Friday, May 14, 2021

"पुनि-पुनि चंदन, पुनि-पुनि पानी"- किसने कहा था और क्या है इसके पीछे की कहानी?आइये जानते हैं!

🍂"पुनि पुनि चंदन पुनि पुनि पानी, सर गें देउता हम का जानी!"- ये पँक्तियाँ तो आप लोगों ने बहुधा सुनी होंगी किन्तु ये पँक्तियाँ किसके मुख से निसृत हुई थीं, यह शायद कम ही लोग जानते होंगे!


ऋषि अगस्त्य के शिष्य थे सुतीक्षण।एक बार जामुन तोड़ने के लिए सुतीक्षण ने भगवान् शालिग्राम को पत्थर की तरह उपयोग करते हुए जामुन पर फेंक कर मारा। जामुन तो गिरी नहीं, उल्टा शालिग्राम की पिंडी गायब हो गयी। बहुत खोजा किन्तु मिली नहीं। तीक्ष्ण मस्तिष्क वाले सुतीक्षण ने विचार किया कि यदि जामुन के फल को शालिग्राम के स्थान पर रख दिया जाए तो गुरु जी को भनक नहीं लगेगी। 

जब पूजा करते समय गुरु जी ने शालिग्राम को रगड़कर धोया तो वह पिघल गयी।गुरु जी ने देखा कि अरे यह तो जामुन है, शालिग्राम कहाँ गए! सुतीक्षण को बुलाकर पूछा तो सुतीक्षण ने जवाब में ये ही पँक्तियाँ कही थीं कि बार-बार पानी से नहलाये जाने और चंदन लगाने से भगवान् की पिंडी सड़ गयी होगी! गुरु जी को क्रोध आया और कहा कि जब तक शालिग्राम की पिंडी नहीं खोज लेते तब तक आश्रम में आना मत।

स्वाभिमानी सुतीक्षण ने कहा कि पिंडी क्या अब तो मैं साक्षात् भगवान् को सशरीर लेकर ही आपके पास आऊँगा। सुतीक्षण गये और चित्रकूट क्षेत्र में अपना आश्रम बनाकर रहने लगे। उस समय चित्रकूट का भूभाग अत्यंत विस्तृत था। आज सुतीक्षण आश्रम मध्यप्रदेश जनपद के अंतर्गत आता है। वनवास काल के दौरान ऋषि सरभंग से विदा लेने के पश्चात् श्रीराम ऋषि सुतीक्षण से मिले थे ।


मध्यप्रदेश के सतना जिले के वीरसिंहपुर से यह स्थान लगभग चौदह मील की दूरी पर है। पिछले साल जब मैं विभिन्न धार्मिक स्थलों का भ्रमण कर रहा था तो सुतीक्षण आश्रम पर भी जाना हुआ था। आश्रम में ऋषि सुतीक्षण और जानकी-लक्ष्मण सहित प्रभु राम की प्रतिमाएँ स्थापित हैं। आश्रम की रमणीयता, शांति और सुकून को महसूस कर ऐसा लगता है, मानो यहीं पूरा जीवन व्यतीत कर दें। शायद इसीलिए भगवान् राम चित्रकूट प्रवास के दौरान सबसे अधिक इसी आश्रम में रहे थे। चित्रकूट की सीमा के अंतर्गत सुतीक्षण अंतिम ऋषि थे जिनसे राम मिले थे। 

आश्रम के बाहर एक कुण्ड है जिसके बारे में मान्यता है कि लक्ष्मण जी ने अपने बाण से यहाँ जल निकाला था। यहीं से प्रभु राम  सुतीक्षण ऋषि को साथ लेकर ऋषि अगस्त्य के दर्शनों हेतु आगे बढ़े थे। वनगमन के दौरान प्रभु राम जिन-जिन स्थलों पर रहे,वहाँ जाने पर उनकी मौजूदगी का एहसास आज भी होता है। 


                   ✍️ अनुज पण्डित

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