Friday, May 5, 2023

प्रकृति के पुजारी और सूक्ष्म निरीक्षक थे ये कवि👇

🍂प्रकृति के सूक्ष्म निरीक्षक -'कालिदास'

भारतीय सनातन और काव्य परम्परा में प्रकृति को देवी का दर्जा दिया गया है। संस्कृत साहित्य कवियों के कुलगुरु महाकवि कालिदास को प्रकृतिदेवी का अनुपम पुजारी माना जाता है। अपनी सूक्ष्मा दृष्टि से इन्होंने प्रकृति के सूक्ष्म तत्त्वों एवं रहस्यों का उद्घाटन किया तथा इन्हें हृदय में धरकर जीवन्त रूप में सुधी पाठकों के समक्ष रखते हैं।वे प्रकृति के पदार्थों का ऐसा चित्रण करते हैं,मानो वे हमारे समक्ष मूर्त रूप में उपस्थित हों!कालिदास कहते हैं कि प्रकृति जड़ नहीं है,बल्कि उसका एक-एक अंश चेतना से पूरित है। वह भी मनुष्य की ही भाँति सुख-दुःख, आशा-निराशा,हर्ष-शोक तथा ध्यान-चिन्ता का अनुभव करती है।
मेघदूतम् में वे धुआँ,ज्योति,जल तथा हवा के समूह से बने मेघ द्वारा सन्देश भिजवाते हैं। यक्ष अपना सन्देश मेघ से ऐसे कह रहा है,मानो मेघ कोई सजीव प्राणी हो! अभिज्ञानशाकुन्तलम् में जब शकुन्तला की विदाई होती है तो लताएँ आँसू टपकाती हैं,वृक्ष वस्त्र और आभूषण प्रदान करते हैं,वायु के झोकों से फड़फड़ाते किसलय ताल देते हैं तथा भौंरे मधुर संगीत  गुनगुनाते हैं। इनकी रचनाओं में नदियाँ विलासिनी नायिकाओं की भाँति हाव-भाव प्रदर्शित करती हैं तथा चन्द्रमा किरणरूपी अंगुलियों से रजनी नायिका के बिखरे अन्धकार रूप बालों को हटाकर प्रदोषरूप मुख को चूमता है।
 हिमालय-वर्णन,आश्रम-वर्णन,ऋतु-वर्णन यहाँ तक कि युद्ध या करुण विलाप के वर्णन में भी ये प्रकृति का जीवन्त चित्रण करने से नहीं चूकते।पशु-पक्षियों के स्वभाव का यथार्थ चित्रण इनकी रचनाओं में जगह-जगह पर प्राप्त होता है।इतना सब कुछ होते हुए भी महाकवि ने प्रकृति के मात्र रमणीय,कोमल तथा मधुर पक्ष को ही चुना,भीषण तथा भद्दे पहलू को नहीं। इनके इस गुण का अतिक्रमण तो क्या बराबरी भी विश्व का कोई कवि अद्यतन नहीं कर सका है!
                            ✍️ अनुज पण्डित

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