Saturday, June 12, 2021

केनोपनिषद् में क्या वर्णित है? क्या है इसका उद्देश्य?

#उपनिषच्चर्चा_भाग_7
                 🍂केनोपनिषद्
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सामवेद के तवलकार ब्राह्मण के नवम अध्याय में उल्लिखित यह उपनिषद् अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। "केन" का अर्थ होता है-'किसके द्वारा।' शिष्य, गुरु से प्रश्न करता है कि वह कौन है जिसके द्वारा हम प्रकृति के विभिन्न रहस्यों को जान सकते हैं? किसके द्वारा हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ कार्य करने को प्रवृत्त होती हैं और किसके द्वारा ज्ञान और आत्मा को संचालित किया जाता है?

इस तरह के प्रश्न शिष्य, अपने गुरु से पूछता है और गुरु उन प्रश्नों के उत्तर देता है। ये प्रश्नोत्तर ही इस उपनिषद् में वर्णित हैं। उत्तर के माध्यम से गुरु, शिष्य को बताता है कि वह सर्वशक्तिमान साक्षात् ब्रह्म है। वही ब्रह्म चेतन रूप में सभी में निवास करता है। ब्रह्म को जानने के लिए साधना की जरूरत पड़ती है और जो साधक इंद्रियों में चेतना भरने वाले ब्रह्म को जान लेता है,वह जीवनमुक्त होकर संसार के आवागमन से मुक्त हो जाता है।
वह ब्रह्म सर्वश्रेष्ठ और निर्विकार है। आँखों से न तो उसे देखा जा सकता है और न कानों से सुना जा सकता है। इस उपनिषद् में चार खण्ड हैं-

प्रथम और द्वितीय खण्ड में गुरु-शिष्य का संवाद है।  उस परमसत्ता की विशेषताओं,उसकी गूढ़ अनुभूतियों का गहन विश्लेषण हुआ है।


तृतीय और चतुर्थ खण्ड में ब्राह्मी चेतना के प्रकटीकरण का उल्लेख है। यह ब्राह्मी चेतना यज्ञ-रूप ने उत्पन्न हुई है।

एक बार देवताओं को अभिमान हो गया था तो परब्रह्म  उनका मान-मर्दन करने के उद्देश्य से ब्राह्मी चेतना में प्रकट हुए। इसके बाद माता पार्वती ने देवताओं के लिए ब्रह्मतत्त्व का उपदेश किया और ब्रह्म की उपासना का तरीका समझाया। 

केनोपनिषद् का मुख्य उद्देश्य मनुष्य को श्रेय-मार्ग की ओर उन्मुख करना है।


फ़ोटो साभार गूगल।          सादरं नमस्करोमि
                           ✍️ अनुज पण्डित

Saturday, June 5, 2021

क्या आपको पता है कि पर्यावरण की चिंता सबसे पहले कब की गयी?


आपको क्या लगता है कि पर्यावरण की चिंता और प्रदूषण की समस्या की वजह से सबसे पहले 1972 में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने इस दिवस को मनाने की नींव रखी? क्या दुनिया का पहला पर्यावरण-सम्मेलन स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में आयोजित हुआ? 

आपको अवगत करा दूँ कि सबसे पहले पर्यावरण की चिंता वैदिक काल में की गयी। हमारे मन्त्रदृष्टा ऋषियों ने प्रकृति के समस्त घटकों के महत्त्व और संरक्षण हेतु जनजागरूकता-अभियान चलाया। उन्होंने प्रकृति के सभी घटकों को देवतुल्य समझते हुए उनकी उपासना एवं उनका संवर्द्धन करते हुए विभिन्न मंत्रों के द्वारा उनसे प्रार्थना की  कि अपनी कृपादृष्टि सदैव हम मानुषों पर बनाये रखें।

प्रकृति के इन्हीं घटकों की सुरक्षा और प्रकृति के प्रति मानव के प्रेम को जगाने हेतु इस वर्ष पर्यावरण दिवस की थीम "पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली" रखी गयी। पारिस्थितिकी तंत्र में प्रकृति के समस्त घटक जैसे- सूर्य,चन्द्र,पेड़-पौधे,जल,मिट्टी एवं हवा सम्मिलित हैं जिन्हें वेदों में देवता कहकर इनका महत्त्व समझाया गया। सूर्य,वरुण,इंद्र,मरुत, सृष्टि-प्रक्रिया आदि का विवेचन विधिवत रूप में वेदों में प्राप्त होता है।

प्रकृति से मनुष्य की दूरी ने पर्यावरण-प्रदूषण को जन्म दिया। प्रदूषण के चलते नाना प्रकार के रोगों,विषाणुओं ने धरती को घेर लिया तथा सम्पूर्ण धरा रोगों से ग्रस्त होकर त्राहि माम् त्राहि माम् करने को विवश है। जंगल तबाह हो गए, ओजोन परत क्षीणकाय हो गयी तथा हवा-पानी प्रदूषित हो गए क्योंकि विकास की अंधी दौड़ में तीव्र गति से दौड़ रहे मनुष्यों को जीवन की संगिनी प्रकृति का ख्याल न रहा। 
प्रत्येक वर्ष पर्यावरण दिवस इसीलिए तो मनाया जाता है ताकि हम सब प्रकृति से नाता जोड़ते हुए इसके महत्त्व को समझें तथा इसके संरक्षण हेतु ईमानदारी से कटिबध्द रहें किन्तु मात्र एक दिवस विशेष में मात्र शब्दों से प्रकृति की चिंता करके हम पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत नहीं बना सकते बल्कि हर दिन हम इसकी चिंता करें और यह समझने की कोशिश करें कि स्वस्थ जीवन के ख़ातिर प्रकृति के साथ चलना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

