देश-विदेश में बढ़ते कोरोना के दुष्परिणामों के कारण "कपूर" के प्रयोग और इसके महत्त्व की बातें लोगों की जुबां पर आने लगी हैं। प्राचीन काल से भारतीय पूजा-पद्धति और आयुर्वेद-चिकित्सा में प्रयोग किये जाने वाले कपूर की वैज्ञानिकता से हमारे पूर्वज बखूबी परिचित थे तभी तो आरती करने के लिए कपूर की अनिवार्यता थी।
आज भी जिस घर में कपूर से आरती की जाती है, उस घर का वातावरण शुद्ध, बैक्टीरियारहित और स्वास्थ्य के अनुकूल रहता है। भारतीय संस्कृति और भारतीय पूजा-पद्धति में जिन पदार्थों के प्रयोग की बात की जाती है,वे यूँ ही नहीं कह दी गयीं बल्कि इनके पीछे अनेक तरह के फायदे जुड़े हुए हैं।
यह दुःखद है कि नई पीढ़ी भारतीय मान्यताओं को खोखला समझकर इसकी अवमानना करती है। यदि शिक्षक एवं अभिभावक बच्चों को अपनी संस्कृति एवं पूजा पद्धति की महत्ता बताते हुए उसकी वैज्ञानिकता समझायेंगे तो निश्चितरूप से नई पीढ़ी उसको स्वीकार कर उसका प्रयोग करने से हिचकिचायेगी नहीं।
कपूर का संस्कृतनिष्ठ नाम "कर्पूर" है। इसे और भी नामों से जाना जाता है।जैसे- घनसार,हिमवालुका, सिताभ्र, चन्द्रसंज्ञ आदि। संस्कृत साहित्य एवं ग्रन्थों में शायद ही कोई ऐसा लेखक हो जिसने कर्पूर का जिक्र न किया हो। भगवान् शिव,नारद,हिमालय आदि की समता कर्पूर के वर्ण से अनेकशः की गई है।
कपूर जलाने के फायदों को निम्न बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-
1-बैक्टीरिया तथा कीटाणु नष्ट होते हैं
2-ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है।
3-कपूर को पानी में घोलकर पोछा लगाने से चींटी,कीड़े आदि नहीं आते
4- घर में यदि खुला कपूर रखा है तो शुद्ध वायु का संचार होता है ।
5-सूती कपड़े में कपूर और लौंग को बांधकर जेब में रखें और थोड़ी-थोड़ी देर में सूंघते रहें तो सर्दी,जुकाम, खाँसी, और श्वांस सम्बन्धी समस्याएँ और अन्य संक्रामक रोग दूर हो जाते हैं।
ध्यान रहे,कपूर शुद्ध होना चाहिए,केमिकल वाला नहीं अन्यथा विशेष लाभ नहीं होगा।वैसे भीमसेनी कपूर प्रमाणिक माना गया है और पतंजलि का भी ठीक है।
✍️अनुजपण्डित
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