Saturday, January 30, 2021

ग्रामपंचायत चुनावों में क्यों गायब रहता है घोषणापत्र?

लोकतांत्रिक निर्वाचन प्रणाली के नियमानुसार किसी भी चुनाव में प्रत्येक उम्मीदवार को चाहिए कि चुनाव से पूर्व जनता के समक्ष अपना तैयार किया हुआ घोषणापत्र प्रस्तुत करे ताकि जनता उस घोषणापत्र के अनुसार अपने मत का निर्धारण कर सके। 

घोषणापत्र में वे सारी बातें समाहित रहती हैं,जो जनता और उस क्षेत्र के विकास से सम्बंधित होती हैं। प्रत्येक उम्मीदवार के मन में क्षेत्र के विकास को लेकर अलग तरह की योजनाएँ रहती हैं और वह जनता के सामने अपनी योजना के तहत विकास की बात करता है किंतु ग्रामपंचायत चुनावों में इस तरह का कोई भी घोषणापत्र नजर नहीं आता क्योंकि न तो उम्मीदवारों को इसकी फ़िक्र है और न जनता इतनी जागरूक है कि वह उम्मीदवार से सवाल-जवाब कर सके!

यदि किसी गाँव का कोई शिक्षित और जागरूक व्यक्ति उम्मीदवारों को जनता के समक्ष बिठाकर उनका दक्षता भाषण करवाने की योजना बनाता भी है तो विभिन्न तरीकों से उसे डराया-धमकाया जाता है लिहाज़ा विवाद की स्थिति से बचने हेतु कोई भी व्यक्ति इस कार्य को अंजाम देने की सोचता भी नहीं !

मूलभूत सुविधाओं के अतिरिक्त भी गाँववासियों की क़ई आवश्यकताएँ होती हैं किंतु हर बार के चुनाव में विजयी प्रधान बस बिजली,पानी और सड़क जैसी जरूरतों को पूरा करने तक ही सीमित रहता है। किसी भी प्रत्याशी या जनता के जेहन में यह बात नहीं आती कि शिक्षा, राशन ,आवास,शौचालय  और पेंशन जैसे मुद्दों पर भी विशेष चर्चा होनी चाहिए। 

गाँव में शिक्षा का माहौल और तत्सम्बन्धी संसाधनों की समुचित व्यवस्था के लिए पुस्तकालय की स्थापना,रोजगारपरक शिक्षा के लिए विभिन्न कौशल-प्रशिक्षणों की शुरुआत तथा खेल-कूद की सामग्री आदि का समुचित प्रबन्ध भी गाँव के चतुर्दिक विकास के प्रमुख अंग हैं। इक्कीसवीं सदी के गाँव में यदि इन सब संसाधनों की व्यवस्था नहीं होगी तो कब होगी? आजादी के बाद से अबतक न जाने कितने प्रधान आये और गये किन्तु किसी ने गाँव के विकास हेतु अपना दृष्टिकोण व्यापक नहीं किया। 


इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि बड़े राजनीतिक चुनावों की तर्ज पर ही अब ग्राम पंचायत चुनावों में भी मतदाताओं को खरीदा जाता है।कभी रुपये, कभी मोबाइल,कभी मतदाता को निजी लाभ का लालच देकर उसे रिझाया जा रहा है ।अब यदि कोई प्रत्याशी इतना अधिक धन व्यय करेगा तो भला गाँव के विकास के लिए उसकी आत्मा कैसे गवाह देगी! जनता का भी मुँह नहीं खुलता क्योंकि उसका मुँह पहले ही बन्द करा दिया गया है!

बहुत से गाँव तो ऐसे भी हैं जहाँ अभी तक दस्युओं का भय मंडरा रहा था जिसके चलते चाहकर भी  वहाँ की जनता अपने पसंदीदा प्रत्याशी का चुनाव नहीं कर सकती थी क्योंकि प्रत्याशी दस्युओं को रुपये गिन देता था बदले में दस्यु जनता में डर का माहौल विकसित कर देते थे। मजबूरन जनता वहीं वोटिंग करती थी जहाँ दस्युओं का फरमान रहता था!


अब समय काफ़ी बदल चुका है। गाँव की जनता भी शिक्षित और जागरूक होने लगी है इसलिए प्रत्येक गाँव के मतदाता को  अपने प्रत्याशियों से उसके घोषणापत्र की माँग करनी चाहिए और उसी घोषणापत्र के आधार पर योग्य एवं कर्मठ प्रत्याशी का चुनाव करना चाहिए। 

धन-बल और वंशवाद की राजनीति को समझकर ऐसे व्यक्ति का चुनाव करना होगा जो वास्तव में गाँव को इक्कीसवीं सदी का गाँव बनाने के लिए कटिबद्ध हो। 


#गाँव_पर_चर्चा_क्रमशः.....
                                   ✍️ अनुज पण्डित
फ़ोटो साभार गूगल

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