Saturday, August 22, 2020

राहुल सांकृत्यायन का चित्रकूट से सम्बन्ध

उत्तर प्रदेश का एक बहुचर्चित जनपद चित्रकूट जो अपनी प्राकृतिक सुरम्यता और आध्यात्मिकता के लिए विश्व-प्रसिद्ध है, न केवल भगवान् श्रीराम एवं प्राचीन ऋषियों  की तपोस्थली है वरन् देश के ख्यातिलब्ध एवं उद्भट् साहित्यकारों व मनीषियों का कभी आशियाना भी रहा है।

बाबा तुलसी, रहीम के अतिरिक्त पूर्वांचल की  धरती पर जन्मे बहुभाषाविद् एवं घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के तत्त्वान्वेषी महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने भी कुछ वर्षों तक चित्रकूट को अपना निवास स्थल बनाया।


जी,हाँ, चित्रकूट में पुण्यतोया पयस्विनी नदी के तट पर लगभग 400वर्ष पूर्व महंत हनुमान् दास जी द्वारा स्थापित भगवान् जगन्नाथ मंदिर है जो उड़ीसा के पुरी में विराजमान् जगन्नाथ मन्दिर की ही तर्ज पर निर्मित है। यहाँ भी चन्दन-काष्ठ से निर्मित भगवान् श्रीकृष्ण, बलराम एवं सुभद्रा की प्रतिमाएँ ठीक उसी शैली में गढ़ी गयी हैं, जिस शैली में जगन्नाथ पुरी एवं चित्रकूट के जगदीश स्वामी की प्रतिमाएँ। प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास की अमावस्या के दूसरे दिन इस मन्दिर से भगवान् जगन्नाथ की रथयात्रा भी निकाली जाती है जो सात दिन बाद आठवें दिन वापस आती है।


ध्यातव्य है कि चित्रकूट में एक जगह और भी है जो जगदीश स्वामी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।इस प्रकार इस जनपद में भगवान् जगन्नाथ के दो मन्दिर देखने को मिलते हैं जिनकी प्रतिमाएँ उड़ीसा के जगन्नाथपुरी मन्दिर की मूर्तियों से हूबहू मेल खाती हैं।

पयस्विनी नदी के किनारे बना यह जगन्नाथ मंदिर जो वर्तमान में "जयदेवदास का अखाड़ा" नाम से जाना जाता है,अपनी महत्ता एवं प्राचीनता के लिए विख्यात है।इसी अखाड़े में वर्ष 1914  में  "जयदेव वैष्णव संस्कृत महाविद्यालय" स्थापित किया गया जिसमें 1934 तक पद्मभूषण महा पण्डित राहुल सांकृत्यायन ने एक अंतेवासी छात्र के रूप में रहकर विद्याध्ययन किया था। अखाड़े के वर्तमान पुजारी महंत रमाशंकरदास जी ने बताया कि इसी महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य यश:शेष बाबूलाल गर्ग ने अपनी पुस्तक में इस अखाड़े  का इतिहास एवं राहुल सांकृत्यायन से जुड़ी बातों का उल्लेख किया है। 


 यह है कमरा नंबर 3 जहां रहते थे राहुल सांकृत्यायन


छात्रावास का कमरा नम्बर तीन जिसमें यायावर  राहुल सांकृत्यायन ने छात्र जीवन का निर्वहन किया,आज भी उनकी उपस्थिति का आभास कराता है। ऐसा कहा जाता है कि यहीं से निकलने के बाद पूर्वांचल के इस महान् साहित्यकार ने अपनी पदयात्रा एवं साहित्यिक यात्रा आरम्भ किया था।

इस प्रकार चित्रकूट  सदा से ही विद्वानों सन्तों  एवं पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है।

यह अत्यंत हर्ष एवं महत्त्व का विषय है कि देश-विदेश में घूम-घूमकर ज्ञान राशि बटोरने वाले भारतीय मनीषा के अग्रदूत का सम्बंध चित्रकूट की पवित्र भूमि से है। भारतीय विचारकों में एक महापण्डित का नाम ही आलोकित होता है जिन्होंने घुमक्कड़ी को जीवन का मूल मंत्र बताया।

"सैर कर दुनिया की गाफ़िल, जिन्दगानी फिर कहाँ!

जिन्दगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहाँ!"

आज आवश्यकता है कि चित्रकूट के ऐसे समस्त स्थलों के संरक्षण एवं नवनिर्माण की जो प्राचीन काल से ही धर्म,आस्था,एवं भारतीय मनीषियों के ठिकाने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
                    

     भगवाान् जगन्नाथ( कृष्ण, सुभद्रा, बलराम)

©️अनुज पण्डित

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