Saturday, January 23, 2021

संस्कृत की प्राचीनता और महत्त्व

निखिल वैश्विक भाषाओं में सर्वप्राक्तन भाषा के रूप में प्रतिष्ठित संस्कृत भाषा आज भी समूचे विश्व में आलोकित हो रही है। यूँ तो विश्व में क़ई प्रकार।  की भाषाओं का प्रयोग बोलचाल में हो रहा है किंतु इन सबमें कहीं न कहीं संस्कृत भाषा का प्रभाव परिलक्षित होता है। किसी भी भाषा की प्राचीनता का प्रमाण उसका अपना साहित्य होता है, इस हिसाब से विश्व का सर्वप्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद है जिसकी भाषा संस्कृत में अन्य किसी भाषा का प्रभाव दिखाई नहीं पड़ता है। यदि संस्कृत के पहले कोई भाषा होती तो उसका प्रभाव ऋग्वेद में प्रयुक्त भाषा संस्कृत में उसकी झलक दिख ही जाती! यह कहना पक्षपात नहीं होगा कि विश्व की अन्य भाषाएँ   संस्कृत का ही विकृत रूप हैं जो कालांतर में भौगोलिक उच्चारणों के कारण परिवर्तित रूप में प्रसारित हो गयीं!


संसार में कोई भी ग्रन्थ संस्कृत के ऋग्वेद से प्राचीन नहीं है, इस बात की पुष्टि इंग्लैंड के विद्वान् मैक्समूलर ने की।सृष्टि के आरम्भ में ही सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने चार ऋषियों (अग्नि,वायु,आदित्य,अंगिरा) को उत्पन्न करके उन्हें वेदों का ज्ञान प्रदान किया था।वेदों का उल्लेख भारत के समस्त प्राचीन  ग्रन्थों जैसे-ब्राह्मणग्रन्थ,उपनिषद्, मनुस्मृति,रामायण,महाभारत आदि में प्राप्त होता है।

वैदिक धर्म व संस्कृति सहित संस्कृत भाषा की प्राचीनता का प्रमाण मनुस्मृति के इस श्लोक में भी मिलता है, जिसमें स्वयं मनु कहते हैं कि-

एतददेशस्यप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्म:।

स्वं स्वं चरित्रं शिक्षरेन पृथिव्यां सर्वमानवा:।।


कुछ विद्वान् तमिल भाषा को संस्कृत से प्राचीन स्वीकार करते हैं किंतु एक प्रसंग से इस बात का आकलन आप स्वयं कर सकते हैं कि संस्कृत भाषा तमिल से निर्विवादेन प्राचीनतमा है----


"सिंहलद्वीप की अशोक वाटिका में बैठे हनुमान् जी इस विचार में डूबे थे कि मैं जगत् जननी सीता से आख़िर किस भाषा में बात करूँ क्योंकि यदि संस्कृत में बात करता हूँ तो सीता जी को शक हो सकता है कि मैं भी रावण का ही आदमी हूँ क्योंकि संस्कृत बोलना लंकावासी बखूबी जानते थे।

 और संस्कृत भी टूटी फूटी नहीं बल्कि द्रविण लोगों की तरह शुद्ध एवं परिमार्जित।अंजनि के लाल के भाल पर चिंता की रेखाएँ उभर रही थीं । क़ई तरह के विचार उनके जेहन में चल रहे थे ।जैसे-एक तो मैं वानर,दूसरा मेरा शरीर अतिसूक्ष्म। 

वानर होकर भी मैं मानवोचित संस्कृत भाषा में बोलूँगा किन्तु ऐसा करने से एक समस्या आयेगी।वह यह कि यदि मैं द्विज की भाँति संस्कृत का उच्चारण करूँगा तो सीता जी मुझे छद्म वेषधारी दशानन समझकर डर जायेंगी!

ऐसी अवस्था में मुझे उस भाषा का प्रयोग करना चाहिए जो अवध के आस-पास के आम जन बोलते हैं,अन्यथा मैं सीता माँ को विश्वास नहीं दिला सकूँगा कि मैं श्री राम का सच्चा अनुचर हूँ।"

रामायण का उद्धरण इसलिए दिया क्योंकि ऋषि अगस्त्य से पहले तमिल भाषा का जानकार इस भूलोक में कोई न हुआ। 


आदिदेव शङ्कर ने अगस्त्य को तमिल का ज्ञान दिया। अगस्त्य मुनि राम के समय भी मौजूद थे।उसके पहले वैदिक संस्कृत का बोलबाला था और यह भी पढ़ने को मिला है कि अगस्त्य मुनि का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। 

इस प्रकार संस्कृत ही विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है, इसमें कोई संदेह नहीं।

