Wednesday, May 24, 2023

धर्म का आधार वेद हैं: मनुस्मृति

वेदों में धर्म का  पूरा प्रतिपादन किया गया है।एकमात्र वेद ही धर्म का मुख्य आधार हैं।इसके अतिरिक्त धर्म के तत्त्व को जानने वाले शास्त्रों,चरित्र की उत्तमता,महात्माओं के आचरण एवं आत्मा की सन्तुष्टि को भी धर्म तत्त्व का आधार मानते हैं ।अभिप्राय यह कि धर्म और अधर्म का निर्णय करने के लिए सबसे पहले वेद को प्रमाण मानना चाहिए।यदि कहीं वेद से सन्तुष्टि नहीं हो पाती तब शास्त्रों के ज्ञान को प्रामाणिक मानना चाहिए,लेकिन यदि किसी तत्त्व का निर्णय शास्त्रों से भी नहीं हो पाता तो महात्माओं के चरित्र को पढ़कर निर्णय लेना चाहिए।यदि इससे भी सन्तुष्टि न मिले तो अपनी आत्मा को जिससे सन्तुष्टि मिले, वही श्रेयस्कर है।

भगवान् मनु ने विभिन्न वर्णों के लिए जिन कर्मों का विधान किया,उनका आधार वेद ही हैं।वे वेद को समस्त ज्ञान का मूल स्रोत मानते हैं। कहने का तात्पर्य यह कि मनु ने जो कुछ भी कहा,वह वेद के अनुसार ही है।अतः मनुस्मृति एक प्रामाणिक ग्रन्थ है।

मनुस्मृति में दिये गए विषय की जाँच-पड़ताल करने के लिए व्यक्ति को सबसे पहले यह देखना चाहिए कि इसमें जो उल्लेख है,क्या वह वेद-आधारित है? यदि वेद पर आधारित है तो वह स्वत: प्रमाण है। ऐसा कहने के पीछे मनु का विचार यह रहा होगा कि यदि कोई दूसरा विद्वान् उनके नाम से कोई वेद विरुद्ध ज्ञान मनुस्मृति में मिलायेगा तो भावी विद्वान् उसे स्वीकारेंगे नहीं। ऐसा कहकर मनु ने भावी पीढ़ी को मनुस्मृति की समयानुकूल व्याख्या करने की पर्याप्त स्वतंत्रता दे दी है।यह निश्चय ही उनके महान् भविष्यद्रष्टा और पूर्ण ज्ञानी होने के स्वरूप को स्पष्ट करता है। मनुस्मृति को पढ़ने वाले को चाहिए कि वह इसे ज्ञान पूर्वक पढ़े। अज्ञानी और मूर्ख लोग पढ़ेंगे तो उसे समझ ही नहीं सकेंगे और जब नहीं समझ सकेंगे तो उसे व्यर्थ की पुस्तक मानकर उसे जला देंगे जो कि अत्यंत निंदनीय है।
                     ✍️अनुज पण्डित

Wednesday, May 17, 2023

श्री राम, विष्णु के नहीं तो फिर किसके अवतार हैं?

🍂इन दिनों पुनः रामचरितमानस का अध्ययन कर रहा हूँ। विश्व का एकमात्र लोकप्रिय और प्रसिद्ध ग्रन्थ रामचरितमानस जितनी बार पढ़ो,उतनी बार कुछ न कुछ नया तथ्य सामने उभरकर आता है। अधिकांश जन या यों कहूँ कि सभी को यही पता है कि श्रीराम श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं। मुझे भी अब तक यही पता था किन्तु मैंने जब बालकाण्ड को दोहा नम्बर 141 से पढ़ना आरम्भ किया तो पाया कि श्रीराम विष्णु नहीं बल्कि ब्रह्म के अवतार हैं। ब्रह्म यानी सच्चिदानन्द स्वरूप,जगत् का मूल तत्त्व,ईश्वर और परमात्मा। वह ब्रह्म जिसका स्वरूप शंकर के मन में बसता है,सगुण और निर्गुण कहकर वेद जिसकी प्रशंसा करते हैं,जिसके अंश से अगणित ब्रह्मा,विष्णु,महेश,लक्ष्मी, पार्वती तथा ब्राह्मणी उत्पन्न हो जाया करते हैं ।जो अनादि है,अजन्मा है,निर्विकारी है,वह ब्रह्म।

