Wednesday, October 21, 2020

वह गुफा आज भी मौजूद है जहाँ सती अनुसूया ने त्रिदेवों को बनाया था बालक

तीनों लोकों में  स्वच्छंद और निर्बाध विचरण करने वाले देवर्षि की संज्ञा से नवाजे जाने वाले हिरण्यगर्भ के पुत्र नारद टहलते-टहलते उस स्थान पर पहुँच गये जहाँ त्रिदेव-पत्नियाँ परस्पर बातें कर रही थीं।

अब यदि  साधारण व्यक्ति आपस में कुछ चर्चा कर रहे होते तो शायद अंभोरुहकेसरद्युती-जटाओं को धारण करने वाले नारद बिना ध्यान दिए ही निकल लेते किन्तु वहाँ पर तो विशिष्टाविशिष्ट त्रि-देवियाँ आपस में चर्चा कर रही थीं। 


जब चर्चा करने वाले अतिविशिष्ट हों तो उनकी चर्चा और चर्चा का विषय भला कैसे साधारण हो सकता है! यही सोचकर कृष्णमृगचर्म को धारण करने वाले नारद उस स्थान पर रुकने एवं चर्चा का विषय जानने हेतु उत्कंठित हो उठे।


तीनों देवियों (सरस्वती,लक्ष्मी एवं पार्वती) का परस्पर विमर्श का विषय कोई अन्य व्यक्ति न होकर आपसी ही था। वे तीनों अपने-अपने सतीत्व,पवित्रता और पातिव्रत को तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ कहकर आत्म-श्लाघा में निमग्ना थीं। 

  माता अनुसूया ने स्थापित की थी यह शिवलिंग

  
नारद जी के आने से पहले तक तो स्थिति आनन्दित और हर्ष से सराबोर थी किन्तु उनके पदार्पण करते और मुँह खोलते ही रंग में भंग पड़ गया। तीनों देवियों के मुस्काते चेहरे पर चिंता और ईर्ष्या की परत जम गयी। 

 दरअसल बर्फ के समान धवल शरीर वाले देवर्षि ने कहा कि हे माताओं! आप तीनों खुद को सर्वश्रेष्ठ सती,पतिव्रता और पवित्र समझने की गलतफहमी में न रहें क्योंकि मर्त्यलोक में परमपावन और स्वर्ग से भी अधिक रमणीय स्थान चित्रकूट में महर्षि अत्रि अपनी पत्नी संग निवास करते हैं।

           महर्षि अत्रि की प्रतिमा


अत्रि की पत्नी अनसूया( आम बोल-चाल में अनुसूया, अनुसुइया आदि) इस समय तीनों लोकों में सर्वाधिक सतीत्व,पवित्रता और पातिव्रत-धर्म को धारण करने वाली हैं। बस यही बात सुनकर त्रिदेवियाँ ईर्ष्या से भर गयीं और नारद से बोलीं कि हम नहीं मानते कि मृत्युलोक पर रहने वाली कोई स्त्री हमसे बढ़कर इन गुणों से युक्त हो सकती है!

तब मुनिश्रेष्ठ ने मुस्कुराकर "नारायण-नारायण" का सम्पुट लगाते हुए  कहा कि हे माताओं! आप यदि इस बात की पुष्टि करना चाहती हैं तो त्रिदेवों (ब्रह्मा,विष्णु,महेश) से पूछकर कर सकती हैं। बस फिर क्या था! क्रमशः सर्जक,पालक,और संहारक कहे जाने वाले तीनों देवों के पास नारद सहित तीनों देवियाँ पहुँच गयीं। 


यथोचित अभिवादन कर लेने के बाद तीनों ने अपना प्रश्न उनके समक्ष रखा। तीनों देव  महती नामक वीणा को धारण किये हुए नारद की ओर देखकर मन्द-मन्द मुस्कान छोड़ते हुए बोले कि-हे देवियों! तपस्वियों में श्रेष्ठ और महामुनि नारद ने उचित ही बखान किया है। इस समय अत्रिपत्नी माँ अनुसुइया से बढ़कर सती,पतिव्रता एवं पवित्र नारी तीनों लोकों में नहीं है। 

          सती अनुसुइया की प्रतिमा


अब तीनों देवियों के रोष का पारावार न रहा। तीनों ने साधिकार अपने-अपने पतियों से प्रार्थना की कि हे देव! आप अनुसुइया का सतीत्व का परीक्षण करने धरती लोक जाइये क्योंकि बिना ऐसे तो हम मानने वाली नहीं। तीनों देवों ने बहुत समझाया कि उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य मत करें क्योंकि यह अनुचित है किंतु तीनों अपनी जिद पर अड़ी रहीं लिहाजा तीनों देव उतर पड़े महर्षि अत्रि के आश्रम पर। 

महर्षि अत्रि उस समय किसी आवश्यक कार्यवश अन्यत्र गये हुए थे। आश्रम में मात्र माँ अनुसुइया को   देखकर तीनों देवों ने सोचा कि यह अच्छा अवसर है उनकी परीक्षा लेने का सो त्वरित तीनों देवों ने साधुओं के रूप में खुद को तब्दील कर लिया और कुटिया के बाहर से ही एक ही स्वर में  अलख जगाया। अनुसुइया बाहर निकलीं तो देखीं तीन यति उनके द्वार पर भिक्षुओं की भाँति खड़े हैं।

माता ने उन्हें प्रणाम कर  सनातन परम्परा और संस्कृति के अनुसार उनका आतिथ्य-सत्कार किया। तीनों ने भोजन की इच्छा व्यक्त की तो माँ ने कहा आप तीनों विश्राम कीजिये, मैं अभी भोजन तैयार करती हूँ। किन्तु परीक्षक बनकर आये हुए त्रिदेवों ने ऐतराज जताते हुये कहा कि  "हे साध्वी! हम तभी भोजन ग्रहण करेंगे जब आप निर्वस्त्र होकर भोजन  परोसेंगी!"


