🍂एक सनकी ऐसा भी!
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गर्मियों के दिन थे,सूरज के ताप से हर कोई हलकान था किंतु ऋतु चाहे जो भी हो, जरूरी काम तो करने ही पड़ते हैं! ऐसे ही एक जरूरी काम से सुमन भी अपने छः माह के बच्चे को लेकर पति सलिल के साथ इलाहाबाद के लिए निकली।
घर से लगभग तीन किलोमीटर दूर बस अड्डे पर बैठकर सलिल और उसकी पत्नी अपने गन्तव्य तक जाने वाली बस का इंतज़ार करने लगे। बस आयी और रुकी। सलिल ने झट से सामान उठाया और बस में प्रवेश कर गया,पीछे-पीछे सुमन भी बच्चे को गोद में सम्भालते हुए बड़ी सावधानी से बस में घुसी।..
विशेष रूप से महिलाओं के लिए रिजर्व सीटें पहले से ही भरी थीं लिहाज़ा सुमन को जनरल..(महिला-पुरुष दोनों ) सीट पर बैठना पड़ा। वास्तव में सलिल और सुमन दोनों यह चाहते भी थे कि हम दोनों एक साथ एक ही सीट..(डबल सीटर) पर बैठें।
बस चली और महज पाँच किलोमीटर बाद एक छोटे से स्टॉप पर बस रुकी। तभी ...एक साढ़े छः फीट का आदमी जिसकी असामान्य शक़्ल को देखकर कोई भी असहजता महसूस कर सकता था, बस में चढ़ा।...उसने एक सरसरी नज़र से ख़ाली सीट टटोला किन्तु एक भी सीट ख़ाली नहीं दिखी।
दोनों ओर की सीटों के बीच जो आने-जाने की गैलरी होती है,उस पर भी लोग पंक्तिबद्ध ढंग से खड़े गर्दन का पसीना पोछ रहे थे। ऐसी खचाखच स्थिति में वह गैलरी ही एकमात्र विकल्प थी जिस पर पैर जमाना सम्भव था सो वह व्यक्ति पँक्ति के बीचों-बीच खड़ा हो गया।
यह आम बात है कि बस के भीतर खड़े-खड़े यात्रा करने वाले यात्री अक़्सर सीट वाले यात्रियों से सटे रहते हैं और सीट पर बैठे यात्रियों का एक पैर भी कभी-कभी सीट की परिसीमा से बाहर निकला होता है ,जो बिना सीट वाले यात्री से सटता रहता है। कभी-कभी तो सीट न मिलने की वजह से खिसियाया हुआ खड़ा यात्री यह तक बोल देता है कि "अरे ओ भाईसाब! अपना पैर अन्दर कर लीजिए, इसकी वजह से मैं ठीक-ठीक खड़ा भी नहीं हो पा रहा हूँ।"
इत्तफ़ाक़ से जिस सीट पर सुमन अपने बच्चे को लेकर बैठी थी,उसी सीट से सटकर वह व्यक्ति जम गया। बस चल रही थी,सब अपनी-अपनी रुचि के अनुसार व्यस्त थे। कोई गर्मी को कोसकर शीत काल की तारीफ़ कर रहा था,कोई फ़ोन पर बात, कोई खिड़की के बाहर ताक रहा था , तो कोई नैनसुख लेने में ही मगन था।
तभी अचानक...सुमन के बच्चे ने लघुशंका कर दी सो सुमन ने जल्दबाजी में उसे गोद से उठा लिया । बच्चे को उठाते हुए लघुशंका के कुछ छींटे उस व्यक्ति के ऊपर पड़ गए जो वहीं सीट से सटकर खड़ा था। छींटे पड़े नहीं कि उस व्यक्ति का गुस्सा इन शब्दों के साथ फूट पड़ा कि..
