चित्रकूट जिले के लालापुर गाँव में असावर माता का मंदिर है। अमूमन देवियों की स्थापना पहाड़ की ऊँचाई पर ही की जाती थी। इसी मंदिर से आगे पहाड़ पर और ऊपर चढ़ने पर आदिकवि वाल्मीकि का मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि वनगमन के समय श्री राम यहीं इसी स्थान पर वाल्मीकि से मिले थे।
आदिकवि वाल्मीकि की प्रतिमा
डाकू वाल्मीकि द्वारा साधुओं को बंधक बनाने, ब्रह्मा जी द्वारा वाल्मीकि को उपदेश देने, लक्ष्मण द्वारा सीता को छोड़ने, कुशलव-जन्म एवं उनके द्वारा अश्वमेध का घोड़ा पकड़ने आदि के चित्र पत्थर-सीमेंट से गढ़कर यहाँ रखे गये हैं। कुल मिलाकर स्थान की प्राचीनता और वाल्मीकि की प्रतिमा देखकर यह कह सकते हैं कि रामायण काल में वाल्मीकि का आश्रम यहीं था! वैसे प्राचीनकाल में ऋषि-मुनियों के एक से अधिक ठिकाने हुआ करते थे इसलिए दावे के साथ यह नहीं कह सकते कि यही वाल्मीकि का मुख्य आश्रम था।
साधुओं को बंधक बनाते वाल्मीकि
इसी पहाड़ के नीचे एक नदी बहती है, जिसे क्षेत्रीय लोग वाल्मीकि-नदी कहते हैं। रामकथा मूलक ग्रन्थों को पढ़ने पर यह मिलता है कि इनका आश्रम तमसा नदी के तट पर था,जहाँ स्नान के लिए गए वाल्मीकि एक बहेलिए द्वारा क्रौंच पक्षी को मार दिए जाने पर शोक से भर जाते हैं और उनका शोक श्लोक रूप में प्रस्फुटित होता है-
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वती समा:।यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधी:.काममोहितम्।।
बहेलिया,क्रौंच,वाल्मीकि एवं भरद्वाज
कहते हैं कि यही श्लोक लौकिक संस्कृत साहित्य का उत्स बना और रामायण की रचना कर वाल्मीकि लौकिक संस्कृत के आदि कवि कहलाये!
आधुनिक काव्यशास्त्री और समीक्षक प्रो.रहस विहारी द्विवेदी ने अपने महाकाव्य वाल्मीकिरामीयम् में रामायण के आधार पर वाल्मीकि आश्रम की स्थिति का वर्णन किया है। जब राम भरद्वाज मुनि से वाल्मीकि के आश्रम की स्थिति पूछते हैं तो भरद्वाज कहते हैं कि यहाँ से दश कोस यानि तीस किलोमीटर की दूरी पर गुरु जी का आश्रम है। इस आधार पर प्रो.द्विवेदी ने वाल्मीकि आश्रम की स्थिति ऋषिरसा जो कालांतर में सिरसा नाम से प्रचलित हुआ, स्वीकार किया है। यहाँ टमस/टौंस नदी भी बहती है जो पहले तमसा कहलाती थी ।
सीता को वन में छोड़ते लक्ष्मण
चित्रकूट वाला वाल्मीकि आश्रम मुझे इसलिए ठीक लगता है क्योंकि वाल्मीकि ने राम को बताया कि आपके रहने योग्य सुंदर स्थान चित्रकूट है। इसका अर्थ यही हुआ कि उन्होंने अपने नजदीक ही रहने को कहा होगा! चित्रकूट की भौगोलिक परिसीमा उस समय अधिक व्यापक थी।चित्रकूट विंध्यपर्वत शृंखला में आता है और विंध्य पर्वत का क्षेत्र प्रयाग से होता हुआ मिर्जापुर तक लगता है।इस हिसाब से हो सकता है कि राम यहीं सिरसा वाले आश्रम पर ही वाल्मीकि से मिलकर आगे चित्रकूट की ओर बढ़े हों!
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