#उपनिषच्चर्चा_भाग_7
🍂केनोपनिषद्
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सामवेद के तवलकार ब्राह्मण के नवम अध्याय में उल्लिखित यह उपनिषद् अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। "केन" का अर्थ होता है-'किसके द्वारा।' शिष्य, गुरु से प्रश्न करता है कि वह कौन है जिसके द्वारा हम प्रकृति के विभिन्न रहस्यों को जान सकते हैं? किसके द्वारा हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ कार्य करने को प्रवृत्त होती हैं और किसके द्वारा ज्ञान और आत्मा को संचालित किया जाता है?
इस तरह के प्रश्न शिष्य, अपने गुरु से पूछता है और गुरु उन प्रश्नों के उत्तर देता है। ये प्रश्नोत्तर ही इस उपनिषद् में वर्णित हैं। उत्तर के माध्यम से गुरु, शिष्य को बताता है कि वह सर्वशक्तिमान साक्षात् ब्रह्म है। वही ब्रह्म चेतन रूप में सभी में निवास करता है। ब्रह्म को जानने के लिए साधना की जरूरत पड़ती है और जो साधक इंद्रियों में चेतना भरने वाले ब्रह्म को जान लेता है,वह जीवनमुक्त होकर संसार के आवागमन से मुक्त हो जाता है।
वह ब्रह्म सर्वश्रेष्ठ और निर्विकार है। आँखों से न तो उसे देखा जा सकता है और न कानों से सुना जा सकता है। इस उपनिषद् में चार खण्ड हैं-
प्रथम और द्वितीय खण्ड में गुरु-शिष्य का संवाद है। उस परमसत्ता की विशेषताओं,उसकी गूढ़ अनुभूतियों का गहन विश्लेषण हुआ है।
तृतीय और चतुर्थ खण्ड में ब्राह्मी चेतना के प्रकटीकरण का उल्लेख है। यह ब्राह्मी चेतना यज्ञ-रूप ने उत्पन्न हुई है।
एक बार देवताओं को अभिमान हो गया था तो परब्रह्म उनका मान-मर्दन करने के उद्देश्य से ब्राह्मी चेतना में प्रकट हुए। इसके बाद माता पार्वती ने देवताओं के लिए ब्रह्मतत्त्व का उपदेश किया और ब्रह्म की उपासना का तरीका समझाया।केनोपनिषद् का मुख्य उद्देश्य मनुष्य को श्रेय-मार्ग की ओर उन्मुख करना है।
फ़ोटो साभार गूगल। सादरं नमस्करोमि
✍️ अनुज पण्डित
Marvellous
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