" इसने मेरे ऊपर लघुशंका कैसे किया! मैं इसका टाना (दोनों टाँगों के बीच का हिस्सा) फाड़ डालूँगा।"
एक तो उसकी कर्कश आवाज, ऊपर से ऐसे शब्द वे भी एक नौनिहाल के लिए जिसे यह तक भान नहीं कि मैं कौन हूँ! ...सुमन और सलिल सहित बस के सभी यात्री सन्न हो गए। आज से पहले शायद किसी ने एक बच्चे के लिए ऐसे अपशब्द नहीं सुना था इसलिए सबने नजरअंदाज कर दिया किन्तु सलिल को धक्का लगा। उसने उस व्यक्ति से बड़ी विनम्रता से कहा-
" भाई साहब! बच्चा है, उसे नहीं पता कि कहाँ-क्या करना है! आप नाराज़ मत होइए,प्लीज।"
उस व्यक्ति ने फ़िर वही शब्द दोहराये-
"मैं इसका टाना फाड़ डालूँगा।"
सलिल- " अरे ! यह क्या कह रहे हैं आप! मैं साफ़ कर देता हूँ,आप कहें तो आपके लिए नए कपड़े दिलवा देता हूँ!"
सलिल ने बार-बार निवेदन किया, क्षमायाचना की किन्तु उस व्यक्ति के मुँह से बार-बार एक ही वाक्य निकल रहा था-
"मैं इसका टाना फाड़ डालूँगा।"
अब तो बस के अन्य यात्री भी आश्चर्यचकित हो गये ,यह देखकर कि, अरे! कितना अजीब इंसान है यह! एक दुधमुँहे बच्चे के लिए कोई ऐसा बोलता है क्या!
सभी ने उस व्यक्ति को अपने-अपने तरीके से समझाया किन्तु वह व्यक्ति अपने उसी एक वाक्य पर अड़ा रहा।सब यह समझ चुके थे कि या तो यह व्यक्ति कसाई है या दिमाग से सनकी! मामले को बढ़ता देखकर ड्राइवर ने एक थाने के सामने बस रोक दिया और दौड़कर जल्दी से इंस्पेक्टर को लिवा लाया।
इंस्पेक्टर के आते ही सुमन और सलिल ने पूरा मामला सुना दिया। इंस्पेक्टर ने कहा-
उस व्यक्ति के चेहरे में चिंता और भय की एक भी लकीर तक नहीं उभरी थी और न ही इंस्पेक्टर के आने से उसकी स्थिति में कोई परिवर्तन हुआ।
इंस्पेक्टर ने उससे कहा-" यार बिल्कुल पागल आदमी हो क्या? भला एक बच्चे के लिए कोई ऐसा बोलता है!"
इतना सुनते ही उस व्यक्ति ने फिर से वही वाक्य दोहराया-
"मैं इसका.....डालूँगा।"
इंस्पेक्टर को भी गुस्सा आ गया उसने कहा कि- "अच्छा! चलो फाड़ो, मैं भी देखता हूँ कि तुम कितने बड़े बाहुबली हो!"
इसके बाद जो हुआ,वह सुनकर आप सब हकबका जायेंगे कि ऐसा भी कोई करता है क्या!
किन्तु ऐसा ही हुआ। उस व्यक्ति ने बिना किसी असहजता के,बिना डर के उस नौनिहाल के दोनों पैर पकड़े और चर्र से फाड़ दिया!
सुमन,सलिल,इंस्पेक्टर और सभी यात्री सन्न..। एक पल के लिए घनी शांति छा गयी बस में। इंस्पेक्टर क्या किसी को भी इसका तनिक भी अंदाजा नहीं था कि वह व्यक्ति जो बोल रहा है, वह कर भी सकता है!
सुमन और सलिल का रो-रो कर बुरा हाल था। अरे एक ही तो संतान थी उनकी जो सात साल के लंबे इंतजार और कई मन्नतों के बाद हुआ था। सुमन बार-बार यह कर शिर पीट रही थी कि-
" काश! मैं जल्दबाजी में अपने जिगर के टुकड़े को डायपर पहनाना न भूलती तो आज यह अनर्थ न होता!
इंस्पेक्टर ने भीगी आँखों से अपनी टोपी उतारी और उस सनकी राक्षस के माथे पर पिस्तौल सटाकर गोली मार दी।
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नोट- कहानी के पात्र,और कथावस्तु सब काल्पनिक हैं। इसका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं।
#फ़ोटो_प्रतीकात्मक_साभार_गूगल
✍️ अनुज पण्डित
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