Monday, November 30, 2020
आख़िर क्यों हो रहे हैं जंगली जीव बेदख़ल?
Sunday, November 22, 2020
क्या आप जानते हैं कि बदलते हुए विश्व में आपको किस तरह का सहयोग करना है?
विगत शताब्दियों में वैज्ञानिक आविष्कारों तथा प्रगति का सहारा लेकर धरती की संतानों ने अनेक लम्बी-लम्बी विकासयात्राएँ पूरी की हैं,जो वास्तव में कल्पनाशक्ति के क्षेत्र से बाहर है। जितनी तीव्र गति से प्रगति की उड़ानें भरी गयीं उतनी ही तीव्र गति से अस्थिरता, अशांति, अवसाद तथा शारीरिक व्याधियों ने भी पीछा किया।
यदि मनुष्य गहरे गड्ढे या ढाल वाले रास्ते पर जाने के लिए हठ कर ले तो वह बहुत कम समय में लुढ़कते, गिरते और चोटिल होते हुये हजारों फ़ीट नीचे गर्त में चला जायेगा।
वर्तमान की स्थिति यह है कि समूचे विश्व के मनुष्यों ने भौतिकतावाद की होड़ में प्रकृति और अध्यात्म को कूड़ेदान में डाल दिया है, जिसके परिणामस्वरूप अनेक असाध्य बीमारियाँ, महामारियाँ तथा मानसिक अशांति साक्षात यमराज बनकर मुँह बाये खड़ी हैं, जो किसी भी क्षण सम्पूर्ण विश्व को लील सकती हैं।
यदि मनुष्य उस नियंता की सम्पत्ति(धरती,अम्बर,ग्रह,पहाड़,पेड़,नदियाँ, समुद्र, हवा आदि) को तहस-नहस करने पर उतारू हो जायेगा तो त्वरित वह सर्वशक्तिमान नियंता अपनी सम्पत्ति की सुरक्षाव्यवस्था में तत्पर हो जायेगा और अनेकानेक परिवर्तन करके उसे सन्तुलन प्रदान करेगा।
सबसे महती आवश्यकता है जनसंख्या नियंत्रण की। लगातार बढ़ रही वैश्विक जनसंख्या के कारण आपसी प्रतिस्पर्धा चरम पर है जिसके कारण आपसी झगड़े और कलह जन्म ले रहे हैं।यह बढ़ती जनसंख्या मनुष्य को हतोत्साहित करके उसके लक्ष्य प्राप्ति में बाधा डालती है।
"स्वयं बदलना होगा खुद को,ताकि बदल सके यह युग।"
आओ मिलकर कसम ये खायें, सुंदर होगा यह कलयुग।"
✍️अनुज पण्डित
Friday, November 20, 2020
आइये जानते हैं कि शुभ कार्यों में क्यों वर्जित हैं बासी फूल?
प्रकृति के तमाम सुंदर संघटकों में एक ख़ास घटक फूल भी है जिसके बगैर प्रकृति का शृंगार अधूरा, फीका और लावण्यविहीन ही समझिए!
संस्कृत व्याकरण के अनुसार "पुष्प फुल्लने" धातु से "अच्" प्रत्यय जोड़ने पर पुष्प शब्द निष्पन्न होता है।
बड़े शहरों में छोटी-बड़ी फूल की दुकानों पर विभिन्न प्रकार की पुष्पमालाएँ, साबुत एवं खण्ड-खण्ड पुष्प अक्सर बासी होने के बावजूद भी धड़ल्ले से बिक कर देवी-देवताओं पर चढ़ जाते हैं जो कि शास्त्रसम्मत नहीं है!
बासी और कुम्हलाए फूलों को देखकर कुबेर क्रोध से भर गया, जिसके परिणामस्वरूप उसने उस यक्ष को महाभयंकर शाप दे डाला। शाप के प्रभाव से वह यक्ष अपनी प्रियतमा से अलग,शक्तिहीन होकर चित्रकूट के रामगिरि पर्वत पर आ गिरा, जहाँ पूरा एक वर्ष वह प्रियतमा के विरह में तपता रहा।
इस काव्य के माध्यम से मानो कालिदास ने मानवजगत् को भी संदेश दिया है कि पूजा-अर्चना आदि शुभ कार्यों में बासी फूलों का प्रयोग न करें अन्यथा यक्ष जैसा महाभयंकर शाप लग सकता है!
Friday, November 13, 2020
क्या आप जानते हैं कि नेहरू जी को क्यों था बच्चों से लगाव और बाल-दिवस का उद्देश्य क्या है?
