Tuesday, August 25, 2020

क्वचिदपि कुमाता न भवति


 यह तस्वीर है कोलकाता में रहने वाली रानू मण्डल(बाएँ) की और साथ में है उनकी बेटी जो दस वर्षों के बाद अपनी माँ से मिली है। इन दस वर्षों में इस बेटी को अपनी माँ की याद नहीं आयी क्योंकि उसकी माँ रानू मण्डल दिखने में बदसूरत थी। 

अकेली रानू मण्डल रेलवे स्टेशन्स पर गाना गाकर लोगों से पैसे माँगकर जीवन बिताती रही। रानू मण्डल के भीतर जो सुरीली आवाज है वो ईश्वर प्रदत्त(God gifted) है । वो हमेशा सुश्री लता मंगेशकर के गीतों को गाया करती थी परन्तु लोगों ने उसकी प्रतिभा को नजरअंदाज किया। 
●एक दिन एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर अतीन्द्र की पारखी नजरें रानू मण्डल की प्रतिभा को पहचान लेती हैं और अतीन्द्र ने उसका वीडियो बनाकर अपने फेसबुक एकाउंट तथा टिक टॉक में शेयर कर दिया । 

रानू मण्डल का भाग्य चमका और जाने माने म्यूजिक कंपोजर #हिमेश_रेशमिया जी की नजर इस गरीब प्रतिभा पर पड़ी । बस ,हिमेश ने रानू के साथ अपनी आने वाली फिल्म का गाना रिकॉर्ड किया और इस तरह रानू रातों रात बॉलीवुड की स्टार बन गयीं। 

इसे कहते हैं किस्मत जो संसाधन, और जुगाड़ के बिना भी किसी अकिंचन को चमका  सकती है। आज साबित हो गया कि कर्म के अतिरिक्त भाग्य की भी अहम भूमिका होती है, जिसे नकारा नहीं जा सकता।

यह तो कहानी है रानू मण्डल के सफ़र की किन्तु इसके बाद जो हुआ वो चिंतनीय भी है और करुणामय भी।


रानू को स्टार बनती देखकर उनकी बेटी जो दस वर्षों तक अपनी माँ का त्याग किये रही ,वो अब मम्मी मम्मी कहते हुए अपनी माँ के पास पहुँच गयी। माँ वास्तव में माँ होती है, उसने उसी प्रेम से बेटी को गले लगाकर स्वीकार किया। 

दुर्गा शप्तशती में सही लिखा है कि "कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति"-अर्थात् औलाद भले ही बुरी निकल जाए किन्तु माँ कभी बुरी नहीं हो सकती।

                         ✍ अनुज पण्डित

👆यह आलेख 1 वर्ष पूर्व लिखा गया था।

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