Wednesday, February 10, 2021

यहाँ होता है गङ्गा-यमुना-सरस्वती का संगम

🍂इलाहाबाद का नाम काफ़ी बाद में बदला किन्तु यहाँ के भौगोलिक और सामाजिक बदलाव प्रयागराज होने से पहले ही दिखाई देने लगे थे। नाम बदला भी तो इस तरह जिसका शाब्दिक अर्थ अर्थपूर्ण नहीं लगता-प्रयागराज! 

संस्कृत व्याकरण के अनुसार बात करें तो इसका अर्थ होगा-प्रयागों का राजा(प्रयागानां राजा इति प्रयागराज:) । प्रश्न यह उठता है कि ऐसे कौन-कौन से प्रयाग हैं जिनका राजा यह प्रयाग है? कहीं उत्तराखण्ड राज्य के देवप्रयाग,रुद्रप्रयाग,कर्णप्रयाग आदि का राजा मानकर तो नहीं इसे प्रयागराज नाम करार दे दिया गया? 


तीर्थराज या तीर्थराजप्रयाग-ये दोनों शब्द समझ में आते हैं क्योंकि प्रयाग को तीर्थों का राजा कहा जाता है। खैर... इस बात की खुशी है कि उत्तरप्रदेश सरकार ने कम से कम इसे इसका प्राचीन और वास्तविक नाम पुनः  दिया क्योंकि इलाहाबाद के पहले 'प्रयाग' ही  था। प्रयाग इसलिए क्योंकि इस धरती पर  अनेक श्रेष्ठ यज्ञ  लगातार सपन्न किये जाते थे। इसके अतिरिक्त इसे संगम,त्रिवेणी आदि नामों से भी जाना जाता है। यहाँ गङ्गा-यमुना दो पवित्र नदियों का संगम है और सरस्वती भीतर ही भीतर बहती हैं, इसलिए इन तीनों के मिलन के कारण इसे त्रिवेणी कहा जाता है। 

सदियों से जनमानस इसे धर्म और आस्था का प्रतीक मानता आया है।इसी आस्था का दूसरा नाम  है-' प्रयागकुम्भ।' कुम्भ अर्थात् घड़ा/कलश जो भारतीय संस्कृति में लोकमंगल का प्रतीक माना जाता है। 

कुम्भ को धार्मिक स्वरूप दिया समुद्रमंथन की कथा ने। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि  समुद्रमंथन से अमृत निकला था ,उसे घड़े में भरकर ले जाते समय अमृत की  बूँदें जिस-जिस स्थान पर छलकीं,उस-उस जगह कुम्भ,अर्द्धकुंभ और माघमेले का आयोजन होने लगा।


बारह वर्षों में कुम्भ,छः माह में अर्द्धकुंभ तथा प्रत्येक साल माघमेले का आयोजन होता है। पूरा एक माह गङ्गा के तट पर कल्पवास करके श्रद्धालुजन पुण्यलाभ अर्जित करते हैं। यह महीना माघमेले का ही है।इस समय गङ्गा और संगम तट की शोभा देखते बनती है।  

                                  ✍️ अनुज पण्डित

2 comments:

  1. काफ़ी बारीकियों से सहेजे है साहब, अदभुद जानकारी हेतु आभार 💐

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  2. बहुत ही रोचक तथ्य ज्येष्ठ भ्राता।

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