यह सच है कि भारत में भूतपूर्व प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी के जन्मदिवस के रूप में बाल-दिवस को मान्यता मिली किन्तु कई देशों में बाल दिवस भिन्न-भिन्न तिथियों को मनाया जाता है ।इससे पहले भारत में बाल दिवस 20 नवम्बर को मनाया जाता था।
ऐसी मान्यता है कि नेहरू जी का बच्चों के प्रति अगाध स्नेह था जिसके फलस्वरूप 27 मई 1964 को उनकी मृत्यु के पश्चात् उनकी याद में उनके जन्मदिवस 14 नवम्बर को बाल-दिवस मनाया जाने लगा। बच्चों के प्रति प्रेम तो अच्छी बात है किंतु क्या नेहरू जी को ही बच्चों से लगाव था, बाकी सब क्या बच्चों के बैरी होते हैं!
शायद नेहरू जी को मनोविज्ञान का ज्ञान था ,तभी तो उन्हें पता था कि बच्चों के साथ समय गुजारने से वयस्कों या वृद्धों का मन जवान हो जाता है और बढ़ती उम्र का आभास नहीं होता। यह तो हुई नेहरू जी की मृत्यु के बाद की बात किन्तु क्या 14 नवम्बर से पहले जब 20 नवम्बर को बाल दिवस मनाया जाता था तब इसके पीछे की क्या कहानी थी? है न सोचने वाली बात ! खैर कोई बात नहीं।
वास्तव में बालदिवस मनाने का उद्देश्य प्रबल उत्साहवर्धक एवं प्रेरणादायक होना चाहिए,ताकि प्रत्येक बच्चा जीवन ,समाज व देश के प्रति पूरी निष्ठा से अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करने हेतु प्रतिबद्ध हो उठे।
आज इस दिवस विशेष पर आचार्य चाणक्य औऱ चन्द्रगुप्त मौर्य की कहानी व आदर्शों से बच्चों को अवगत कराते हुये जीवन का मूल्य समझाना चाहिए और यह समझाने का कार्य माता-पिता और शिक्षकों को करना चाहिए। आज देश के प्रत्येक बच्चे को आचार्य चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य के साहस को ध्यान में रखकर राष्ट्र निर्माण के प्रति पूरी शक्ति से तैयार होने की शपथ लेनी चाहिए। प्रत्येक बच्चे को अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार होकर लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होना चाहिए ।
बच्चे के सर्वांगीण विकास हेतु यह आवश्यक है कि देश के प्रत्येक अभिभावक व शिक्षक को अपनी भूमिका का निर्वहन पूर्ण सत्यनिष्ठा से करनी होगी तभी हमारा देश प्रगति के उच्चतम शिखर पर स्थापित हो सकेगा,क्योंकि आजके बच्चे ही भविष्य के कर्णधार हैं।
सबसे चिंतनीय बात तो यह है कि वर्तमान युग में बच्चों का बचपन कितनी निर्ममता से कुचला जा रहा है! बच्चा 'माँ' शब्द का उच्चारण जैसे ही सीखता है, वैसे ही उसके कन्धों पर उसके वजन से अधिक किताबों का भार लाद दिया जाता है।आवश्यकता से अधिक पाठ्यक्रम रख दिया जाता है जिससे बच्चे को अपने वास्तविक मस्तिष्क और शरीर के विकास का समय ही नहीं मिलता। अधिकांश अभिभावक तो अपनी व्यस्त जीवनशैली के चलते बच्चों को पर्याप्त समय तक नहीं दे पाते ,लिहाजा बच्चे स्वच्छन्द होकर अशिष्ट और दुराचारी बन जाते हैं।
बच्चे तो नन्हें से पौधे हैं जिन्हें उचित खाद और पानी देकर पाला पोसा जाना चाहिए ताकि कोई भी बच्चा पेड़ बनकर बिना सकारात्मक फल दिए न रहे।
आज देश के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में बेसिक कक्षाओं से ही बच्चों को अशुद्ध-वर्तनी के प्रति सचेत नहीं किया जा रहा है जिसके फलस्वरूप बच्चे बड़े होकर आदतवश वही वर्तनी-अशुद्धि बार- बार दोहराते हैं।
इसीलिए शिक्षकों को चाहिए कि बच्चों को सही और समुचित ज्ञान प्रदान करें ताकि यही बच्चे भविष्य में शिक्षक बनकर अपने छात्रों को गलत जानकारी प्रदान न करें। इस बात का भी विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि बच्चों के ऊपर जबरन कोई लक्ष्य न लादें, जिस तर्कपूर्ण लक्ष्य को बच्चा प्राप्त करना चाहता है उसी के अनुरूप उन्हें प्रोत्साहित करें।हम सबका यह दायित्व है कि बच्चे को सही एवं उचित मार्गदर्शन प्रदान करें।
"इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चलके।
यह देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कलके।।"
इन पंक्तियों को प्रेरणा बनाकर बच्चों को अहर्निश प्रेरित करना समस्त अभिभावकों व शिक्षकों का परम कर्तव्य है।
#फ़ोटो_साभार_गूगल
✍️अनुज पण्डित
Wednesday, November 4, 2020
बीएचयू में चमकेगा चित्रकूट का कोहिनूर
भगवान् श्रीराम की तपोस्थली चित्रकूट की धरती एक ओर जहाँ आध्यात्मिक और प्राकृतिक रूप से धनाढ्य है वहीं दूसरी ओर सदा से संसाधन विहीन रही है किंतु बावजूद इसके इस पवित्र धरती में उपजे प्रतिभाशाली व्यक्तित्वों ने देश-विदेश में यहाँ का गौरव स्थापित किया है।
शोधकार्य पूरा करते ही इनका चयन इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में अतिथि प्रवक्ता पद हुआ,एक साल के भीतर ही माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड ,उत्तरप्रदेश में प्रवक्ता पद पर तीसरा स्थान प्राप्त किया और एक साल इस पद पर सेवा देकर उच्च शिक्षा में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर पद पर आसीन हुए!
