Saturday, June 5, 2021

क्या आपको पता है कि पर्यावरण की चिंता सबसे पहले कब की गयी?


आपको क्या लगता है कि पर्यावरण की चिंता और प्रदूषण की समस्या की वजह से सबसे पहले 1972 में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने इस दिवस को मनाने की नींव रखी? क्या दुनिया का पहला पर्यावरण-सम्मेलन स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में आयोजित हुआ? 

आपको अवगत करा दूँ कि सबसे पहले पर्यावरण की चिंता वैदिक काल में की गयी। हमारे मन्त्रदृष्टा ऋषियों ने प्रकृति के समस्त घटकों के महत्त्व और संरक्षण हेतु जनजागरूकता-अभियान चलाया। उन्होंने प्रकृति के सभी घटकों को देवतुल्य समझते हुए उनकी उपासना एवं उनका संवर्द्धन करते हुए विभिन्न मंत्रों के द्वारा उनसे प्रार्थना की  कि अपनी कृपादृष्टि सदैव हम मानुषों पर बनाये रखें।

प्रकृति के इन्हीं घटकों की सुरक्षा और प्रकृति के प्रति मानव के प्रेम को जगाने हेतु इस वर्ष पर्यावरण दिवस की थीम "पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली" रखी गयी। पारिस्थितिकी तंत्र में प्रकृति के समस्त घटक जैसे- सूर्य,चन्द्र,पेड़-पौधे,जल,मिट्टी एवं हवा सम्मिलित हैं जिन्हें वेदों में देवता कहकर इनका महत्त्व समझाया गया। सूर्य,वरुण,इंद्र,मरुत, सृष्टि-प्रक्रिया आदि का विवेचन विधिवत रूप में वेदों में प्राप्त होता है।

प्रकृति से मनुष्य की दूरी ने पर्यावरण-प्रदूषण को जन्म दिया। प्रदूषण के चलते नाना प्रकार के रोगों,विषाणुओं ने धरती को घेर लिया तथा सम्पूर्ण धरा रोगों से ग्रस्त होकर त्राहि माम् त्राहि माम् करने को विवश है। जंगल तबाह हो गए, ओजोन परत क्षीणकाय हो गयी तथा हवा-पानी प्रदूषित हो गए क्योंकि विकास की अंधी दौड़ में तीव्र गति से दौड़ रहे मनुष्यों को जीवन की संगिनी प्रकृति का ख्याल न रहा। 
प्रत्येक वर्ष पर्यावरण दिवस इसीलिए तो मनाया जाता है ताकि हम सब प्रकृति से नाता जोड़ते हुए इसके महत्त्व को समझें तथा इसके संरक्षण हेतु ईमानदारी से कटिबध्द रहें किन्तु मात्र एक दिवस विशेष में मात्र शब्दों से प्रकृति की चिंता करके हम पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत नहीं बना सकते बल्कि हर दिन हम इसकी चिंता करें और यह समझने की कोशिश करें कि स्वस्थ जीवन के ख़ातिर प्रकृति के साथ चलना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

 आज प्रकृति के रखवाले ही इसके सबसे बड़े शत्रु बने बैठे हैं। वृक्ष लगाने के बजाय अंधाधुंध जंगलों की कटाई की जा रही है। एसीयुक्त बन्द कमरों में पर्यावरण की चिंता के प्रति भाषणबाजी करना प्रकृति के साथ भद्दा मजाक है।


इसीलिए किसी दिवस विशेष पर पर्यावरण की चिंता करने से पर्यावरण-प्रदूषण से निजात और पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली सम्भव नहीं बल्कि हमें अपने संस्कारों में इसके प्रति चिंता भरनी होगी और इसके लिए प्राथमिक स्तर से ही बच्चों को इसका महत्त्व समझाने की जरूरत है। वैदिक युग की बातों पर अमल करना और वेदों के पन्ने पलटना जरूरी है ताकि प्रकृति के समस्त घटकों को देवता मानते हुये हम उनके महत्त्व को स्वीकार कर सकें। 

यदि प्रकृति की ओर लौटना है तो वेदों की ओर लौटना ही होगा अन्यथा मनाते रहेंगे पर्यावरण दिवस,करते रहेंगे फोटोबाजी और देते रहेंगे भाषण।


                 ✍️ अनुज पण्डित

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