अब बात करते हैं वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संस्कृत भाषा की उपादेयता की तो  संस्कृत के दम पर ही भारत ज्ञान-विज्ञान की सम्पदा से युक्त था जिसके कारण इसे विश्व गुरु कहा जाता था। यवनों और अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाने हेतु यहाँ की समृद्धि का मुख्य आधार संस्कृत भाषा को क्षीण करने का काम शुरु किया ताकि यहाँ के गुरुकुलों में मिल रही वैज्ञानिक एवं चारित्रिक शिक्षा का ह्रास हो सके। संस्कृत के ग्रन्थों में जीवन को सुचारू रूप से चलाने वाली ऐसी क़ई महत्त्वपूर्ण बातों का उल्लेख है जिनका अनुकरण करके मानव समाज में व्याप्त अपराध,शोषण,चारित्रिक दोष एवं अनाचार  से निजात पा सकता है।



संस्कृत की उपादेयता का सबसे अच्छा उदाहरण यह उक्ति है कि  "भारतस्त प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा" यह उक्ति चीख चीख कर कह रही है कि भारत की प्रतिष्ठा मात्र दो चीजों को अपनाकर ही बचाई जा सकती है। पहली संस्कृत और दूसरी संस्कृति।

किसी भी देश का नैतिक एवं चारित्रिक विकास उस देश के चहुंमुखी विकास का मुख्य आधार है और उसके लिए उस देश के निवासियों को वहाँ की संस्कृति और सभ्यता को जीवंत रखे रहना चाहिए। भारत की संस्कृति से जुड़े समस्त तथ्य संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं।अस्तु हमें अपनी संस्कृति जानने हेतु संस्कृत का सहारा लेना ही होगा!

एक विदेशी विद्वान् सर विलियम जोन्स ने वर्ष 1784 में कलकत्ता के एक समारोह में कहा था कि "अब मेरे हाथ में वह कुंजी आ गयी है, जिसके सहारे मैं दुनिया की समस्त भाषाओं के रहस्य खोल सकता हूँ।यह कुंजी है-संस्कृत भाषा।


संस्कृत के ग्रन्थों में वह अमूल्य निधि छिपी है जिस पर शोध करके हम विश्व को अपने समक्ष नतमस्तक कर सकते हैं। अमेरिका,जर्मनी आदि देश आज भी संस्कृत पर सतत शोध करके इसकी वृद्धि हेतु प्रयत्नशील हैं।

संस्कृत भाषा के महत्त्व को समझने के लिए हमें निम्न लिखित बिंदुओं पर ध्यान देना होगा-


1-यूनेस्को की रिपोर्ट 2004 के अनुसार दुनिया की सभी भाषाएँ संस्कृत से प्रभावित हैं।

2-नासा के वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है कि अब का युग कंप्यूटर का युग है और कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा संस्कृत ही है जिसे चाहे जिस क्रम में लिखें,इसका अर्थ नहीं बदलता।

3-फोर्ब्स पत्रिका 1984 के अनुसार कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा संस्कृत है।

4-विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉक्टर लारेंन हेस्टिंगं के अनुसार मरीजों का इलाज भी संस्कृत भाषा द्वारा किया जा सकता है क्यूंकि संस्कृत बोलने से मधुमेह,रक्तचाप,मस्तिष्क जैसे रोग ठीक होते हैं। तंत्रिका तंत्र को मजबूत रखने में भी संस्कृत कारगर है।

इनके अतिरिक्त संस्कृत भाषा के ग्रन्थों में शोध करके परमाणु हथियार,वायुयान एवं तकनीकों का आविष्कार भी सम्भव है। संस्कृत की वैज्ञानिकता से प्रभावित होकर ही आज जर्मनी,अमेरिका,फ्रांस,रूस,ऑस्ट्रिया, स्वीडन जैसे देश नर्सरी कक्षा से ही संस्कृत पढ़ना अनिवार्य किये हैं। कहीं ऐसा न हो कि  कल संस्कृत वैश्विक भाषा घोषित हो जाये और हम भारतीय इसे मृत या तुच्छ भाषा समझकर मात्र इसका उपहास ही करते रहें!



इन सबसे अलग संस्कृत भाषा की उपयोगिता वर्तमान समय में रोजगार की दृष्टि से भी है। अभी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में संस्कृत भाषा को बाहर नहीं किया गया है। हमारे छात्र संस्कृत को एक विषय के रूप में रखकर विभिन्न स्तर के रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। प्रशासनिक,शैक्षिक एवं सेना आदि क्षेत्रों में आज भी संस्कृत के छात्रों का चयन तेजी से हो रहा है। इसलिए संस्कृत भाषा हर तरह से ग्राह्य और उपयोगी है।
#फ़ोटो_साभार_गूगल

                ✍️अनुजपण्डित

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