डॉ. साहू का सफ़र अभी यहीं पर नहीं रुका बल्कि इन्होंने अपनी प्रतिभा की चमक से एक बार और अपने जनपद सहित पूरे प्रदेश को चकाचौंध किया है। जी, हाँ अभी हाल ही में इनका चयन एशिया के बहुचर्चित और प्रतिष्ठित संस्थान बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत साहित्य विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर पद पर हुआ है।
आख़िर क्यों लग रहा है जंगलों की ख़ूबसूरती पर ग्रहण!
जंगलों, पहाड़ों एवं झरनों की खूबसूरती तब तक है, जब तक इनके वास्तविक या प्राकृतिक स्वरूप के साथ छेड़छाड़ न की जाए!
बहुधा देखने को मिल जाता है कि जंगल को चीरकर चिकनी सड़कें बना दी जाती हैं जिससे कि आवागमन सरल हो सके! सच कहें तो सबसे ज्यादा वही जंगल चाटे गये हैं जिनके बीच से ऐसी चिकनी सड़कें बनाई जाती हैं।
जिन जंगलों को बचाने की बात की जाती है, उन्हीं जंगलों को काट-छाँटकर उनके भीतर स्थित विशेष स्थान को विकसित किया जा रहा है!
जंगल, पहाड़,कन्दराएँ,गुफाएँ, झरने व बहरा-पोखरा- ये सभी सच्चा आनन्द तभी प्रदान करते हैं जब इन्हें इनके मूल रूप में रहने दिया जाए!
Sunday, November 1, 2020
आख़िर उस रात क्या हुआ था पांचवीं मंजिल के रूम नम्बर सात में!
___ अथर्व मेरी कम्पनी में बतौर मैनेजर काम करता है। मैं लगभग बीस वर्षों से अपनी कम्पनी में साड़ियों की बुनाई और कढ़ाई का काम करवाता हूँ,...जिसके लिये मुझे सैकड़ों कामगारों की आवश्यकता पड़ती है।...सूरत जैसे औद्योगिक शहर में बाहरी प्रान्तों से आये हुए मजदूरों को आसानी से काम मिल जाता है और..... हम उद्योगपतियों को उचित मजदूरी पर मजदूर..!
वो दबे पाँव मेरे करीब आया और मायूसी को चेहरे पर पोतकर मेरी ओर ताकने लगा।
"मैं चन्दन हूँ सर! यहाँ काम करता हूँ।!"- पतली आवाज में उसने उत्तर दिया।
"सात दिन हो गये काम करते हुये...!अथर्व अंकिल ने मुझसे कहा है कि पाँचवीं मंजिल के रूम नम्बर सात में रोज साड़ी के बण्डल फेंक कर आना है, तो मैं जाता हूँ और फेंक कर आता हूँ .!"- एक ही साँस में उसने फ़टाफ़ट बकर दिया।
" बाकी रूम तो बन्द रहते हैं लेकिन रूम नम्बर सात में लाइट जलती रहती है और चार लोग ताश खेलते रहते हैं..। मैं रात के तीन बजे तक बण्डल फेंक कर आता-जाता रहता हूँ लेकिन मैं उनसे बात नहीं करता और न ही वे मुझे ही कुछ कहते..! बस जोर-जोर से हँसते हुये ताश खेलते रहते हैं।"
" अथर्व ! तुम अच्छी तरह जानते हो कि दो साल पहले उस रूम नम्बर सात में क्या हुआ था और तभी से हमने पाँचवीं मंजिल में सबका जाना बंद करवा दिया था फिर भी तुम इस बच्चे को वहाँ उस कमरे में...!"- मैंने चिल्लाकर कहा।
👉(02 साल पहले रूम नं.-07 में चार लोगों का मर्डर हुआ था।)
भक्ति और उसके पुत्र
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