Wednesday, May 17, 2023

श्री राम, विष्णु के नहीं तो फिर किसके अवतार हैं?

🍂इन दिनों पुनः रामचरितमानस का अध्ययन कर रहा हूँ। विश्व का एकमात्र लोकप्रिय और प्रसिद्ध ग्रन्थ रामचरितमानस जितनी बार पढ़ो,उतनी बार कुछ न कुछ नया तथ्य सामने उभरकर आता है। अधिकांश जन या यों कहूँ कि सभी को यही पता है कि श्रीराम श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं। मुझे भी अब तक यही पता था किन्तु मैंने जब बालकाण्ड को दोहा नम्बर 141 से पढ़ना आरम्भ किया तो पाया कि श्रीराम विष्णु नहीं बल्कि ब्रह्म के अवतार हैं। ब्रह्म यानी सच्चिदानन्द स्वरूप,जगत् का मूल तत्त्व,ईश्वर और परमात्मा। वह ब्रह्म जिसका स्वरूप शंकर के मन में बसता है,सगुण और निर्गुण कहकर वेद जिसकी प्रशंसा करते हैं,जिसके अंश से अगणित ब्रह्मा,विष्णु,महेश,लक्ष्मी, पार्वती तथा ब्राह्मणी उत्पन्न हो जाया करते हैं ।जो अनादि है,अजन्मा है,निर्विकारी है,वह ब्रह्म।

दोस्तों!स्वायम्भुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा ने तप करने के उद्देश्य से जब नैमिषारण्य की ओर गमन किया तथा गोमती नदी के तट पर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करने लगे तो उनका अपार तप देखकर ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी कई मर्तबा उनके पास आये किन्तु उन्होंने उन्हें यह कहकर लौटा दिया कि जाइये, आपसे हमारा कोई प्रयोजन नहीं,हमारा प्रयोजन तो किसी और से ही है। यह सुनकर त्रिदेव आश्चर्य में पड़ गए कि हम तीनों से बड़ा कौन है,जिससे इनका प्रयोजन है!तब उस "बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।कर बिनु करम करइ बिध नाना।।आनन रहित सकल रस भोगी।बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।"-ब्रह्म ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर आकाशवाणी की -"वर माँगो।" पहले तो मनु-शतरूपा ने उनके स्वरूप का दर्शन करना चाहा फिर अपने पुत्र के रूप में उनकी कामना की।

परब्रह्म परमेश्वर ने  तथास्तु कहा और बोले कि अभी तुम दोनों इंद्र की राजधानी अमरावती में निवास करो। कुछ समय बीतने के बाद तुम अवध के राजा होंगे और मैं तुम्हारा पुत्र। यही कथा मिलती है रामचरितमानस में। उक्त सन्दर्भ को पढ़कर आपका भ्रम शायद दूर हो! 
                            ✍️ अनुज पण्डित

No comments:

Post a Comment

भक्ति और उसके पुत्र

🍂'भज् सेवायाम्' धातु से क्तिन् प्रत्यय करने पर 'भक्ति' शब्द की निष्पति होती है,जिसका अर्थ है सेवा करना। सेवा करने को 'भ...