Wednesday, January 6, 2021

"सीता-परित्याग" की घटना पूर्वनिर्मित योजना थी

🍂 शृंगवेरपुर में  परम पावनी गङ्गा को पार करने के बाद  लक्ष्मण और सीता सहित श्रीराम जब भरद्वाज ऋषि से मिले तो उनसे  महाकवि वाल्मीकि के आश्रम की स्थिति जानने का अनुरोध किया। चूँकि  भरद्वाज मुनि वाल्मीकि के प्रिय शिष्य थे इसलिए वाल्मीकि सम्बन्धी समस्त जानकारियों से रूबरू रहते थे। भरद्वाज मुनि ने सहर्ष बताया कि प्रयाग से ठीक दश कोस यानि तीस किलोमीटर की दूरी पर सिरसा नामक स्थान पर गुरु जी का आश्रम आलोकित हो रहा है।


वाल्मीकि मुनि का आतिथ्य पाने के बाद हर्षित राम   जब पत्नी और अनुज सहित आश्रम का भ्रमण कर रहे थे तो प्रांगड़ की विभिन्न गतिविधियाँ देख-सुन कर आश्चर्यचकित तो हुए ही साथ ही भीतर से सहज प्रसन्नता भी फूट पड़ी। वेदपाठ की ध्वनि और  यज्ञ के सुगंधित धुएँ से आश्रम का समस्त वातावरण सुवासित होकर अलौकिक सुख प्रदान कर रहा था।संगीत,शास्त्र और युद्धकला में पारंगत छात्र यह मानकर  अभ्यास कर रहे थे कि बिना अभ्यास के विद्या विष के समान है।

राजनीति,आयुर्वेद,पशुपालन,स्वास्थ्य एवं स्वच्छता आदि विभिन्न प्रकार के विभागों से युक्त आश्रम को देखकर यह कहा जा सकता था कि त्रेता युग में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम शिक्षा का एक बड़ा केंद्र था,जहाँ पर सभी प्रकार की शिक्षा सभी छात्रों को समान रूप से दी जाती थी।


सबसे अधिक श्रीरामचन्द्र उस समय प्रसन्न हुए जब देखा कि मनु द्वारा गिनाए गये धर्म के दश लक्षणों  (धैर्य ,क्षमा,  दम, योग,चोरी न करना,सत्य,इन्द्रियनिग्रह, प्रातिभज्ञान,विविध विद्याएँ, क्रोध न करना करना)  की प्रेरणा भी  छात्रों को दी जा रही है! प्रभावित राम ने कहा, सीते! बच्चों की शिक्षा और चारित्रिक विकास हेतु यह आश्रम सर्वोत्तम जान पड़ रहा है।


उधर भ्रमण के दौरान सीता जी ने भी आश्रम की तपस्विनियों से ज्ञात किया कि यहाँ की स्त्रियाँ नारी धर्म के सभी गुणों से युक्त हैं,जिनमें से कुछ प्रसूति कार्य और नवजात शिशुओं की देखभाल में दक्ष हैं। सीता ने जब राम की प्रसन्नता देखी तो बोलीं- स्वामी! चूँकि इस समय हम तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं इसलिए कहना उचित नहीं है फिर भी यदि आपकी अनुमति हो तो अपने मन की बात आपके समक्ष प्रकट करूँ!

राम की मन लेकर सीता ने कहा कि-  गृहस्थ जीवन में आने के बाद यदि मैं भी माँ बनने के लक्षणों से युक्त होऊँ तो प्रसूतिकाल नजदीक आने पर आप मुझे यहीं इसी आश्रम पर ही प्रसूति के लिए भेजें! क्योंकि चौदह वर्ष बाद आप राष्ट्राध्यक्ष पद पर सुशोभित होंगे अर्थात् आप सारी जनता  के  पिता हो जाएँगे इसलिए सभी नागरिकों की पुत्र के समान रक्षा करना आपका परम धर्म हो जाएगा। ऐसे में पत्नी और संतान के मोह में पड़कर आप राष्ट्र की सेवा पूरे मन से कैसे कर पायेंगे!

राम ने कहा-सीते! माताएँ इस कार्य के आज्ञा नहीं देंगी कि ऐसी स्थिति में उनकी प्यारी बहू को पुनः तपोवन भेज दिया जाए! तब सीता ने मुस्कराते हुए  कहा कि आप तो कूट रचना में माहिर हैं! कोई उपाय निकालकर गोपनीय तरीके से मुझे यहाँ भेज दीजियेगा!  

यह आश्रम संतान के विकास हेतु अत्यंत उपयुक्त है क्योंकि बच्चे सभी प्रकार की शिक्षाएँ एक जगह ही प्राप्त कर सकते हैं और आप भी पत्नी एवं संतान के मोह से दूर रहकर अच्छी तरह राष्ट्र का संचालन कर सकेंगे।

                    ✍️ अनुज पण्डित

3 comments:

  1. शोभनम्🌷
    वर्धताम्

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  2. अपना तो पता नहीं कि नियोजित है कि लब्ध

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