दोस्तों!स्वायम्भुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा ने तप करने के उद्देश्य से जब नैमिषारण्य की ओर गमन किया तथा गोमती नदी के तट पर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करने लगे तो उनका अपार तप देखकर ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी कई मर्तबा उनके पास आये किन्तु उन्होंने उन्हें यह कहकर लौटा दिया कि जाइये, आपसे हमारा कोई प्रयोजन नहीं,हमारा प्रयोजन तो किसी और से ही है। यह सुनकर त्रिदेव आश्चर्य में पड़ गए कि हम तीनों से बड़ा कौन है,जिससे इनका प्रयोजन है!तब उस "बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।कर बिनु करम करइ बिध नाना।।आनन रहित सकल रस भोगी।बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।"-ब्रह्म ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर आकाशवाणी की -"वर माँगो।" पहले तो मनु-शतरूपा ने उनके स्वरूप का दर्शन करना चाहा फिर अपने पुत्र के रूप में उनकी कामना की।

परब्रह्म परमेश्वर ने  तथास्तु कहा और बोले कि अभी तुम दोनों इंद्र की राजधानी अमरावती में निवास करो। कुछ समय बीतने के बाद तुम अवध के राजा होंगे और मैं तुम्हारा पुत्र। यही कथा मिलती है रामचरितमानस में। उक्त सन्दर्भ को पढ़कर आपका भ्रम शायद दूर हो! 
                            ✍️ अनुज पण्डित

Friday, May 5, 2023

प्रकृति के पुजारी और सूक्ष्म निरीक्षक थे ये कवि👇

🍂प्रकृति के सूक्ष्म निरीक्षक -'कालिदास'

भारतीय सनातन और काव्य परम्परा में प्रकृति को देवी का दर्जा दिया गया है। संस्कृत साहित्य कवियों के कुलगुरु महाकवि कालिदास को प्रकृतिदेवी का अनुपम पुजारी माना जाता है। अपनी सूक्ष्मा दृष्टि से इन्होंने प्रकृति के सूक्ष्म तत्त्वों एवं रहस्यों का उद्घाटन किया तथा इन्हें हृदय में धरकर जीवन्त रूप में सुधी पाठकों के समक्ष रखते हैं।वे प्रकृति के पदार्थों का ऐसा चित्रण करते हैं,मानो वे हमारे समक्ष मूर्त रूप में उपस्थित हों!कालिदास कहते हैं कि प्रकृति जड़ नहीं है,बल्कि उसका एक-एक अंश चेतना से पूरित है। वह भी मनुष्य की ही भाँति सुख-दुःख, आशा-निराशा,हर्ष-शोक तथा ध्यान-चिन्ता का अनुभव करती है।
मेघदूतम् में वे धुआँ,ज्योति,जल तथा हवा के समूह से बने मेघ द्वारा सन्देश भिजवाते हैं। यक्ष अपना सन्देश मेघ से ऐसे कह रहा है,मानो मेघ कोई सजीव प्राणी हो! अभिज्ञानशाकुन्तलम् में जब शकुन्तला की विदाई होती है तो लताएँ आँसू टपकाती हैं,वृक्ष वस्त्र और आभूषण प्रदान करते हैं,वायु के झोकों से फड़फड़ाते किसलय ताल देते हैं तथा भौंरे मधुर संगीत  गुनगुनाते हैं। इनकी रचनाओं में नदियाँ विलासिनी नायिकाओं की भाँति हाव-भाव प्रदर्शित करती हैं तथा चन्द्रमा किरणरूपी अंगुलियों से रजनी नायिका के बिखरे अन्धकार रूप बालों को हटाकर प्रदोषरूप मुख को चूमता है।
 हिमालय-वर्णन,आश्रम-वर्णन,ऋतु-वर्णन यहाँ तक कि युद्ध या करुण विलाप के वर्णन में भी ये प्रकृति का जीवन्त चित्रण करने से नहीं चूकते।पशु-पक्षियों के स्वभाव का यथार्थ चित्रण इनकी रचनाओं में जगह-जगह पर प्राप्त होता है।इतना सब कुछ होते हुए भी महाकवि ने प्रकृति के मात्र रमणीय,कोमल तथा मधुर पक्ष को ही चुना,भीषण तथा भद्दे पहलू को नहीं। इनके इस गुण का अतिक्रमण तो क्या बराबरी भी विश्व का कोई कवि अद्यतन नहीं कर सका है!
                            ✍️ अनुज पण्डित

भक्ति और उसके पुत्र

🍂'भज् सेवायाम्' धातु से क्तिन् प्रत्यय करने पर 'भक्ति' शब्द की निष्पति होती है,जिसका अर्थ है सेवा करना। सेवा करने को 'भ...