, कुछ 800 ई. पू. तथा 3000 से 3500 ई. पू. का स्वीकार करते हैं। इनके रचनाकाल का निर्धारण इनकी खगोलीय, भाषाई एवं वैचारिक सिद्धान्त आधार पर समझा जा सकता है।
लोकमान्य तिलक एवं विंटरनित्स खगोलीय स्थिति को आधार मानते हुए इनका रचनाकाल 6000 ई. पू. - 2000ई.पू. मानते हैं।
मैक्समूलर भाषाई आधार को मानते हैं और इनका रचनाकाल 1000-800 ई. पू. मानते हैं।
मंत्रसंहिता, ब्राह्मण और आरण्यक ग्रन्थों के अनन्तर लिखे गए उपनिषदों की संख्या के विषय में "मुक्तिकोपनिषद्" में बताया गया है जिसके आधार पर इनकी कुल संख्या 108 मानी जाती है-
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ईशकेनकठमुण्डमाण्डूक्यतित्तिर:
ऐतरेयं च छन्दोग्यं बृहदारण्यकं तथा।
ब्रह्मकैवल्यजाबालश्वेताश्वो हंस आरुणि:
गर्भो नारायणो हंसो बिंदुर्नादशिर: शिखा।
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मैत्रायणी कौषीतकि बृहज्जाबालि तापनी
कालाग्निरुद्रमैत्रेयी सुबालक्षुरीमन्त्रिका।
सर्वसारं निरालम्बं रहस्यं वज्रसूचिकम्
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परिव्राट् त्रिशिखी सीता चूडा निर्वाणमण्डलम्
दक्षिणा शरभं स्कंदं महानारायणाह्वयम्।
रहस्यं रामतपनं वासुदेवं च मुद्गलम्
शांडिल्यं पैङ्गलं भिक्षुमहच्छारीरकम्।
तुरीयातीतसंन्यासपरिव्राजाक्षमालिका
अव्यक्तैकाक्षरं पूर्णासूर्याक्ष्यध्यात्मकुण्डिका।।
दुःखद है कि मुक्तिकोपनिषद् में गिनाए गये सभी उपनिषद् आज उपलब्ध नहीं हैं। मात्र 10 उपनिषद् ही उपलब्ध हैं जिन पर आदि शंकराचार्य ने भाष्य लिखा। ये दश उपनिषद् हैं- ईश, केन,कठ,प्रश्न,मुण्डक, माण्डूक्य,तैत्तिरीय,ऐतरेय, छान्दोग्य और बृहदारण्यक।
#क्रमशः........ ✍️ अनुज पण्डित
फ़ोटो साभार गूगल
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