यह सुनकर सती अनुसूया एक क्षण के लिए हड़बड़ा गयीं  किन्तु अगले ही क्षण अपनी आध्यात्मिक शक्ति के बल पर सत्यता का पता लगा लिया कि ये तीनों तो साक्षात् त्रिदेव हैं जो भिक्षु के रूप में मेरे सतीत्व की परीक्षा लेने आये हैं।  परम तपस्विनी माता ने उनकी शर्त स्वीकार करते हुए भोजन तैयार किया और  तीनों भिक्षुओं को भोजन करने हेतु आमंत्रित किया। 

तीनों देव इस सोच में डूबे थे कि आखिर इतनी कठिन शर्त को इस साध्वी ने शीघ्र स्वीकार कैसे कर लिया। किन्तु शायद उन्हें अनुसुइया की शक्ति और चतुरता का भान न था!  सती अनुसूया ने   कमण्डलु से निकालकर जल को हथेली में लिया और अभिमंत्रित करके तीनों देवों पर डाल दिया। बस फिर क्या था तीनों लोकों के नियामक त्रिदेव नवजात शिशु के रूप में तब्दील होकर वात्सल्य मय रुदन करने लगे। 

 इसी गुफा में अनुसूया ने कराया था त्रिदेवों को भोजन


माता ने तीनों को पालने में डालकर चिंता रहित होकर भोजन परोसा और ममतामयी माँ की तरह तीनों शिशुओं को भोजन करवाया। इस तरह से माँ अनुसूया का सतीत्व भी बरकरार रहा और तीनों देवों की शर्त का पालन भी हो गया! भला नवजात शिशु के समक्ष माता को निर्वस्त्र होने में कैसी हिचक! अब तीनों देव असहाय की स्थिति में माता की शक्ति के अधीन होकर क़ई दिनों तक पालने में झूलते हुए अनुसुइया की मातृ-ममता का लुत्फ उठाते रहे। 

इधर त्रिदेवियों को चिंता होना जायज है कि इतने दिन व्यतीत हो गए हमारे प्रीतम अभी तक परीक्षा लेकर नहीं लौटे!  जब उनसे रहा न गया तो वे तीनों भी पहुँच गयीं माँ अनुसुइया के आश्रम और विनती करने लगीं कि उनके पति यहाँ आये थे ,क्या आप बता सकती हैं वे कहाँ हैं, किस हाल में हैं?

माता अनुसूया ने मधुर मुस्कान बिखेरते हुये कहा कि हे देवियों! मैंने तुम्हारे पतियों को शिशु रूप में बदल दिया है। पालने में देखकर अपने-अपने पतियों को पहचान लो और ले जाओ!तीनों देवियों ने काफी गहनता से पहचानने की कोशिश की किन्तु तीनों बालकों को एक समान देखकर यह निश्चय न कर सकीं कि इनमें से कौन किसका पति है!

हैरान-परेशान तीनों देवियाँ माता अनुसुइया के चरणों पर गिर पड़ीं और अपनी भूल स्वीकारते हुए अपने कृत्य की क्षमा माँगी। है माता अनुसूया! आप ही तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता, सती और मन-कर्म-वचन से पवित्र हैं। हमने अज्ञानता वश खुद को सर्वश्रेष्ठ समझने की भूल की है। हमें क्षमा कर दीजिए!


नवनीत हृदय समान माँ अनुसुइया ने तीनों को तुरन्त क्षमा कर दिया और उनके पतियों को  उनके यथार्थ रूप में उन्हें लौटा दिया!  ऐसी पौराणिक मान्यता है कि कालांतर में ब्रह्मा,विष्णु,महेश ने माता अनुसुइया के गर्भ से क्रमश: चंद्रमा, दत्तात्रेय और ऋषि दुर्वासा के रूप में जन्म लेकर माता अनुसुइया की मातृत्व इच्छा पूर्ण की।


नोट- ऊपर चित्र में जो गुफा दिख रही है, यह वही गुफा है जिसके भीतर माता अनुसुइया ने त्रिदेवों के लिए भोजन परोसा था। यह गुफा आज भी चित्रकूट जनपद के सती अनुसुइया आश्रम में मौजूद है। माता अनुसुइया सहित महर्षि अत्रि,दत्तातत्रेय की प्रतिमाएँ आज भी आश्रम में विराजमान हैं।


अपने वनवासकाल के दौरान प्रभु राम माता सीता और लक्ष्मण सहित चित्रकूट स्थित अत्रि के आश्रम में पधारकर माता अनुसुइया का आशीर्वाद लिया था तथा माता सीता ने उनसे पतिव्रत धर्म की शिक्षा भी ग्रहण की थी। 

                      ✍️अनुजपण्डित

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