 आज प्रकृति के रखवाले ही इसके सबसे बड़े शत्रु बने बैठे हैं। वृक्ष लगाने के बजाय अंधाधुंध जंगलों की कटाई की जा रही है। एसीयुक्त बन्द कमरों में पर्यावरण की चिंता के प्रति भाषणबाजी करना प्रकृति के साथ भद्दा मजाक है।


इसीलिए किसी दिवस विशेष पर पर्यावरण की चिंता करने से पर्यावरण-प्रदूषण से निजात और पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली सम्भव नहीं बल्कि हमें अपने संस्कारों में इसके प्रति चिंता भरनी होगी और इसके लिए प्राथमिक स्तर से ही बच्चों को इसका महत्त्व समझाने की जरूरत है। वैदिक युग की बातों पर अमल करना और वेदों के पन्ने पलटना जरूरी है ताकि प्रकृति के समस्त घटकों को देवता मानते हुये हम उनके महत्त्व को स्वीकार कर सकें। 

यदि प्रकृति की ओर लौटना है तो वेदों की ओर लौटना ही होगा अन्यथा मनाते रहेंगे पर्यावरण दिवस,करते रहेंगे फोटोबाजी और देते रहेंगे भाषण।


                 ✍️ अनुज पण्डित

Tuesday, June 1, 2021

उपनिषदों का रचनाकाल और इनकी संख्या

#उपनिषच्चर्चा_भाग_5
🍂उपनिषदों की रचना बौद्धकाल से काफी पहले की मानी जाती है फिर भी इनके रचनाकाल के विषय में विद्वान् एकमत नहीं हैं। उपनिषदों को वेदों की मूल संहिताओं का अंश मानते हुए इन्हें सर्वाधिक प्राचीन स्वीकार किया जाता है, इस हिसाब से इनका रचनाकाल संहिताओं के पहले का माना जा सकता है। कुछ विद्वान् इनका समय 3000 ई.पू.-500 ई. पू. मानते हैं, कुछ 800 ई. पू. तथा 3000 से 3500 ई. पू. का स्वीकार करते हैं। इनके रचनाकाल का निर्धारण इनकी खगोलीय, भाषाई एवं वैचारिक सिद्धान्त आधार पर समझा जा सकता है।


लोकमान्य तिलक एवं विंटरनित्स खगोलीय स्थिति को आधार मानते हुए  इनका रचनाकाल 6000 ई. पू. - 2000ई.पू. मानते हैं।



मैक्समूलर भाषाई आधार को मानते हैं और इनका रचनाकाल 1000-800 ई. पू. मानते हैं।


मंत्रसंहिता, ब्राह्मण और आरण्यक ग्रन्थों के अनन्तर लिखे गए उपनिषदों की संख्या के विषय में "मुक्तिकोपनिषद्" में बताया गया है जिसके आधार पर इनकी कुल संख्या 108 मानी जाती है-
                             🍂
ईशकेनकठमुण्डमाण्डूक्यतित्तिर:
                 ऐतरेयं च छन्दोग्यं बृहदारण्यकं तथा।
ब्रह्मकैवल्यजाबालश्वेताश्वो हंस आरुणि:
              गर्भो नारायणो हंसो बिंदुर्नादशिर: शिखा।
                             🍂
मैत्रायणी कौषीतकि बृहज्जाबालि तापनी
              कालाग्निरुद्रमैत्रेयी सुबालक्षुरीमन्त्रिका।
सर्वसारं निरालम्बं रहस्यं वज्रसूचिकम्
              तेजोध्याननादविद्यायोगतत्त्वात्मबोधकम्।
                             🍂
परिव्राट् त्रिशिखी सीता चूडा निर्वाणमण्डलम्
              दक्षिणा शरभं स्कंदं महानारायणाह्वयम्।
रहस्यं रामतपनं वासुदेवं च मुद्गलम्
               शांडिल्यं पैङ्गलं भिक्षुमहच्छारीरकम्।

तुरीयातीतसंन्यासपरिव्राजाक्षमालिका
        अव्यक्तैकाक्षरं पूर्णासूर्याक्ष्यध्यात्मकुण्डिका।।

दुःखद है कि मुक्तिकोपनिषद् में गिनाए गये सभी उपनिषद् आज उपलब्ध नहीं हैं। मात्र 10 उपनिषद् ही उपलब्ध हैं जिन पर आदि शंकराचार्य ने भाष्य लिखा। ये दश उपनिषद् हैं- ईश, केन,कठ,प्रश्न,मुण्डक, माण्डूक्य,तैत्तिरीय,ऐतरेय, छान्दोग्य और बृहदारण्यक।

 
#क्रमशः........  ✍️ अनुज पण्डित
फ़ोटो साभार गूगल

भक्ति और उसके पुत्र

🍂'भज् सेवायाम्' धातु से क्तिन् प्रत्यय करने पर 'भक्ति' शब्द की निष्पति होती है,जिसका अर्थ है सेवा करना। सेवा करने को 'भ...