Wednesday, January 27, 2021

ग्राम-पंचायत चुनाव अन्य चुनावों से किस तरह अलग हैं तथा युवाओं की क्या भूमिका है?

🍂ग्रामपंचायत -चुनाव को, अन्य चुनावों से इसलिए अलग ढंग से देखा जाता है क्योंकि गाँव के मतदाता और प्रत्याशी कहीं न कहीं एक दूसरे से अत्यंत नजदीक से जुड़े होते हैं।   परिवार,बिरादरी,पट्टीदारी और गाँवदारी के अतिरिक्त एक जो सबसे अहम सम्बंध होता है, वह है सम्मान और प्रेम का सम्बंध!


एक समय था जब चुनाव चाहे जो भी लड़े किन्तु प्रत्याशियों में परस्पर तनातनी नहीं थी। देखते ही देखते गाँव का  राजनीतिक वातावरण  बदल गया ! पहले मुखिया का चुनाव होता था तो आपसी सहमति से निर्विवाद रूप से किसी व्यक्ति को मुखिया चुन लिया जाता है। अब मुखिया की जगह प्रधान ने ले ली। शुरुआती दौर में प्रधानी के भी चुनाव में लोगों की खास दिलचस्पी नहीं रहती थी। एक गाँव में दो या ज्यादा से ज्यादा तीन उम्मीदवार होते थे किंतु जैसे- जैसे  जनजागरूकता बढ़ी और किताबों,अखबारों,टीवी चैनलों,मोबाइल आदि के माध्यम से जनता ने लोकतंत्र का वास्तविक मायने समझा तब से ग्राम-पंचायतों का चुनाव रोमांचकारी और जुझारू  होना शुरु हो गया!

किन्तु इस बढ़ती हुई जागरूकता और राजनीति के नशे ने  लोगों के बीच एक खुला संग्राम छेड़ दिया है। बड़े चुनावों में पक्ष और विपक्ष कहने को तो दोनों एक दूसरे के विपक्षी हैं किंतु उनमें व्यक्तिगत टकराव नहीं होता। टकराव होता है तो मात्र विचारों में किन्तु गाँव के प्रत्याशी आपस में इस तरह नफ़रत का बीज बोये रहते हैं कि एक-दूसरे को देखना तक पसन्द नहीं करते! 


 गाँवों में अब प्रेम,सम्मान और आपसी भाईचारा नहीं बचा क्योंकि राजनीतिक गहमागहमी ने सब नष्ट कर दिया। अब बचा है तो मात्र स्वार्थ,दिखावे की हमदर्दी और धनलोलुपता। जब गाँव में प्रेम,रिश्तों का लिहाज़, आपसी विश्वास और  सहयोग जैसे तत्त्व मर चुके हों तब गाँव, गाँव नहीं रहता बल्कि नगर और महानगर का रूप ले लेते हैं।  
अब बात करते हैं ग्राम पंचायत चुनावों में युवाओं की स्थिति एवं उनकी भूमिका की तो    
उभरते लोकतंत्र में युवाओं की भूमिका राजनीति के क्षेत्र में काफ़ी प्रभावकारी सिद्ध हो रही है। प्रदेश से लेकर देश स्तर तक के चुनावों में युवा बढ़-चढ़ कर रुचि ले रहे हैं तथा विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए काम कर रहे संगठनों में प्राप्त दायित्वों का बखूबी निर्वहन भी कर रहे हैं किंतु ग्राम पंचायत चुनावों में  युवाओं की स्थिति अभी संतोषजनक नहीं। 

यहाँ युवाओं को मात्र और मात्र मतदाता के रूप में तवज्जो दी जाती है क्योंकि चुनाव लड़ने वाले इन युवाओं के अपने बुजुर्ग या सगे सम्बन्धी जन होते हैं। ग्राम पंचायत चुनावों के  प्रत्याशी आज भी गाँव के युवा तबके को गम्भीरता से नहीं लेते। उनके दिमाग में यह बात घर की हुई है कि ये तो अभी बच्चे हैं, इन्हें राजनीति का क्या ज्ञान! यदि पूरे गाँव में बैठकर यह राय ली जाए तो बहुत कम लोग ही इस बात से सहमत होंगे कि किसी युवा प्रत्याशी को उम्मीदवार बनाया जाए। दरअसल आज भी ग्रामीण तबके में शिक्षा और जागरुकता  का प्रतिशत कम ही है जिसके तहत मतदाता की मानसिकता के कदम आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहे। 

आज भी गाँवों के अधिकांश घरों में अभिभावक  की बात के खिलाफ जाना अशिष्टता और असभ्यता समझा जाता है जिसका प्रभाव चुनाव के समय भी देखने को मिलता है। किसी घर का युवा चाहकर भी अपने पसंदीदा प्रत्याशी का समर्थन नहीं कर सकता क्योंकि उसके घर वालों की राय किसी अन्य प्रत्याशी के पक्ष में है। यदि लोकतंत्र के नियम के अनुसार वह अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए किसी योग्य प्रत्याशी का पक्षधर भी बनता है तो घर वाले उसे यह दलील देते हैं कि आपसी सम्बन्ध एवं व्यवहार ख़राब न करो,गाँवदारी और पट्टीदारी का ख्याल रखो। इस तरह से एक शिक्षित और आधुनिक विचारों वाला युवा अपना मत घरवालों के मत में मिलाने को मजबूर हो जाता है। 


समय बदल रहा है, युवा भी गाँव का एक जिम्मेदार नागरिक और मतदाता है। उसे भी हक है कि गाँव के विकास के बारे में अपनी राय बेबाकी से रखे तथा अपने बनाये गए घोषणापत्र के विभिन्न बिंदुओं पर प्रत्येक प्रत्याशी की राय ले। बड़े-बुजुर्ग युवाओं की राय से अपनी राय मिलाकर सोचेंगे तो निश्चित रूप से एक आधुनिक एवं विकसित गाँव का सपना साकार होगा।

विभिन्न राजनीतिक चुनावों की तरह ही ग्राम पंचायत चुनावों में भी युवाओं का दख़ल देना बेहद जरूरी है क्योंकि अब समाज बदल रहा है, विकास  का स्वरूप बदल रहा है तथा तकनीकी युग का प्रवेश हो चुका था।  गाँव के चुनावों में युवाओं की बात को गम्भीरता से सुना और समझा जाना जरूरी है तभी एक नई सोच का विस्तार होगा और परिवार,रिश्तेदारी,पट्टीदारी,गाँवदारी एवं बिरादरी से ऊपर उठकर एक योग्य एवं काम करने वाला मुखिया गाँव को मिल सकेगा।

                              ✍️ अनुज पण्डित            

2 comments:

  1. खरी खरी एवं सत्य वचन ✌️

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  2. असम्भव है, गाँव का प्रधान प्रायः वही होता है जिस जाति की जनसंख्या अधिक होती है, युवाओं से ज्यादा महिलाओं की भागीदारी रहती है जो घर के पुरुषों के इसारों पर मत देती हैं

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